Political – भतीजे अजित अकेले नहीं… शरद पवार की हिटलिस्ट में NCP के ये 10 उम्मीदवार- #INA

असली एनसीपी को लेकर भतीजे अजित से सियासी मात खा चुके चाचा शरद पवार अब बदला लेने के मूड में हैं. विधानसभा चुनाव में अजित के साथ-साथ एनसीपी की टूट में अहम किरदार निभाने वाले 10 नेताओं को सीनियर पवार ने रडार पर ले रखा है. कहा जा रहा है कि इन 10 नेताओं को चुनाव में पटखनी देने के लिए शरद पवार खुद रणनीति तैयार कर रहे हैं.

यह रणनीति कैंपेनिंग से लेकर उम्मीदवार सिलेक्शन तक में दिख रही है. रणनीति का केंद्र है- मुंबई का वाईवी चव्हाण सेंटर. यहीं से शरद गद्दारों का पंचनामा तैयार कर रहे हैं. दरअसल, एनसीपी को तोड़ने वाले 10 नेताओं को शरद पवार गुट ने गद्दारों की उपाधि दे रखी है. इसको लेकर सीनियर कई बार कह चुके हैं कि हम नई टीम तैयार करेंगे और इन नेताओं को बाहर कर देंगे.

युगेंद्र को उतारकर अजित की मुश्किलें बढ़ाईं

युगेंद्र पवार अजित के भाई श्रीनिवास पवार के बेटे हैं. शरद पवार ने अजित के खिलाफ बारामती सीट से युगेंद्र को उतार दिया है. अजित की पत्नी हाल ही के लोकसभा चुनाव में बारामती सीट से उतरी थी, जहां अजित की सीट पर वे 43 हजार वोटों से पिछड़ गईं थीं.

ऐसे में अजित के खिलाफ युगेंद्र का मैदान में उतरना शरद का बड़ा सियासी दांव माना जा रहा है.

अजित के साथ-साथ एनसीपी के इन 10 दिग्गजों को पटखनी देने के लिए शरद पवार गद्दार वर्सेज वफादारी का स्क्रिप्ट लिख रहे हैं. एनसीपी से जुड़े नेताओं के मुताबिक शरद पवार चाहते हैं कि लोकसभा चुनाव की तरह इस चुनाव में भी गद्दारी का मुद्दा हावी रहे.

भतीजे ही नहीं, शरद के रडार पर ये 10 नेता भी

छगन भुजबल- शिंदे सरकार में मंत्री छगन भुजबल को एक वक्त शरद पवार का करीबी माना जाता था. छगन जब कोर्ट-कचहरी में फंसे, तब भी शरद उनके साथ मजबूती से खड़े थे, लेकिन 2023 में जब अजित ने बगावत का बिगुल फूंका तो छगन शरद से छिटक गए.

शरद पवार का साथ छोड़ छगन भुजबल अजित के पाले में चले गए. सीनियर पवार ने तब से ही छगन को रडार में ले रखा है. 2023 में जब शरद ने पार्टी की टूट के बाद यात्रा शुरू की, तो उन्होंने इसके लिए येवला सीट को ही चुना.

येवला छगन भुजबल की सीट है. कहा जा रहा है कि इस सीट से कौन उम्मीदवार होगा, इसके लिए शरद पवार ने कई राउंड के इंटरव्यू लिए हैं. हालिया लोकसभा चुनाव में अजित पवार समर्थित उम्मीदवार येवला में पिछड़ गए थे.

ऐसे में शरद को उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव में भी येवला की जनता छगन भुजबल को गद्दारी का सबक सिखाएंगे.

दिलीप वल्से पाटिल- महाराष्ट्र सरकार के कद्दावर मंत्री दिलीप वल्से पाटिल एक वक्त शरद पवार के आंख-कान हुआ करते थे. पवार के निजी सचिव रहे वल्से पाटिल कई सरकारों में मंत्री रहे हैं. बगावत के वक्त पाटिल ने अजित का दामन थाम लिया.

अजित ने पाटिल को फिर से आंबेगाव सीट से ही उम्मीदवार बनाया है. पुणे जिले की आंबेगाव एनसीपी का गढ़ माना जाता है. शरद पवार ने आंबेगाव से देवदत्त निकम को उम्मीदवार बनाया है. निकम सहकारी नेता हैं और आंबेगाव तालुका में चीनी मील का प्रबंधन करते हैं.

निकम को यहां के स्थानीय सांसद अमोल कोल्हे का समर्थन प्राप्त है. कहा जा रहा है कि निकम को उतारकर शरद वल्से पाटिल को चित करना चाहते हैं. हालिया लोकसभा चुनाव में आंबेगाव में शरद पवार की पार्टी ने बड़ी बढ़त हासिल की थी.

हसन मुश्रीफ- शरद पवार के करीबी हसन मुश्रीफ के खिलाफ भी शरद पवार ने मजबूत मोर्चेबंदी कर दी है. मुश्रीफ भी बगावत कर अजित के साथ आ गए थे. मुश्रीफ को शरद पवार ने ही राजनीति में आगे बढ़ाया. कहा जा रहा है कि अब पवार मुश्रीफ का सियासी चैप्टर क्लोज करने की कवायद में जुटे हैं.

अजित पवार ने मुश्रीफ को कागल सीट से मैदान में उतारा है. शरद ने यहां से समरजीत घटके को सिंबल सौपा है. 2019 में निर्दलीय लड़ने वाले घटके को 88 हजार वोट मिले थे. हालांकि, मुश्रीफ ने यहां से 28 हजार वोटों से जीत दर्ज कर ली थी.

हालांकि, इस बाक मुश्रीफ की राह आसान नहीं है. इस बार शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस का समर्थन भी समरजीत के साथ है.

नरहरि झिरवाल- विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि झिरवाल भी शरद पवार के रडार पर हैं. झिरवाल डिंडौरी सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं. बगावत के वक्त उन्होंने अजित का दामन थाम लिया था, जिससे शरद नाराज हो गए थे. अजित ने झिरवाल को फिर से मैदान में उतारा है.

झिरवाल को सबक सिखाने के लिए शरद यहां खुद रणनीति तैयार कर रहे हैं. हाल ही में सीनियर पवार झिरवाल के बेटे को अपने पाले में लाने में कामयाब रहे थे. शरद की मोर्चेबंदी को देखते हुए झिरवाल भी डरे हुए हैं. हाल ही में उनका एक बयान वायरल हुआ था, जिसमें वे कह रहे थे कि मेरे साथ शरद पवार का आशीर्वाद है.

संजय बनसोडे- एकनाथ शिंदे सरकार में मंत्री संजय बनसोडे भी शरद पवार के निशाने पर हैं. बगावत के वक्त संजय ने भी अजित का हाथ थाम लिया था. अब चुनाव में शरद संजय बनसोडे को सबक सिखाने में जुटे हुए हैं. उदगीर से अजित के सिंबल पर उतरे संजय के खिलाफ शरद ने सुधाकर भालेराव को उम्मीदवार बनाया है.

2014 में बीजेपी के सिंबल पर भालेराव ने उदगीर में संजय को पटखनी दी थी. भालेराव के मैदान में उतरने से बनसोडे की राह मुश्किल हो गई है.

चेतन तुपे- पुणे जिले की हडसपर सीट से विधायक चेतन विठ्ठल तुपे भी बगावत के वक्त शरद पवार का साथ छोड़ अजित के साथ चले गए थे. 2019 में तुपे को शरद पवार ने ही टिकट देकर हडसपर से विधानसभा भेजा था. बगावत के वक्त सीनियर पवार को उम्मीद थी कि यंग ब्रिगेड के तुपे अजित के साथ नहीं जाएंगे.

तुपे के खिलाफ शरद पवार ने संगठन के नेता प्रशांत जगताप को उम्मीदवार बना दिया है. पहले यहां से किसी दूसरे नाम के लड़ने की चर्चा थी लेकिन आखिर वक्त में वफादारी का हवाला देकर प्रशांत को शरद ने सिंबल दे दिया.

प्रशांत बारामती में शरद पवार के लिए काम चुके हैं. अजित के बगावत के वक्त प्रशांत मजबूती से बारामती में मोर्चा संभाले हुए थे.

दत्तात्रेय भरणे- कांग्रेस और एनसीपी के गढ़ माने वाले इंदापुर विधानसभा सीट से 2014 और 2019 में दत्तात्रेय भरणे ने जीत हासिल की. बगावत के वक्त दत्तात्रेय भरणे शरद का साथ छोड़ अजित के पाले में चले गए.

भरणे को सबक सिखाने के लिए शरद ने खुद बिसात बिछाई है. पहले बीजेपी के हर्षवर्धन पाटिल को लाकर यहां से उम्मीदवार बनाया है और अब खुद यहां का गणित देख रहे हैं. बारामती लोकसभा की इंदापुर सीट पर 2024 में सुप्रिया सुले को 26 हजार की बड़ी बढ़त मिली थी.

शरद इस बढ़त को बरकरार रखना चाहते हैं. हर्षवर्धन पाटिल 2019 में इस सीट से 3 हजार वोटों से चुनाव हारे थे. ऐसे में उनके फिर से मैदान में उतरने से भरणे की स्थिति बेहद ही कठिन हो गई है.

भगवंतराव आत्रम- शिंदे सरकार में ड्रग्स मंत्री भगवंतराव आत्रम को भी एक वक्त में शरद पवार का करीबी माना जाता था. आत्रम 2004 में भी अहेरी सीट से विधायक चुने गए थे. 2023 के बगावत के वक्त शरद का साथ छोड़ आत्रम अजित के साथ चले गए.

अब अहेरी सीट से शरद पवार ने आत्रम परिवार के भाग्यश्री को मैदान में उतारा है. भाग्यश्री भगवंतराव की बेटी है और पहले संगठन का कामकाज देखती थी. हालिया लोकसभा चुनाव में अहिरी विधानसभा सीट पर अजित समर्थित उम्मीदवार फिसड्डी साबित हुए थे.

आशुतोष काले- कोपरगांव के विधायक आशुतोष काले भी हिटलिस्ट में हैं. काले के दादाजी शंकरराव काले ही शरद पवार के मित्र थे. शंकरराव की वजह से ही 2019 में आशुतोष को टिकट दिया गया था. 2023 में बगावत के वक्त काले अजित के साथ चले गए.

शरद पवार ने यहां से अब संदीप वारपे को उतारा है. पेशे से वकील संदीप एनसीपी के स्थापना के वक्त से ही पवार के साथ जुड़े हैं. संदीप के लिए यह सीट शिवसेना से शरद पवार ने ली है.

धनंजय मुंडे- शिंदे सरकार में मंत्री धनंजय मुंडे दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे के भतीजे हैं. धनंजय ने जब चाचा से बगावत की तो शरद ने उन्हें अपने पाले में ले लिया. 2019 में शरद पवार की पार्टी सिंबल पर धनंजय चुनाव जीत गए. 2023 के बगावत में धनंजय अजित के साथ चले गए.

अब धनंजय के खिलाफ शरद पवार खुद सियासी बिसात बिछा रहे हैं. यहां से कौन उम्मीदवार होगा और कैसे समीकरण से मात दी जाएगी. इसकी रणनीति मुंबई के वाईवी चव्हाण सेंटर में तैयार किया जा रहा है.

धनंजय की परली सीट पर शरद ने अभी तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन कहा जा रहा है कि यहां से ओबीसी चेहरा ही उतारा जाएगा.

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