Political – दिल्ली में बीजेपी CM फेस घोषित करने का दांव चले या नहीं, क्या रहा है पुराना इतिहास?- #INA

सीएम फेस घोषित करना कितना फायदेमंद?
दिल्ली चुनाव में भारतीय जनता पार्टी मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए बिना मैदान में उतरने की तैयारी में है. कहा जा रहा है कि यह फैसला आप सरकार के एंटी इनकंबेंसी को भुनाने और पुराने ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए लिया गया है. 1998 से लेकर अब तक बीजेपी ने दिल्ली के 5 चुनावों में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया, लेकिन एक बार भी पार्टी दिल्ली की सत्ता तक नहीं पहुंच पाई.
1998 और 2015 में तो पार्टी के परफॉर्मेंस में गिरावट ही दर्ज की गई. इसके ठीक उलट 2020 में बीजेपी बिना सीएम फेस मैदान में उतरी और 2015 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज की.
आप लगातार उठा रही है सवाल
सीएम फेस को लेकर सत्ताधारी आम आदमी पार्टी लगातार सवाल उठा रही है. शुक्रवार को एक सवाल के जवाब में आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने कहा कि आपदा बीजेपी में आई हुई है. देश की सबसे बड़ी पार्टी दिल्ली चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं कर पा रही है.
आप लगातार अरविंद के मुकाबले कौन का सवाल बीजेपी से पूछ रही है. आप ने अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है.
सुषमा के नेतृत्व में बुरी तरह हारी
1998 में सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री थीं. बीजेपी अटल और सुषमा की जोड़ी के जरिए फिर से सरकार में आने की कवायद कर रही थी, लेकिन आंतरिक कलह ने पार्टी को दिल्ली में डूबो दिया. 1998 के चुनाव में कांग्रेस को 52 सीटों पर जीत मिली. 1993 में कांग्रेस 14 पर ही जीत पाई थी.
वहीं बीजेपी की सीटें 49 से घटकर 15 पर पहुंच गई. कांग्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी. शीला को सोनिया गांधी का करीबी माना जाता था.
खुराना भी नहीं नहीं दिला पाए जीत
2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस शीला दीक्षित के चेहरे पर चुनाव लड़ने का फैसला किया. उस वक्त केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी. बीजेपी ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए मदनलाल खुराना के चेहरे को आगे किया.
खुराना को दिल्ली बीजेपी का बड़ा नेता माना जाता था. खुराना के नाम की घोषणा तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने की थी. बीजेपी ने पूरे चुनाव को खुराना वर्सेज शीला करने की कोशिश, जिसमें कांग्रेस को फायदा मिल गया.
2003 के चुनाव में कांग्रेस को 47 और बीजेपी को 20 सीटों पर जीत मिली. इस जीत के बाद शीला ने दूसरी बार दिल्ली की कमान संभाली. खुराना केंद्रीय राजनीति में चले गए.
वीके मल्होत्रा का चेहरा भी पसंद नहीं
2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शीला के मुकाबले विजय कुमार मल्होत्रा के चेहरे को आगे किया. विजय मल्होत्रा दिल्ली बीजेपी के कद्दावर नेता माने जाते थे. 2008 के चुनाव में शीला वर्सेज मल्होत्रा की इस लड़ाई में भी कांग्रेस ने जीत हासिल कर ली.
2008 में कांग्रेस को 43, बीजेपी को 23 और बीएसपी को 2 सीटों पर जीत मिली. मुख्यमंत्री न बन पाए वीके मल्होत्रा को पार्टी ने दिल्ली में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी सौंप दी. मल्होत्रा 5 साल तक नेता प्रतिपक्ष रहे.
सीएम कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए हर्षवर्धन
अन्ना आंदोलन के बाद दिल्ली में एक नई पार्टी आप का उदय हो गया था. कांग्रेस के खिलाफ भारी एंटी इनकंबेंसी देखी जा रही थी. बीजेपी ने 2013 के विधानसभा चुनाव में नए चेहरे हर्षवर्धन को सीएम फेस घोषित किया. हालांकि, दिल्ली के इस त्रिकोणीय मुकाबले में भी हर्षवर्धन बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं दिला पाए.
2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 32, आप को 28 और कांग्रेस को 8 सीटों पर जीत मिली. बहुमत न होने की वजह से हर्षवर्धन मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए. हर्षवर्धन इसके बाद केंद्र की राजनीति में चले गए.
सीएम चेहरा किरण बेदी खुद भी हार गई
2015 में भारतीय जनता पार्टी ने अन्ना आंदोलन में अरविंद केजरीवाल के सहयोगी रहे किरण बेदी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया. बेदी को कृष्णानगर सीट से विधायकी का टिकट भी दिया गया. पूरे चुनाव में बेदी का सीधा मुकाबला अरविंद केजरीवाल से था.
इस चुनाव में अरविंद ने बाजी मार ली. बीजेपी 32 से 3 सीट पर पहुंच गई. वहीं आप 28 से 67 सीटों पर चली गई. बेदी खुद की कृष्णानगर सीट भी हार गई.
2020 में बिना चेहरा परफॉर्मेंस में सुधार
2020 में बीजेपी ने दिल्ली में किसी भी नेता को चेहरा घोषित नहीं किया. पार्टी सामूहिक नेतृत्व के सहारे मैदान में उतरी. आप ने इस चुनाव में चेहरे को खूब मुद्दा बनाया. इसके बावजूद बीजेपी के परफॉर्मेंस में सुधार हुआ.
2020 में बीजेपी ने 8 सीटों पर जीत हासिल की. यह 2015 के 3 से काफी ज्यादा था. बीजेपी के वोट प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई. 2015 में पार्टी को 24 प्रतिशत वोट मिले थे, जो 2020 में बढ़कर 30 प्रतिशत हो गया.
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