Sports – Kya Kehta Hai Islam: क्या महिलाएं मस्जिद जा सकती हैं? जानें इस्लाम धर्म में क्या लिखा है #INA

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Kya Kehta Hai Islam: इस्लाम धर्म में मस्जिदें पवित्र स्थान मानी जाती हैं, जहां पुरुष और महिलाएं दोनों अल्लाह की इबादत कर सकते हैं. हालांकि, महिलाओं के मस्जिद जाने को लेकर कई मत और परंपराएं अलग-अलग देशों और इस्लामी समुदायों में देखने को मिलती हैं. कुरान और हदीस में महिलाओं के मस्जिद जाने के बारे में लिखा गया है. कुरान और पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की हदीस के अनुसार, महिलाओं को मस्जिद में जाने की अनुमति दी गई है.

पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.) ने कहा है महिलाओं को मस्जिद में इबादत करने से न रोको. यह कथन दर्शाता है कि इस्लाम में महिलाओं को मस्जिद में जाने और प्रार्थना करने का अधिकार दिया गया है. शुरुआती इस्लामी दौर में महिलाएं मस्जिद में नियमित रूप से नमाज पढ़ने जाती थीं और इस्लामी शिक्षाओं में हिस्सा लेती थीं. अलग-अलग इस्लामी परंपराएं और मस्जिद में महिलाओं की स्थिति अरब और अन्य मुस्लिम देशों में महिलाएं पुरुषों की तरह मस्जिद में नमाज अदा करती हैं. कुछ मस्जिदों में महिलाओं के लिए अलग से विशेष स्थान बनाए गए हैं. महिलाओं के लिए पर्दे का ध्यान रखा जाता है. भारत और पाकिस्तान जैसे देशों में परंपरागत रूप से महिलाओं का मस्जिद में जाना कम होता है. ज्यादातर महिलाएं घर पर नमाज अदा करना पसंद करती हैं. हालांकि, कुछ मस्जिदों में अब महिलाओं के लिए अलग सेक्शन बनाए जा रहे हैं. 

मस्जिद जाने के नियम और शर्तें भी हैं. महिलाओं को मस्जिद जाते समय इस्लामिक पोशाक पहननी होती है, जैसे हिजाब या अभद्रता को ढकने वाले कपड़े. उन्हें शांति और पवित्रता बनाए रखने के नियमों का पालन करना होता है. मासिक धर्म के समय महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश की अनुमति नहीं होती, क्योंकि इस्लाम में इसे शुद्धता के दृष्टिकोण से मना किया गया है. 

आधुनिक समय में महिलाओं के मस्जिद जाने को लेकर जागरूकता और प्रगतिशीलता बढ़ी है. कई इस्लामी संगठनों ने महिलाओं के मस्जिद में जाने के अधिकार का समर्थन किया है. नई मस्जिदों में महिलाओं के लिए सुविधाजनक व्यवस्था की जा रही है. महिलाओं का मस्जिद में जाना इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार जायज है. हालांकि, इसे लेकर सांस्कृतिक और क्षेत्रीय परंपराएं भिन्न हो सकती हैं. आधुनिक दौर में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे वह भी मस्जिद जाकर इबादत और इस्लामी शिक्षा में हिस्सा ले सकें.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. न्यूज नेशन इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)


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