Sports – लद्दाख में कल से जोरावर टैंक का ट्रायल: डिसएंगेजमेंट के बाद भी भारत की सैन्य तैयारियों में कोई कमी नहीं #INA

पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच हाल ही में हुए डिसएंगेजमेंट के बावजूद भारतीय सेना अपनी सैन्य तैयारियों में कोई कमी नहीं छोड़ रही है. स्वदेशी रूप से विकसित हल्के टैंक जोरावर का अंतिम फील्ड ट्रायल 21 नवंबर से लद्दाख के न्योमा में शुरू होने जा रहा है. यह परीक्षण 15 दिसंबर तक चलेगा. इससे पहले जोरावर का ट्रायल मैदानी और रेगिस्तानी इलाकों में सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है.

यह परीक्षण ईस्टर्न लद्दाख के क्षेत्र में हो रहा है, जहां 2020 के सीमा तनाव के दौरान भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं. डिसएंगेजमेंट के बाद अब पेट्रोलिंग की पूर्ववर्ती स्थिति बहाल की जा रही है, लेकिन भारतीय सेना इस इलाके में अपनी रणनीतिक बढ़त बनाए रखना चाहती है.

न्योमा में जोरावर का परीक्षण: रणनीतिक महत्व

जोरावर का यह परीक्षण लद्दाख के ऊंचाई वाले इलाकों में हो रहा है, जो अपनी कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और रणनीतिक महत्व के लिए जाने जाते हैं. न्योमा और पैंगोंग झील के आसपास के क्षेत्र चीन की सीमा के करीब होने के कारण बेहद संवेदनशील हैं. जोरावर के फायर पावर, मोबिलिटी और प्रोटेक्शन की जांच यहां के दुर्गम इलाकों में की जाएगी ताकि इसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तैनात करने की उपयुक्तता को सुनिश्चित किया जा सके.

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डिसएंगेजमेंट के बाद भी सतर्कता

चीन के साथ बातचीत और यथास्थिति बहाल करने के प्रयासों के बावजूद भारत अपनी तैयारियों को मजबूत बनाए हुए है. जोरावर का परीक्षण इस बात का संकेत है कि भारतीय सेना चीन की किसी भी अप्रत्याशित गतिविधि का सामना करने के लिए हर समय तैयार है. यह लाइट टैंक ऊंचाई वाले इलाकों में दुश्मन पर बढ़त हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

जोरावर की खासियतें

डिजाइन और वजन: जोरावर का वजन सिर्फ 25 टन है, जिससे यह कठिन और ऊंचाई वाले इलाकों में आसानी से ऑपरेट किया जा सकता है.

आधुनिक हथियार प्रणाली: इसमें मिसाइल, मुख्य गन और मशीन गन के साथ ड्रोन इंटीग्रेशन की सुविधा है.

ड्रोन इंटीग्रेशन: यह तकनीक टैंक कमांडर को ड्रोन से लाइव फीड प्राप्त करने की क्षमता देती है, जिससे दुश्मन की गतिविधियों पर सीधी नजर रखी जा सकती है.

स्वदेशी निर्माण: जोरावर पूरी तरह भारत में विकसित किया गया है, जो देश की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक अहम कदम है.

रणनीतिक तैनाती: इसे खासतौर पर हाई एल्टीट्यूड और आईलैंड ऑपरेशंस के लिए डिजाइन किया गया है.

लाइट टैंक की जरूरत क्यों?

2020 में पैंगोंग झील के तनाव के दौरान भारतीय सेना ने टी-72 और टी-90 जैसे भारी टैंकों का इस्तेमाल किया था. हालांकि, ये टैंक मैदानी इलाकों के लिए अधिक उपयुक्त हैं. ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लाइट टैंकों की जरूरत महसूस की गई, जो दुर्गम इलाकों में बेहतर प्रदर्शन कर सकें. चीन के पास पहले से मीडियम और लाइट टैंकों की उपलब्धता है, जिससे मुकाबले के लिए जोरावर जैसे हल्के टैंकों की तैनाती अनिवार्य हो जाती है.

भविष्य की तैयारियां

यदि यह परीक्षण सफल रहता है, तो जोरावर 2025 तक सेना में शामिल किया जाएगा. भारतीय सेना की योजना लगभग 350 लाइट टैंक खरीदने की है, जो पूर्वी लद्दाख और अन्य दुर्गम क्षेत्रों में सैन्य क्षमता को कई गुना बढ़ा देंगे.


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