Political – दिल्ली: सीलमपुर सीट पर कांग्रेस और AAP में नेताओं की अदला-बदली, क्या बदलेंगे समीकरण?- #INA

दिल्ली के दंगल में सीलमपुर विधानसभा सीट सुर्खियों में है. पहले यहां आम आदमी पार्टी ने अपने सीटिंग विधायक का टिकट काट कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे चौधरी मतीन के बेटे जुबैर को उम्मीदवार बना दिया. अरविंद केजरीवाल के इस फैसले से नाराज होकर अब सीटिंग विधायक अब्दुल रहमान ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है.

कहा जा रहा है कि कांग्रेस अब्दुल रहमान को सीलमपुर से उम्मीदवार बनाएगी. सीलमपुर दिल्ली विधानसभा की पहली सीट है, जहां पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस उम्मीदवारों की बीच अदला-बदली हुई है.

क्यों अहम है दिल्ली की सीलमपुर सीट?

सीलमपुर विधानसभा का नाम सीलमपुर गांव के नाम पर रखा गया है. सीलमपुर गांव शहादरा जिले में आता है. सीलमपुर हरियाणा से गुजरने वाली जीटी रोड से कनेक्टेट है. सीलमपुर ई-कचरा के निदान के लिए भी जाना जाता है. देश का सभी ई-कचरा यहीं पर खत्म किया जाता है.

कहा जाता है कि मुगल काल में ही सीलमपुर का अस्तित्व सामने आया. आजादी के आंदोलन में भी सीलमपुर की अहम भूमिका रही. 1990 के बाद सीलमपुर दंगे की वजह से जाने जाना लगा. 1992 में बाबरी दंगे के वक्त सीलमपुर भीषण हिंसा की चपेट में आया.

5 साल पहले जब सीएए को लेकर दिल्ली में हिंसा भड़की तो इसकी चपेट में सीलमपुर सबसे ज्यादा आया.

सीलमपुर सीट का जातीय समीकरण

नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली की यह सीट मुस्लिम बहुल है. यहां मुसलमानों की आबादी करीब 55 प्रतिशत के आसपास है. वो भी तब, जब 2008 के परिसीमन में यहां के कुछ मुस्लिम इलाकों का काटकर पड़ोस की विधानसभा सीट से अटैच कर दिया गया.

1993 से अब तक यहां पार्टी कोई भी हो, लेकिन विधायक मुस्लिम ही बनते रहे हैं. मुसलमानों के अलावा यहां ब्राह्मण और ठाकुरों की आबादी है. दोनों मिलाकर करीब 10 प्रतिशत के आसपास हैं.

सीलमपुर में दलित भी एक्स फैक्टर हैं, लेकिन तभी जब मुसलमानों के वोट बंट जाए. यहां जैन 1.6 प्रतिशत के आसपास हैं. इसके अलावा यहां वैश्य और अन्य ओबीसी जातियों के लोग भी रहते हैं.

5 बार जीत चुके हैं चौधरी मतीन अहमद

1993 के चुनाव में चौधरी मतीन अहमद पहली बार जनता दल के सिंबल पर इस सीट से मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस ने सुल्तान अहमद को टिकट दिया था. मतीन यह चुनाव करीब 1500 वोटों से जीत गए. दूसरे नंबर पर बीजेपी उम्मीदवार जयकिशन दास गुप्ता रहे.

1998 में मतीन अहमद निर्दलीय ही मैदान में उतरे. इस बार कांग्रेस ने सलाउद्दीन को उतारा, लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार इस बार भी तीसरे नंबर पर ही रहे. मतीन निर्दलीय ही यहां से जीत गए. 2003 में कांग्रेस ने यहां से मतीन को अपने सिंबल पर मैदान में उतारा.

कांग्रेस में आते ही मतीन के जीत की मार्जिन 21 हजार के पार पहुंच गई. मतीन 2008 और 2013 में कांग्रेस के सिंबल पर ही इस सीट से जीते. 2015 में उन्हें आप के मोहम्मद इसराक ने हरा दिया. 2020 में मतीन अब्दुल रहमान से हार गए.

2025 में मतीन के कांग्रेस से लड़ने की चर्चा थी, लेकिन चुनाव से ठीक पहले मतीन आप में शामिल हो गए. पार्टी ने मतीन के बेटे जुबैर को यहां से टिकट दिया है.

अब विधायक अब्दुल रहमान को जानिए

पार्षदी से राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले रहमान को 2020 में आप ने पहली बार विधानसभा का टिकट दिया. विधायक बनने से पहले रहमान जाफराबाद के पार्षद थे. 2019 में सीएए दंगा के वक्त रहमान पर भीड़ को उकसाने का आरोप लगा था. इस केस में उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज है.

रहमान ने 2020 के चुनाव में बीजेपी के कौशल मिश्रा को करीब 37 हजार वोटों से हराया. कांग्रेस के चौधरी मतीन 20 हजार वोट लाकर तीसरे नंबर पर रहे. इस चुनाव में रहमान को टिकट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन सर्वे को आधार बनाकर आप ने रहमान का टिकट काट दिया. अब रहमान कांग्रेस में आ गए हैं.

सीलमपुर का समीकरण बदलेगा?

कांग्रेस और आप की तरफ से मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस बार सीलमपुर का समीकरण बदलेगा? सीलमपुर में 1 लाख 90 हजार के करीब मतदाता हैं, जिसमें से 1 लाख 30 हजार के करीब वोट पड़ता है. पिछली बार आप के उम्मीदवार को 57 हजार वोट मिले थे. बीजेपी उम्मीदवार को 37 और कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में 20 हजार वोट पड़े थे.

इस बार अगर त्रिकोणीय लड़ाई होती है तो यहां का समीकरण बदल भी सकता है. कांग्रेस दिल्ली के चुनाव में इस बार मुस्लिम बहुल सीटों पर ज्यादा फोकस कर रही है. वहीं असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी मुस्लिम बहुल इलाके में ताल ठोकने को तैयार है.

एआईएमआईएम ने मुस्तफाबाद सीट पर उम्मीदवार का भी ऐलान कर दिया है.

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