Political – दिल्ली में हाथ का साथ क्यों नहीं चाहते अरविंद केजरीवाल? इन 5 वजहों में छिपा है राज- #INA

दिल्ली में कांग्रेस से गठबंधन क्यों नहीं करना चाहते अरविंद केजरीवाल

दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करने का फैसला किया है. बुधवार को पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने उन अटकलों पर विराम लगा दिया, जिसमें कांग्रेस के साथ आप के गठबंधन की बात कही जा रही थी. केजरीवाल ने साफ-साफ कहा कि दिल्ली के चुनाव में आप अकेले मैदान में उतरेगी.

आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन की चर्चा तब जोर पकड़ ली, जब अरविंद केजरीवाल वरिष्ठ नेता शरद पवार से मिलने पहुंचे थे. दोनों की बैठक में कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी और कांग्रेस अध्यक्ष के कॉर्डनेटर गुरदीप सिंह सप्पल मौजूद थे.

आप और कांग्रेस दोनों इंडिया गठबंधन में शामिल हैं और दोनों ही पार्टियां लोकसभा में मिलकर लड़ दिल्ली में लड़ चुकी है. ऐसे में चर्चा इस बात की है कि आखिर अरविंद केजरीवाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को साथ क्यों नहीं लेना चाहते हैं?

1. चुनाव में स्थानीय मुद्दे के दबने का डर

आम आदमी पार्टी की कवायद दिल्ली के विधानसभा चुनाव को स्थानीय मुद्दे पर लड़ने की है. यही वजह है कि लगातार अरविंद केजरीवाल दिल्ली के छोटे-छोटे मुद्दे को उठा रहे हैं. मंगलवार को आप ने दिल्ली के ऑटो ड्राइवर्स को लेकर 5 गारंटी की घोषणा की.

इसी तरह आप की नजर बस ड्राइवर्स और अन्य छोटे-छोटे ग्रुप पर है. आप फ्री पानी और फ्री बिजली के मुद्दे पहले से ही उठा रही है. सफाई कर्मी के मुद्दे को भी आप खूब तरजीह दे रही है.

स्थानीय मुद्दे पर चुनाव लड़ने का आप को फायदा भी हो चुका है. 2013, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आप ने बड़ी जीत हासिल की. आप अगर कांग्रेस को साथ लेती है तो पूरा चुनाव राष्ट्रीय स्तर का हो जाएगा.

बीजेपी चुनाव में आप से ज्यादा कांग्रेस को निशाने पर लेगी. पार्टी महाराष्ट्र और जम्मू कश्मीर में इस रणनीति को अपना भी चुकी है. कांग्रेस से गठबंधन न करने की यह एक बड़ी वजह है.

2. कांग्रेस के पास अपना कोई वोटबैंक नहीं

1998 से 2013 तक दिल्ली की सत्ता में रही कांग्रेस के पास अब अपना कोई मजबूत वोटबैंक नहीं है. 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 4.26 प्रतिशत वोट मिले थे, जो 2015 के 9.6 प्रतिशत वोट से काफी कम था. कांग्रेस 2015 और 2020 में एक भी सीट नहीं जीत पाई.

वर्तमान में दिल्ली में कांग्रेस के पास न तो वोटबैंक है और न ही मजबूत संगठन. जिला स्तर पर अभी तक नई नियुक्ति नहीं हुई है. वहीं प्रदेश अध्यक्ष भी अंतरिम तौर पर पार्टी की कमान संभाल रहे हैं.

कांग्रेस से गठबंधन न करने के फैसले के पीछे इसे भी एक अहम वजह माना जा रहा है. कांग्रेस से गठबंधन की बजाय आप ओल्ड ग्रैंड पार्टी के उन उम्मीदवारों को साध रही है, जिनके पास अपना मजबूत वोटबैंक है.

पार्टी ने इसी कड़ी में सीलमपुर से चौधरी मतीन अहमद के बेटे जुबैर और सीमापुरी से वीर सिंह धींगान को टिकट दिया है.

3. मुसलमान जिताऊ पार्टी की तरफ ही जा रहे

कांग्रेस इस बार मुसलमानों को साधने में जुटी है. पार्टी मुसलमानों के जरिए दिल्ली में अपना खाता खोलना चाहती है. इसी रणनीति के तहत पार्टी ने काजी मोहम्मद निजामुद्दीन को दिल्ली का प्रभारी नियुक्त किया है. दिल्ली में करीब 12 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं, जो करीब 10 सीटों का समीकरण तय करते हैं.

जिन सीटों पर मुसलमान जीत-हार में अहम भूमिका निभाते हैं, उनमें बल्लीमारान, चांदनी चौक, मटिया महल, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, सीलमपुर, ओखला, त्रिलोकपुरी, जंगपुरा की सीटें हैं.

हालांकि, पिछले 5 साल में मुसलमानों का जो वोटिंग पैटर्न रहा है, उसमें मुस्लिम उन्हीं पार्टियों के पक्ष में मतदान करते हैं जो बीजेपी को पटखनी देने में सक्षम हैं. बंगाल से बिहार और यूपी से लेकर महाराष्ट्र तक इसका उदाहरण है.

आम आदमी पार्टी कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा मजबूत स्थिति में है.

4. कांग्रेस को दिल्ली में संजीवनी नहीं देना चाहते

दिल्ली में कांग्रेस लगातार 2 चुनाव से शून्य सीट जीत रही है. पार्टी के पास राष्ट्रीय राजधानी में कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं है. संगठन भी काफी कमजोर स्थिति में है. आप के सहयोग से अगर कांग्रेस चुनाव लड़ती है तो बदले समीकरण में कुछ सीटों पर जीत भी सकती है.

कांग्रेस के खिलाफ ही सियासत कर राष्ट्रीय पार्टी बनी आप दिल्ली में उसे फिर से संजीवनी नहीं देना चाहती है. यही वजह है कि आप ने सीधे-सीधे गठबंधन की डिमांड को खारिज कर दिया है.

आप हरियाणा में सीट न मिलने से भी नाराज है. आप हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ना चाहती थी, लेकिन कांग्रेस ने उसकी मांगों को मानने से इनकार कर दिया.

5. लोकसभा का प्रयोग फेल हो चुका है

2024 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी दिल्ली में कांग्रेस के साथ मैदान में उतरी. समझौते के तहत दिल्ली की 7 में से 4 सीटों पर आप और 3 सीटों पर कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारे.

दोनों ही पार्टियों का दिल्ली की सभी 7 सीटों पर बीजेपी से मुकाबला था. काफी जद्दोजहद के बावजूद भी बीजेपी सभी 7 सीटों पर जीत गई. दिलचस्प बात है कि कांग्रेस के उम्मीदवारों ने हार के लिए गठबंधन में सहयोग न मिलने को वजह बता दिया.

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