Political – हुड्डा की हरियाणा से लेकर दिल्ली तक बैटिंग, नहीं बनना चाहते 2005 के भजनलाल- #INA

भूपेंद्र सिंह हुड्डा और भजनलाल

हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे मंगलवार को आएंगे, लेकिन उससे पहले आए एग्जिट पोल के बाद ही किलेबंदी तेज हो गई है. दस साल से प्रदेश की सत्ता पर काबिज बीजेपी को इस बार चमत्कार से ही उम्मीद है, लेकिन एग्जिट पोल के अनुमान से कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं. कांग्रेस का हरियाणा में दस साल से चला आ रहा सत्ता का वनवास खत्म होता दिख रहा है, जिसके बाद पार्टी नेताओं की नजर सीएम की कुर्सी पर है. ऐसे में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हरियाणा से लेकर दिल्ली तक सियासी बैटिंग शुरू कर दी है, क्योंकि वो 2005 के ‘भजनलाल’ नहीं बनना चाहते हैं?

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बूथ मैनेजमेंट से टिकट वितरण और प्रचार में सक्रिय भूमिका निभाने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने रविवार को रोहतक में अपने आवास पर सारा दिन लोगों से मिलते रहे और फोन पर जीत की संभावना वाले प्रत्याशियों से बातचीत करते रहे. उन्होंने कांग्रेस के एक-एक प्रत्याशी से रिपोर्ट ली. इस तरह रोहतक में समर्थकों के बीच पूरा दिन बिताने के बाद भूपेंद्र हुड्डा रविवार को दिल्ली आ गए हैं. इसी तरह कुमारी सैलजा राजस्थान के सालासर धाम में माथा टेककर दिल्ली लौटी हैं तो राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला ने केदारनाथ धाम के दर्शन किए हैं.

कांग्रेस में सीएम फेस पर गेम ऑन

कांग्रेस ने हरियाणा में रणनीति के तहत किसी भी नेता को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया था, लेकिन भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला तक अपनी-अपनी दावेदारी करते रहे हैं. तीनों ही नेता गांधी परिवार और कांग्रेस हाईकमान के करीबी माने जाते हैं. चुनाव के दौरान तीनों कांग्रेसी नेता सीएम बनने की इच्छा भी सार्वजनिक रूप से जाहिर करते रहे हैं. हुड्डा पहले दो बार सीएम रह चुके हैं और तीसरी बार के लिए भी मजबूत दावेदार हैं. कुमारी सैलजा मतदान से पहले ही सोनिया गांधी से मुलाकात कर चुकी हैं और अब भूपेंद्र हुड्डा भी दिल्ली पहुंच चुके हैं. चुनाव नतीजे से पहले ही कांग्रेस नेता अपनी-अपनी फिल्डिंग सजाने लगे हैं.

सैलजा ने किया जीत का दावा

कुमारी सैलजा ने दावा किया है कि हरियाणा में कांग्रेस की 60 से अधिक सीटें आ रही हैं. पिछले दस साल के दौरान बीजेपी जो प्रदेश को पीछे ले गई, अब उससे विपरीत हो और लोगों की सरकार बने. हरियाणा के हर वर्ग को लगे कि उसकी सरकार है. वहीं, हुड्डा के करीबी हिसार से कांग्रेस के सांसद जेपी ने कहा कि मुख्यमंत्री पद के चयन के लिए कांग्रेस में सिस्टम है, सीएम बनाने को लेकर विधायकों से अनुशंसा ली जाती है. इसके बाद हाईकमान तय करते हैं कि कौन मुख्यमंत्री होगा. इस समय प्रदेश में एक ही नेता है, जो जननायक है और जनता का नेता है, उसका नाम भूपेंद्र सिंह हुड्डा है. ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व उनके नाम को आगे बढ़ाएगा.

भजनलाल नहीं बनना चाहते भूपेंद्र हुड्डा

हरियाणा चुनाव को लेकर एग्जिट पोल ने जिस तरह से कांग्रेस के 55 से 60 सीटें जीतने का अनुमान जताया है. अगर यही आंकड़े चुनाव नतीजे में बदलते हैं तो फिर कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में होगी. इसीलिए हुड्डा एक्टिव हो गए हैं और दिल्ली दरबार में अपनी बैटिंग शुरू कर दी है. 2005 में कांग्रेस हाईकमान ने भजनलाल की जगह भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया था. कांग्रेस हाईकमान इस बार भी उसी तर्ज पर कोई फैसला न ले, इसलिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा पहले से ही पूरी तरह सतर्क हैं और जीतने वाले संभावित उम्मीदवारों से लेकर कांग्रेस हाईकमान को साधने में जुटे हैं. ऐसे में सवाल यही उठता है कि आखिर कैसे भजनलाल के साथ खेला हो गया था.

2005 में भजनलाल के साथ ‘खेला’

भूपेंद्र सिंह हुड्डा से काफी पहले हरियाणा की सियासत में भजनलाल अपनी जड़े जमाए हुए थे. हुड्डा 1991 से लेकर 1998 तक लगातार तीन बार देवीलाल को मात देकर सांसद बने थे, लेकिन 1999 में हार गए थे. इसके बाद 2004 में भूपेंद्र हुड्डा एक बार फिर से लोकसभा सांसद बनने में कामयाब रहे, उस वक्त हरियाणा के मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला थे. कांग्रेस में भजनलाल ने जमीनी नेता के तौर पर अपनी पहचान बना रखी थी, क्योंकि वो कई बार सीएम रह चुके थे जबकि भूपेंद्र हुड्डा को ‘ड्राइंग रूम पॉलिटिक्स’ में महारत हासिल थी. इसके बाद भी भजनलाल जैसे दिग्गज के अरमानों पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने पानी फेर दिया था.

लोकसभा संसद रहते हुए दिल्ली के कांग्रेस कल्चर को भी अच्छी तरह से समझ चुके थे. कांग्रेस के पुराने दिग्गज नेताओं की तरह भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी देर रात तक जागते थे और लोगों से मिलते रहते थे. इस तरह हुड्डा ने गांधी परिवार के करीबी नेताओं के बीच अपनी पैठ जमा ली थी. नरसिम्हा राव के मददगार बनकर भजनलाल सोनिया गांधी की नाराजगी मोल ले चुके थे जबकि हुड्डा ने अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा जैसे नेताओं की मदद से सोनिया गांधी की कृपा हासिल कर ली थी.

2005 में कैसे बदला था हुड्डा ने खेल

कांग्रेस केंद्र की सत्ता में 2004 में वापसी कर चुकी थी. मनमोहन सिंह पीएम थे और सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थी. लोकसभा चुनाव के एक साल बाद 2005 में हरियाणा के विधानसभा चुनाव हुए. कांग्रेस ने हरियाणा का चुनाव भजनलाल के नेतृत्व में लड़ा. कांग्रेस 67 सीटें जीतकर बहुमत से सत्ता में आई तो भजनलाल सीएम पद के दावेदार माने जा रहे थे. कांग्रेस के ज्यादातर विधायक भजनलाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए समर्थन कर रहे थे. हुड्डा के नाम की चर्चा दूर-दूर तक नहीं थी.

सोनिया गांधी ने चुनाव नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री के चयन के लिए कांग्रेस पर्यवेक्षकों की एक टीम दिल्ली से चंडीगढ़ भेजी. इन पर्यवेक्षकों ने विधायकों से बात करके उनसे इस बात पर सहमति ले ली कि इस बार मुख्यमंत्री का फैसला आलाकमान तय करेगा. सोनिया गांधी के विश्वासपात्र जनार्दन द्विवेदी को ये बात अच्छे से पता थी कि पार्टी के ज्यादातर विधायक भजनलाल को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में हैं. इसके बाद उन्होंने हर विधायक से मुख्यमंत्री पद के लिए उसकी पसंद को निजी तौर पर कागज पर लिखवा लिया. विधायकों ने ये फैसला ले लिया कि मुख्यमंत्री का फैसला सोनिया गांधी करेंगी.

भजनलाल का सपना हुआ चकचनाचूर

भजनलाल ने विधायकों को अपने साथ जुटा रखा था तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अहमद पटेल के साथ मिलकर सियासी तानाबाना बुन रखा था. अहमद पटेल ने चौधरी वीरेंद्र सिंह, कुमारी सैलजा, उद्योपति ओपी जिंदल को हुड्डा के समर्थन में तैयार कर लिया था. भजनलाल 4 मार्च 2005 को अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली में अपने आवास पर डटे हुए थे. वो इस बात का इंतजार कर रहे थे कि सोनिया गांधी हरियाणा के मुख्यमंत्री पद के लिए उनके नाम का ऐलान करें, लेकिन शाम होते-होते उनका सपना चकनाचूर हो चुका था.

कांग्रेस हाईकमान ने हरियाणा के नए सीएम के तौर पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नाम का ऐलान किया. अब हुड्डा को सीएम स्वीकार करने के अलावा विधायकों के पास कोई चारा नहीं था. ऐसे में कांग्रेस विधायकों के सामने ये साफ हो गया कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही सोनिया गांधी की पसंद हैं. कांग्रेस विधायक धीरे-धीरे भजनलाल के आवास से खिसकने लगे और हुड्डा के साथ खड़े हो गए.

हुड्डा सीएम बनने में हुए सफल

भजनलाल को ख़्वाब में भी यह गुमान नहीं था कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा उनके लिए कोई सियासी खतरा बनेंगे और उनको उनके ही सियासी खेल में मात दे देंगे. भूपेंद्र हुड्डा में चौधरी देवीलाल को तीन बार लोकसभा चुनाव में हराने के बाद ही आत्मविश्वास आ गया था कि अब वो हरियाणा की सत्ता पर काबिज होकर रहेंगे. इसके लिए उन्होंने कांग्रेस हाईकमान का विश्वास जीता और उसके बाद भजनलाल को चुनौती देने की स्थिति में पहुंचे थे. हरियाणा के सीएम बनने में सफल रहे.

भजनलाल समर्थकों ने किया था विरोध

कांग्रेस हाईकमान के फैसले के बाद भजनलाल के समर्थकों ने इस निर्णय का जमकर विरोध किया था. भजनलाल कांग्रेस नेतृत्व पर अपनी पीठ में छुरा घोंपने का आरोप लगाते रहे, लेकिन कांग्रेस ने अपना फैसला बदलने से इंकार कर दिया. हालांकि, भजनलाल के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए उनके बेटे चंद्रमोहन को उप मुख्यमंत्री बना दिया गया. भजनलाल जब तक जीवित रहे उन्हें इस बात का दुख बना रहा, लेकिन हुड्डा खुद को हरियाणा की सत्ता में स्थापित करने में सफल रहे. इसके बाद 2009 में चुनाव में पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी लेकिन बहुमत से काफी दूर थी. कांग्रेस 67 से कम होकर 40 पर पहुंच गई. हुड्डा ने भजनलाल के पुत्र कुलदीप विश्नोई की नई नवेली पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस के सभी विधायकों को तोड़कर मिला लिया.

हुड्डा ने शुरू की सियासी फिल्डिंग

हरियाणा में दस साल के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीद दिख रही है. एग्जिट पोल में भी अनुमान कांग्रेस के पक्ष में है. ऐसे में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मुख्यमंत्री पद के लिए सियासी फिल्डिंग सजाने लगी है. इसीलिए हुड्डा ने टिकट वितरण के दौरान से ही अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी थी. हुड्डा अपने 65 से 70 करीबी नेताओं को टिकट दिलाने में सफल रहे हैं. इसके पीछे रणनीति यह है कि अगर कांग्रेस हाईकमान बदलाव को लेकर कोई फैसला लेते हैं तो हुड्डा विधायकों की अनुशंसा का पासा फेंक सकते हैं.

कांग्रेस की सीटें 55 से 60 आती है तो उसमें 40 हुड्डा के समर्थक होंगे तो कुमारी सैलजा के पांच से छह समर्थक ही विधायक बन सकते हैं. ऐसे ही रणदीप सुरजेवाला के साथ भी है. कैथल से उनके बेटे ने चुनाव लड़ा है और नरवाना सीट पर उनके एक करीबी को कांग्रेस ने उतारा था. इस तरह हुड्डा का सियासी पलड़ा काफी भारी नजर आ रहा है. इसीलिए हुड्डा ने अब हरियाणा से लेकर दिल्ली तक की दौड़ लगा दी है. हुड्डा कांग्रेस हाईकमान के दरबार में दस्तक देकर अपनी दावेदारी को मजबूत कर लेना चाहते हैं ताकि भजनलाल जैसा सियासी हश्र न हो?

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