Political – ओवैसी ने बनाया दिल्ली में माहौल, बढ़ाई AAP-कांग्रेस की टेंशन, क्या जीत की बोहनी भी होगी?- #INA
असदुद्दीन ओवैसी, अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी
दिल्ली का विधानसभा चुनाव बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय होता दिख रहा है, लेकिन ओखला और मुस्तफाबाद की सीटों पर चार दलों के बीच मुकाबला बन गया है. दोनों मुस्लिम बहुल सीटों पर चतुष्कोणीय चुनाव बनाने का काम असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM कर रही है. AIMIM से ओखला सीट पर शिफाउर रहमान और मुस्तफाबाद सीट पर ताहिर हुसैन चुनाव लड़ रहे हैं, जो UAPA के तहत जेल में बंद हैं.
असदुद्दीन ओवैसी के दोनों ही प्रत्याशी मुस्लिम हैं और दिल्ली दंगे के आरोप में जेल में बंद हैं. मुसलमानों के बीच AIMIM ने इमोशनल कार्ड का दांव चला. इसके बाद ओवैसी ने अपने लावलश्कर के साथ दोनों ही सीटों पर डेरा जमाकर माहौल तो बना दिया है, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की सियासी टेंशन भी बढ़ा रखी है, लेकिन सवाल यह है कि क्या दिल्ली में जीत की बोहनी भी AIMIM कर पाएगी?
दिल्ली में ओवैसी का इमोशनल दांव
दिल्ली में पांच साल पहले जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों सीएए-एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन शुरू किया था. छात्रों पर पुलिस लाठीचार्ज के बाद आंदोलन ने व्यापक रूप अख्तियार कर लिया था. इसके बाद मुस्लिम महिलाओं ने शाहीन बाग की सड़क को जाम कर दिया था, जो सीएए-एनआरसी के खिलाफ आंदोलन का मॉडल बन गया था.
मुस्लिमों के सियासी इतिहास में पहली बार था, जब मर्दों के साथ-साथ मुस्लिम महिलाओं ने सड़क पर उतरकर आंदोलन किया था. सीएए-एनआरसी आंदोलन से जुड़े रहे शिफाउर रहमान को ओखला और सीएए-एनआरसी आंदोलन के दौरान नार्थ ईस्ट दिल्ली में हुए दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन को मुस्तफाबाद सीट से ओवैसी ने उतारा है. इन दोनों ही सीटों पर 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं.
मुस्तफाबाद और ओखला सीट के सियासी समीकरण और मौके की नजाकत को देखते हुए असदुद्दीन ओवैसी इमोशनल कार्ड ही नहीं खेल रहे हैं बल्कि शिफा और ताहिर के रिहाई का भी मुद्दा बनाया है. ओवैसी मुस्लिमों की दुखती रग पर हाथ रख रहे और अपनी हर एक रैली में ताहिर हुसैन और शिफाउर रहमान की पत्नी और बच्चों के जरिए इमोशनल अपील कराते नजर आते हैं. दोनों ही प्रत्याशियों को बेगुनाह बता रहे हैं और जेल से उन्हें रिहा कराने के लिए लोगों से वोट की अपील कर रहे हैं.
ओवैसी ने बनाया सियासी माहौल
AIMIM ने ओखला और मुस्तफाबाद सीट पर सिर्फ उम्मीदवार ही नहीं उतारे बल्कि उन्हें जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है. ओवैसी ने अपने लावलश्कर के साथ पिछले दस दिनों से दोनों ही सीटों पर डेरा जमा रखा है. असदुद्दीन ओवैसी के साथ इम्तियाज जलील, अख्तारुल इमान और शौकत अली दोनों ही सीटों पर हर रोज रैलियां और रोड शो एक सप्ताह से कर रहे हैं. सीएए-एनआरसी आंदोलन से जुड़े लोगों का समर्थन दोनों ही सीटों पर AIMIM को मिल रहा है. ऐसे में मुस्लिम मतदाता किसी एक दल के पक्ष में एकतरफा वोटिंग वाली परंपरा से इस बार दूर दिख रहा है.
ओवैसी अपनी हर एक जनसभा में दिल्ली दंगे का जिक्र कर रहे हैं और बीजेपी के साथ-साथ अरविंद केजरीवाल को भी कठघरे में खड़ा करते हुए नजर आते हैं. इसके अलावा कोरोना काल के दौरान तब्लीगी जमात के मरकज पर केजरीवाल के स्टैंड को लेकर हमलावर हैं. सीएए-एनआरसी आंदोलन, दिल्ली के दंगे और तब्लीगी जमात के मरकज को लेकर केजरीवाल के द्वारा दिए गए बयानों के वीडियो AIMIM के द्वारा जमकर शेयर किए जा रहे ताकि मुस्लिम वोटों को आम आदमी पार्टी से दूर किया जाए.
ओखला और मुस्तफाबाद सीट पर मुस्लिम समाज का विश्वास जीतने के लिए ओवैसी उनके साथ अपना इस्लामिक नाता भी जोड़ने का दांव चल रहे हैं, जिसके लिए धार्मिक नारे भी बकायदा लगाए जा रहे हैं. इतना ही नहीं ओवैसी की जज्बाती तकरीरों से मुस्लिम इलाके में सियासी माहौल बनाने में काफी हद तक AIMIM कामयाब होते नजर आ रही. ओखला सीट पर AIMIM के प्रत्याशी शिफाउर रहमान और मुस्तफाबाद सीट पर ताहिर हुसैन के पक्ष में सिंपैथी का माहौल ओवैसी ने बना दिया है.
AAP-कांग्रेस की बढ़ाई सियासी टेंशन
दिल्ली के मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जीतती रही है. दिल्ली की मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी कभी भी चुनाव जीत नहीं सकी. 1993 से लेकर 2013 तक मुस्लिम कांग्रेस को वोट देता रहा है, लेकिन 2015 और 2020 चुनाव में आम आदमी पार्टी को मुस्लिमों ने एकमुश्त वोट दिया था. इस बार कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ-साथ ओवैसी ने भी मुस्लिम कैंडिडेट उतार रखे हैं. ओवैसी ने बहुत रणनीति के तहत दिल्ली दंगे के आरोपियों को टिकट देकर दिल्ली के चुनाव को रोचक बना दिया है, तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की टेंशन बढ़ा दी है.
मुस्तफाबाद सीट पर AAP ने अपने मौजूदा विधायक यूनुस खान का टिकट काटकर आदिल खान को प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस से पूर्व विधायक अहमद हसन के बेटे अली मेहंदी, AIMIM से दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हसन और बीजेपी से इस सीट पर करावल नगर से विधायक मोहन सिंह बिष्ट चुनाव लड़ रहे हैं. मुस्तफाबाद की तरह ओखला विधानसभा सीट पर AAP से अमानतुल्लाह खान, कांग्रेस से अरीबा खान, AIMIM से शिफाउर रहमान और बीजेपी ने मनीष चौधरी चुनाव लड़ रहे हैं.
मुस्लिम वोटों के चलते ओखला और मुस्तफाबाद सीट बीजेपी के लिए भले ही सीट मुश्किल भरी लग रही हो, लेकिन इस बार जिस तरह तीनों ही विपक्षी दलों के कैंडिडेट मजबूती से चुनाव लड़ते नजर आ रहे हैं. इसके चलते दोनों ही सीटों पर मुकाबला काफी रोचक हो गया है. मुसलमानों का एक बड़ा असदुद्दीन ओवैसी के उम्मीदवार के पक्ष में खड़ा नजर आ रहा है. AIMIM के ओखला और मुस्तफाबाद सीट पर मजबूती के साथ चुनाव लड़ने के चलते कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गणित दोनों ही सीटों पर गड़बड़ाता नजर आ रहा है.
AIMIM का दिल्ली में क्या खुलेगा खाता?
असदुद्दीन ओवैसी और उनके सिपहसलारों ने मुस्तफाबाद और ओखला सीट पर मशक्कत करके सियासी माहौल तो बना दिया है, लेकिन सभी के मन में सवाल है कि क्या AIMIM खाता भी खोल पाएगी या फिर नहीं? इसकी एक बड़ी वजह है कि ओवैसी को सुनने के लिए मुसलमानों की भीड़ तो उनकी रैलियों में जुटती है. मुस्लिम समुदाय उनके समर्थन में भी खड़े नजर आते हैं, लेकिन वोटिंग पैटर्न में तब्दील नहीं होता. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी को हिंदू वोट नहीं मिलता है और मुस्लिमों के एक तबके का ही वोट मिलता है.
मुस्लिमों के बीच अभी भी असदुद्दीन ओवैसी की स्वीकार्यता पूरी तरह से नहीं है, क्योंकि उनकी धार्मिक ध्रुवीकरण वाली सियासत को हर कोई पसंद नहीं करता है. इसीलिए ओवैसी सियासी माहौल बनाने के बाद भी जीत से महरूम रह जाते हैं. मुस्लिमों के बीच बीजेपी को रोकने वाली रणनीति रही है, वो भी चिंता का सबब ओवैसी के लिए बनती रही है.
मुस्तफाबाद सीट पर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और AIMIM में मुस्लिम बंटता हुआ नजर आ रहा, तो ओखला सीट पर भी यही स्थिति दिख रही है. मुस्तफाबाद का क्षेत्र दिल्ली दंगे के प्रभावित वाला रहा है, जिसके चलते हिंदू और मुस्लिम बीच गहरी खाईं साफ दिख रही है. ऐसे में धार्मिक ध्रुवीकरण होता है तो सियासी फायदा बीजेपी को मिलेगा, क्योंकि इस सीट पर कोई भी कैंडिडेट कमजोर नहीं है. मुस्तफाबाद सीट पर सियासी समीकरण देखें तो 50 फीसदी मुस्लिम और 50 फीसदी हिंदू वोटर हैं. मुस्तफाबाद सीट पर ताहिर हुसैन भले ही जीत न सके, लेकिन समीकरण बिगाड़ने की ताकत में है.
ओखला सीट पर स्थिति मुस्तफाबाद जैसी नहीं है, लेकिन यहां पर 60 फीसदी मुस्लिम और 40 फीसदी हिंदू वोटर हैं. ओखला सीट पर मौजूदा विधायक अमानतुल्लाह खान को सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ रहा है, जिसके चलते ओवैसी ज्यादा उम्मीदें ओखला सीट से लगा रखी है. मुसलमानों में भाजपा को हराने के प्रयास के रूप में AIMIM की टेंशन बढ़ा सकता है, जिसे कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पूरी तरह से देने में जुटी है. ऐसे में सियासी माहौल बनने के बाद भी क्या ओवैसी दिल्ली में खाता खोल पाएंगे?
ओवैसी ने बनाया दिल्ली में माहौल, बढ़ाई AAP-कांग्रेस की टेंशन, क्या जीत की बोहनी भी होगी?
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