Political – वो सीटे जहां कांग्रेस की वजह से हार गई AAP, गठबंधन होता तो बदल जाते सियासी समीकरण- #INA

दिल्ली की सत्ता पर भारतीय जनता पार्टी ने 27 साल के इंतजार को खत्म करते हुए फिर से कब्जा जमा लिया है. अगर, दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़े होते तो बीजेपी की सत्ता के सिंहासन पर काबिज होने की राह इतनी आसान नहीं होती. ऐसा आंकड़े कह रहे हैं. इसकी वजह ये है कि दिल्ली की 70 में से कम से कम 19 सीटें ऐसी हैं, जहां पर बीजेपी की जीत का अंतर AAP और कांग्रेस को मिले वोटों के बराबर दिखता है.

इसका मतलब है कि ज्यादातर सीटों पर तीसरे नंबर पर रही कांग्रेस को जितने वोट मिले हैं, उतना ही बीजेपी और AAP के बीच हार का अंतर है. बीजेपी के मुकाबले अगर दोनों दल एक साथ मिलकर लड़ते तो कहीं न कहीं ये परिणाम कुछ और होते. ऐसे में इस खबर में जानेंगे कि वो कौन-कौन सी सीटे हैं, साथ ही हार-जीत के फर्क पर भी नजर डालेंगे.

पहले हाई-प्रोफाइल सीटों पर नजर डालते हैं

ग्रेटर कैलाश विधानसभा सीट… ये सीट हाई-प्रोफाइल सीट थी, क्योंकि इस विधानसभा से आम आदमी पार्टी के बड़े नेता और मंत्री सौरभ भारद्वाज चुनाव लड़ रहे थे. हालांकि वो हार गए, इस सीट से बीजेपी की शिखा रॉय ने जीत हासिल की. उनकी जीत का अंतर मात्र 3188 रहा. वहीं, कांग्रेस को इस सीट पर 6711 वोट मिले. ऐसे में अगर इस सीट से कांग्रेस नहीं लड़ती तो सौरभ भारद्वाज आसानी से ये जीत हासिल कर सकते थे.

जंगपुरा विधानसभा सीट… ये सीट भी आम आदमी पार्टी के लिए बेहद खास थी. आम आदमी पार्टी के बड़े नेता और पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया यहां से चुनावी मैदान में थे. लेकिन इस चुनावी लड़ाई को वो जीत में नहीं बदल सके. इस सीट पर बीजेपी के तरविंदर सिंह ने बाजी मार ली. वो 675 वोट से जीत गए. वहीं, कांग्रेस को इस सीट से 7350 वोट मिले. ऐसे में अगर इस सीट पर AAP-कांग्रेस एक साथ चुनाव लड़तीं तो नतीजे कुछ और हो सकते थे.

तीसरी और सबसे अहम नई दिल्ली विधानसभा सीट… ये सीट सबसे ज्यादा चर्चा में रही. क्योंकि यहां एक नहीं, बल्कि तीन बड़े नेता चुनाव लड़ रहे थे. AAP के संस्थापक और मुखिया अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस के बड़े नेता संदीप दीक्षित और बीजेपी के प्रवेश वर्मा. यहां प्रवेश वर्मा ने 4089 वोट से केजरीवाल को हरा दिया. वहीं, कांग्रेस को इस सीट पर 4568 वोट मिले. ऐसे में अगर कांग्रेस यहां से कोई कैंडिडेट ना खड़ा करती और AAP का समर्थन कर देती, तो केजरीवाल इस सीट से फिर चुनाव जीत सकते थे.

ये तीन तो वो सीटें हो गईं, जो हाई-प्रोफाइल थीं. वहीं बाकी 19 सीटों पर नजर डाले तो वहां भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी. बादली विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी ने 15163 वोटों से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को हराया. वहीं, कांग्रेस को यहां से 41,071 वोट मिले. अगर यहां कांग्रेस और AAP दोनो पार्ट साथ चुनाव लड़ती तो काफी आराम से आम आदमी पार्ट या कांग्रेस चुनाव जीत सकती थी.

बवाना विधानसभा सीट... इस सीट पर बीजेपी के रिवंदर ने AAP के नेता को 31475 वोट से हराया. वहीं, कांग्रेस को 18713 वोट मिले. ऐसे में अगर यहां भी कांग्रेस-AAP साथ लड़तीं तो कहीं न कहीं इसका फायदा आम आदमी पार्टी को जरूर मिलता और यहां का परिणाम भी बदल सकता था.

छतरपुर विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी के करतार सिंह ने जीत हासिल की है. उन्होंने आम आदमी पार्टी के ब्रह्म सिंह तंवर को 6239 वोटों से हराया. वहीं, कांग्रेस ने इस विधानसभा में 6601 वोट पाए. ये आंकड़े साफ-साफ कह रहे हैं कि दोनो दल अगर साथ मजबूती से लड़तें तो परिणाम कुछ और ही होते.

दिल्ली कैंट विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी के वीरेंद्र सिंह कादियान ने जीत हासिल की. उन्होंने आम आदमी पार्टी के नेता भुवन तंवर को 2029 वोटों से हराया. वहीं, कांग्रेस ने इस सीट पर कुल 4252 वोट बंटोरे. ऐसे में इस सीट पर दोनों साथ लड़तें तो यहां भी जीत का झंडा गाड़ा जा सकता था.

मुस्तफाबाद विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी और AAP के बीच बस 17578 का अंतर था. वहीं, कांग्रेस को 11763 वोट मिले. कस्तूरबा नगर विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी तो जीती लेकिन कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही और आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर. बीजेपी-कांग्रेस में हार का अंतर मात्र 11048 रहा. आम आदमी पार्ट को अकेले 18617 वोट और कांग्रेस को अकेले 27019 वोट मिले.

ऐसे में अगर इन दोनों दलों के वोट को जोड़ लिया जाए तो साफतौर पर आसानी से यहां बीजेपी को हराया जा सकता था. कोंडली विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच मात्र 6293 वोट का ही अंतर है. इसी सीट से अकेले कांग्रेस ने 7230 हासिल किए. यही वोट अगर आम आदमी पार्टी के कोटे में चले जाते तो आसानी से आम आदमी पार्टी इस सीट पर कब्जा जमा सकती थी.

मादीपुर विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच 10899 का अंतर रहा. वहीं कांग्रेस ने 17958 वोट हासिल किए. ऐसे में अगर दोनो दल साथ होते तो इस सीट पर भी चुनावी परिणाम बदल सकते थे. मालवीय नगर विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच 2131 वोटों का अंतर रहा. वहीं, कांग्रेस को यहां से 6770 वोट मिले. अगर यही वोट बीजेपी के खिलाफ AAP नेता को मिल जाता तो यहां के भी नतीजे बदल सकते थे.

महरौली विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी के गजेंद्र ने AAP नेता महेंद्र चौधरी को 1782 वोट से हराया और कांग्रेस के को यहां से 9731 वोट मिले. ऐसे में अगर यहां से कांग्रेस-AAP साथ लड़ते तो बीजेपी को हराया जा सकता था. नांगलोई जाट विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी ने AAP प्रत्याशी को 26251 वोट से हराया. कांग्रेस को इस सीट से 32028 वोट मिले. ऐसे में यहां AAP-कांग्रेस साथ रहते तो आसानी से ये सीट केजरीवाल के हिस्से आ सकती थी.

पटेल नगर विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी ने आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को 4049 वोटों से हराया. कांग्रेस को इसी सीट पर 4654 वोट मिले. वहीं, अगर कांग्रेस और AAP यहां भी साथ लड़ते तो काफी आराम से बीजेपी को पीछे कर सकते थे. संगम विहार विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी ने आम आदमी पार्टी को मात्र 344 वोटों से हराया. कांग्रेस को इसी सीट से 15000 वोट मिले.

सोचिए, अगर यहां बीजेपी के खिलाफ राहुल-केजरीवाल एक साथ लड़ते तो आराम से इस सीट पर आम आदमी पार्टी अपना परचम लहरा सकती थी. सीमापुरी विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी और आम आदमी पार्टी में हार का अंतर 10368 था. वहीं, कांग्रेस ने इस सीट पर 11823 वोट पाए. अगर यहां ये दूसरे और तीसरे नंबर वाले यानी AAP कांग्रेस-AAP एक साथ होते तो परिणाम बदल सकते थे.

तिमारपुर विधानसभा सीट… इस सीट बीजेपी मात्र 1168 वोट से जीती. वहीं, कांग्रेस को 8361 वोट मिले. ऐसे में अगर दोनों एक साथ लड़ते तो इस सीट के भी परिणाम बदल सकते थे. त्रिलोकपुरी विधानसभा सीट… इस सीट पर बीजेपी ने 392 वोट से जीत हासिल की है. वहीं, कांग्रेस को 6147 वोट मिले. ऐसे में अगर AAP और कांग्रेस साथ होती तो सिर्फ इस सीट पर ही नहीं बल्कि पूरी दिल्ली की सियासत में चुनावी नतीजे में बड़ा फेरबदल हो सकता था.

वो सीटे जहां कांग्रेस की वजह से हार गई AAP, गठबंधन होता तो बदल जाते सियासी समीकरण


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