धर्म-कर्म-ज्योतिष – Antim Sanskar: दाह संस्कार के समय ज्यादातर पुरुषों की छाती क्यों नहीं जलती, जानें फिर उसका क्या करते हैं #INA
Antim Sanskar: अंतिम संस्कार के बाद शारीरिक और आध्यात्मिक स्तर पर क्या बचता है, इसे जानने की जिज्ञासा हर किसी को होती है. भारतीय परंपरा और विज्ञान दोनों ही इस विषय पर अपनी-अपनी रिसर्च कर चुके हैं. अंतिम संस्कार के बाद शरीर के कई भाग अग्नि में जल जाते हैं, लेकिन कुछ भाग पूरी तरह से नहीं जल पाते. इसमें पुरुषों की छाती विशेषकर उनकी छाती की हड्डी जिसे अस्थि कहते हैं का बचना सामान्य बात है. यह खासकर इसलिए होता है क्योंकि छाती की स्टर्नम हड्डी या पसलियों के कुछ हिस्से बहुत घनी और मजबूत होती हैं, और इन्हें जलने में अधिक समय लगता है.
अंतिम संस्कार के बाद बची छाती का क्या करते हैं?
परंपरा के अनुसार, दाह संस्कार के बाद बची हुई हड्डियों और राख को एकत्र किया जाता है. इसे अस्थि संचय कहा जाता है. यह सामग्री फिर किसी पवित्र नदी, जैसे गंगा, में विसर्जित की जाती है. माना जाता है कि ऐसा करने से आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है. हिंदू धर्म में अस्थि विसर्जन को अंतिम संस्कार का अत्यंत महत्वपूर्ण चरण माना गया है. बची हुई अस्थियों को परिवार के सदस्य आदरपूर्वक एकत्र करते हैं और श्राद्ध कर्म के साथ विसर्जन करते हैं. छाती की हड्डी का बचना जीवन के शक्तिशाली केंद्र (हृदय क्षेत्र) का प्रतीक माना जाता है. इसे विसर्जन से पहले विशेष सम्मान दिया जाता है.
छाती का न जलने का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
छाती की हड्डी (स्टर्नम) बहुत घनी और कठोर होती है. ये हड्डी मानव शरीर की सबसे मजबूत हड्डियों में से एक है और इसे पूरी तरह से जलने में अधिक समय लगता है. पारंपरिक चिता में यह हड्डी अक्सर अधजली रह जाती है. अंतिम संस्कार के बाद पुरुषों की छाती (स्टर्नम) का बचना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. इसे विधि-विधान से पवित्र नदी में विसर्जित किया जाता है.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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