Tach – न्यूरालिंक ने इंसानी दिमाग में फिट की तीसरी चिप, कामयाब रहा ट्रायल तो चलने लगेंगे लकवाग्रस्त मरीज
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न्यूरालिंक का यह प्रयास ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस तकनीक में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भविष्य में गंभीर न्यूरोलॉजिकल स्थितियों के इलाज के लिए नई संभावनाएं खोल सकता है.
नई दिल्ली. एलन मस्क की कपंनी न्यूरालिंक कॉर्प ने अपने ब्रेन-कंप्यूटर डिवाइस को तीसरे मरीज के दिमाग में सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित कर कर दिया है. पहले न्यूरालिंक दो लोगों के दिमाग में सफलतापूर्वक कंप्यूटर चिप लगा चुकी थी और अब एक बार फिर कंपनी को ऐसा करने में सफलता मिली है. लास वेगास में आयोजित एक इवेंट में एलन मस्क ने खुद यह जानकारी दी. मस्क ने बताया कि 2025 में 20 से 30 इंसानों के दिमाग में चिप लगाने की योजना है.
न्यूरालिंक उन स्टार्टअप्स में से एक है, जो ऐसे ब्रेन इम्प्लांट्स विकसित कर रहे हैं जो लकवे (पैरालिसिस) और एएलएस जैसी बीमारियों के इलाज में मदद कर सकते हैं. एक साल पहले, न्यूरालिंक ने अपने पहले मरीज नोलैंड आर्बा (Noland Arbaugh) के दिमाग में यह डिवाइस इम्प्लांट किया था. सितंबर 2023 में मस्क की ब्रेन-चिप कंपनी न्यूरालिंक को अपने पहले ह्यूमन ट्रायल के लिए इंडिपेंडेंट इंस्टीट्यूशनल रिव्यू बोर्ड से रिक्रूटमेंट की मंजूरी मिली थी.
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दिमाग से कंट्रोल होगा स्मार्टफोन
एलन मस्क ने न्यूरालिंक के तीसरे ट्रायल पर कहा, “हमने अब तक तीन इंसानों के दिमाग में न्यूरालिंक लगाया है, और यह सभी अच्छे से काम कर रहे हैं.” गौरतलब है कि कंपनी ने अपने डिवाइस के लिए अमेरिका में फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) के साथ दो स्टडीज पंजीकृत की हैं. इनमें से पहली प्राइम स्टडी पांच मरीजों के लिए डिज़ाइन की गई है, जो लकवे से पीड़ित मरीजों को अपने दिमाग से कंप्यूटर या स्मार्टफोन जैसे बाहरी उपकरणों को नियंत्रित करने की अनुमति देती है. दूसरी स्टडी कॉनवॉय तीन मरीजों के लिए है, जिसमें वे सहायक रोबोटिक आर्म्स जैसे उपकरणों को नियंत्रित कर सकते हैं.
न्यूरालिंक का यह प्रयास ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस तकनीक में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भविष्य में गंभीर न्यूरोलॉजिकल स्थितियों के इलाज के लिए नई संभावनाएं खोल सकता है. अगर ह्यूमन ट्रायल कामयाब रहा तो चिप के जरिए दृष्टिहीन लोग देख पाएंगे. पैरालिसिस के मरीज चल-फिर सकेंगे और कंप्यूटर भी चला सकेंगे. कंपनी ने इस चिप का नाम ‘लिंक’ रखा है.
ट्रायल उन लोगों पर किया जा रहा है, जिन लोगों को सर्वाइकल स्पाइनल कॉर्ड में चोट या एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS) के कारण क्वाड्रिप्लेजिया है. इस ट्रायल में हिस्सा लेने वालों की उम्र मिनिमम 22 साल होनी चाहिए. स्टडी को पूरा होने में करीब 6 साल लगेंगे. इस दौरान पार्टिसिपेंट को लैब तक आने-जाने का ट्रैवल एक्सपेंस भी कंपनी देती है.
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