Political – दिल्ली चुनाव: मुस्लिम इलाके वाली सीटों पर प्रचार से अरविंद केजरीवाल ने क्यों बनाए रखी दूरी?- #INA
अरविंद केजरीवाल.
दिल्ली विधानसभा का चुनाव प्रचार का आज आखिरी दिन है और शाम छह बजे प्रचार का शोर थम जाएगा. अरविंद केजरीवाल सितंबर में सीएम पद आतिशी को सौंपकर मिशन-दिल्ली में लग गए थे. केजरीवाल साढ़े चार महीने से लगातार दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में जाकर आम आदमी पार्टी के पक्ष में सियासी माहौल बनाने की कवायद करते रहे, लेकिन मुस्लिम बहुल इलाके से दूरी बनाए रखी. दिल्ली की किसी मुस्लिम सीट पर केजरीवाल चुनाव प्रचार के लिए नहीं उतरे, जहां से आम आदमी पार्टी के मुस्लिम कैंडिडेट किस्मत आजमा रहे हैं.
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी दिल्ली चुनावी मैदान में उतरी है. केजरीवाल ने अपने प्रत्याशियों को जिताने के लिए दिन रात एक कर दिए हैं. दिल्ली की 70 में से 5 सीट पर आम आदमी पार्टी ने मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं. 2015 और 2020 के चुनाव में दिल्ली की सभी मुस्लिम बहुल सीटें आम आदमी पार्टी जीतने में कामयाब रही है. इसके बावजूद केजरीवाल मुस्लिम बहुल सीट पर पिछली बार की तरह ही इस बार भी चुनाव प्रचार के लिए नहीं पहुंचे हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर क्या वजह है कि मुस्लिम इलाकों से केजरीवाल ने दूरी बनाए रखी.
दिल्ली में करीब 13 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. दिल्ली की कुल 70 में से 8 विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल माना जाती हैं. केजरीवाल ने दिल्ली की बल्लीमारान, सीलमपुर, ओखला, मुस्तफाबाद और मटिया महल सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं. इन सीटों पर 45 से 60 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. तीन सीटों पर आम आदमी पार्टी की कांग्रेस से सीधी टक्कर मानी जा रही है, तो मुस्तफाबाद और ओखला सीट पर AIMIM के चलते त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है.
सीएए-एनआरसी आंदोलन के साये में 2020 का दिल्ली चुनाव हुआ था और केजरीवाल दिल्ली की सभी मुस्लिम बहुल सीटें जीतने में कामयाब रहे थे. ओखला क्षेत्र के तहत आने वाले शाहीन बाग के आंदोलन पर भी सवाल खड़े किए थे. इसके बाद भी मुस्लिमों ने एकमुश्त वोट केजरीवाल को दिया था, लेकिन इस बार की सियासी स्थिति बदली हुई है. आम आदमी पार्टी को दिल्ली चुनाव में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. इसके बाद भी केजरीवाल किसी भी मुस्लिम इलाके में चुनाव प्रचार करने के लिए नहीं पहुंचे हैं.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार मुस्लिम बहुल इलाके में तब्लीगी जमात के मरकज और दिल्ली दंगे के मुद्दे की गूंज सुनाई दे रही है. कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठा रही है. ये दोनों ही सियासी मुद्दे अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए मुस्लिम बहुल सीटों पर सियासी टेंशन बढ़ाते नजर आ रहे हैं. आम आदमी पार्टी के सभी पांचों मुस्लिम प्रत्याशियों के लिए परेशानी का सबब बन गया है.
कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के पांचों मुस्लिम उम्मीदवार आमने-सामने चुनाव लड़ रहे हैं. ओवैसी के दो मुस्लिम उम्मीदवार होने के चलते दो सीटों पर तीन प्रमुख दलों से मुस्लिम हैं, जबकि बीजेपी ने इस बार किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया. दिल्ली की 5 सीटों पर मुस्लिम बनाम मुस्लिम की लड़ाई है. ऐसे में मुस्लिम मतदाता किसी एक दल के पक्ष में एकतरफा वोटिंग वाली परंपरा से इस बार दूर दिख रहा है.
कांग्रेस और ओवैसी की घेराबंदी के बाद भी केजरीवाल मुस्लिम इलाके में खुद नहीं उतरे हैं, जिसके चलते मुस्लिम बहुल सीटें जीतने के लिए आम आदमी पार्टी के नेताओं को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही. मुस्लिम बहुल सीटों पर केजरीवाल की दूरी बनाए जाने के चलते आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को राज्यसभा सांसद संजय सिंह की रैलियों से संतोष करना पड़ा है. इसके अलावा सपा के नेताओं का प्रचार के लिए आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों ने सहयोग लिया है.
केजरीवाल ने क्यों बनाए रखी दूरी
दिल्ली विधानसभा का अभी तक का यह पहला ऐसा चुनाव हो रहा है, जिसमें राजधानी के मुस्लिम मतदाता राजनीतिक दलों के मुद्दे और उनके प्रत्याशियों की ओर देख रहे हैं. दिल्ली दंगों के दौरान आम आदमी पार्टी के रवैये और उसकी बदलती राजनीतिक विचारधारा इसकी एक बड़ी वजह है. कोरोना के दौर में तब्लीगी जमात और दिल्ली दंगे के दौरान आम आदमी पार्टी के रवैये से मुस्लिम मतदाता केजरीवाल से नाराज दिख रहा है.
दिल्ली की सभी विधानसभा सीटों की लिस्ट यहां देखें
मुस्लिमों के मन में एक तरफ ओवैसी के प्रत्याशियों को लेकर सहानुभूति है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए सॉफ्ट कॉर्नर नजर आ रहा है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल ने मुस्लिम सीटों पर प्रचार से दूरी बना रखी है, क्योंकि वो अगर चुनाव प्रचार के लिए उतरते तो उनके खिलाफ विरोध के सुर उठ सकते थे. इसीलिए खुद उतरने के बजाय उन्होंने सांसद संजय सिंह और जम्मू-कश्मीर के डोडा से पार्टी विधायक मेहराज मलिक को चुनावी प्रचार में लगा रखा है.
अरविंद केजरीवाल ने मुस्लिम बहुल सीटों से दूरी बनाकर क्या सेफ गेम खेला, क्योंकि अगर मुस्लिम सीट पर प्रचार के लिए उतरते तो बीजेपी को भी उन्हें घेरने का मुद्दा उठ जाता. केजरीवाल ने अपने आपको दूर रखा ताकि उस पर मुस्लिम परस्ती का आरोप न लग सके. इस तरह बीजेपी को मौका तो नहीं दिया, लेकिन कांग्रेस और ओवैसी को जरूर सवाल खड़े करने का मुद्दा दे दिया है. हालांकि, उनकी स्ट्रैटेजी है कि दिल्ली में मुस्लिम वोटर बीजेपी को हराने के लिए आम आदमी पार्टी का साथ दे सकते हैं.
केजरीवाल ने दिल्ली में सेफ गेम खेला
संजय सिंह आम आदमी पार्टी के सेकुलर चेहरा माने जाते हैं और मुसलमानों के बीच उनकी मजबूत पकड़ भी है. इसके चलते उन्हें ही मुस्लिमों को साधने के लिए केजरीवाल ने लगा रखा है. सीलमपुर से लेकर मुस्तफाबाद और बाबरपुर जैसी सीटों पर प्रचार कर चुके हैं, ये सीटें दिल्ली दंगे में प्रभावित रही हैं. संजय सिंह के साथ मेहराज मलिक भी मुस्लिम बहुल सीटों पर लगातार रैली कर रहे हैं और मुसलमानों को यह बताने में जुटे हैं कि आम आदमी पार्टी ही उनकी सबसे बड़ी हमदर्द है.
केजरीवाल यह बताने में जुटे हैं कि कांग्रेस को वोट देने का कोई फायदा सीधे बीजेपी को होगा. यह संदेश कहीं न कहीं मुस्लिम समाज के लिए अप्रत्यक्ष रूप से माना जा रहा है. दिल्ली में मुस्लिम मतदाताओं का विश्वास जीतने के लिए अरविंद केजरीवाल ने इंडिया गठबंधन के घटक दलों के नेताओं को भी रैलियां में उतारा हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ किराड़ी सीट पर केजरीवाल ने रोड शो किया था. सपा के तमाम मुस्लिम नेता आम आदमी पार्टी के लिए चुनाव प्रचार करते नजर आ रहे हैं.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के सभी उम्मीदवारों की लिस्ट यहां देखें
दिल्ली चुनाव: मुस्लिम इलाके वाली सीटों पर प्रचार से अरविंद केजरीवाल ने क्यों बनाए रखी दूरी?
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