Entertainment: ‘फुले’ फिल्म में ‘विष्णुपंत’ और ‘फातिमा’ भी हैं… ज्योतिबा और साबित्री बाई के साथ इन्हें न भूलें – #iNA

अनंत महादेवन की फिल्म फुले दलित बनाम ब्राह्मणवाद के विवाद के चलते सुर्खियों में रही. रिलीज से पहले मामले पर काफी हंगामा हुआ, जाति और वर्णव्यवस्था को लेकर खूब बहसें हुईं. दलित चेतना को दबाने का मुद्दा उछला लेकिन पूरी चर्चा के दौरान फिल्म के कुछ खास पहलू गौण हो गए. वह था कि फुले दंपत्ति ने सभी जाति और धर्म के प्रतिनिधियों के सहयोग से शिक्षा क्रांति की नींव डाली और मानवता की सेवा की. जब फिल्म रिलीज हुई और लाखों दर्शकों ने उसे देखा तब फिल्म का यह दूसरा पक्ष भी सामने आया है. अब उसकी चर्चा भी लाजिमी है. पर्दे पर जो कहानी दिखाई गई है और जो किरदार रचे गए हैं, वे इतिहास से प्रेरित बताए गए हैं. लिहाजा हम यहां फिल्म पर फोकस करते हैं. फिल्म में विष्णुपंत और फातिमा शेख दो ऐसे किरदार हैं, जो इस कहानी का दूसरा पहलू दिखाते हैं.
फिल्मी विवाद के लिए वैसे ये कोई नई बात नहीं है. कभी किसी किरदार और कहानी के नाम पर शूटिंग के दौरान तोड़फोड़, कोर्ट कचहरी तो कभी संवाद और ट्रेलर, टीजर, गाने पर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड में सर्टिफिकेट्स लटकना और कट्स का निर्देश. इन विवादों में ये आम बातें हैं. विरोध करने वाले अक्सर आधी अधूरी सूचनाओं और किसी खास दृष्टिकोण के चलते फिल्ममेकिंग और रिलीज पर प्रहार करते हैं. फुले फिल्म के साथ भी ऐसा ही हुआ. ये दोनों अहम पहलू दब ही गए. डायरेक्टर बार बार कहते रहे कि फिल्म किसी भी जाति के खिलाफ नहीं है, यह इतिहास का सच है. यह फिल्म केवल उस दौर की सोच और सच को दिखाती है.
विष्णुपंत ने फुले के स्कूल में मुफ्त शिक्षा दी
हालांकि फुले के निर्माता-निर्देशक और लेखक पर यह आरोप लगा कि इसमें ब्राह्मण समाज के खिलाफ आपत्तिजनक शब्द और विचार प्रस्तुत किए गए हैं. यह ब्रह्म समाज का अपमान है. इस शिकायत के चलते फिल्म रिलीज होने में देरी हुई. बोर्ड ने विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए और वर्तमान कानून-व्यवस्था से सामंजस्य बिठाते हुए काफी मंथन करके कुछेक संशोधनों के बाद इसे रिलीज करने का निर्देश जारी किया. इस बीच महाराष्ट्र की राजनीति और देश भर में इतिहासकार-बौद्धिक जमात में इस पर खूब बहस हो चुकी थी. महात्मा ज्योतिबा फुले और साबित्री बाई फुले को भारत में समाज सुधार और खासतौर पर शिक्षा क्रांति लाने का श्रेय तो दिया गया लेकिन दलित बनाम ब्राह्मणवाद के विवाद को लेकर समाज में सहजता कायम नहीं हो पा रही थी.
बहरहाल जब फिल्म रिलीज हुई तो इसके शुरुआती कुछ दृश्यों ने ही हमें चौंका दिया. फिल्म पर जो आरोप लगाए गए थे, वह दृष्टिकोण नदारद थे. फिल्म पर पहले शब्दों में यह आरोप लगा था कि इसमें ब्राह्मण समुदाय को निशाना बनाया गया है. फिल्म रिलीज होने से पहले साबित्री बाई के ऊपर पंडितों के बच्चों के हाथों गोबर, कीचड़ फेंकते हुए भी दिखाया गया था. लड़कियों को शिक्षा देने के बदले साबित्री बाई पर हमले किए गए थे. लेकिन फिल्म की कहानी में हम देखते हैं कि फुले दंपत्ति के साथ मिलकर समाज में सबके लिए शिक्षा की अलख जगाने की जो क्रांति हो रही थी, उसमें एक विष्णुपंत भी उनके परम सहयोगी थे तो दूसरी तरफ उस्मान शेख और उनकी बहन फातिमा शेख भी साथ साथ थे.
पुरातनपंथियों का हमला विष्णुपंत ने भी झेला
फिल्म में जो दिखाया गया है उसके मुताबिक कई दृश्यों में ज्योतिबा फुले और साबित्री बाई फुले के साथ इन दोनों को समाज के पुरातनपंथी सोच के लोगों से जूझते हुए दिखाया गया है. फिल्म में दिखाया गया है कि फुले दंपत्ति चोरी छिपे स्कूल चलाते हैं और समाज के दबे कुचले तबके की सभी उम्र की लड़कियों को शिक्षा देते हैं. इस दौरान कई सीन में फुले दंपत्ति के साथ विष्णुपंत भी मौजूद होते हैं. वह भी उनके शिक्षा अभियान के साथ खड़े हैं और उन्हें भी कई बार पुरातनपंथियों के हमले का सामना करना पड़ता है. दिलचस्प बात ये कि फिल्म में पुरातनपंथी ब्राहण समाज के लोग शूद्र होने के चलते फुले दंपत्ति की परछाईं से भी दूर भागते रहते हैं वहीं विष्णुपंत उनके साथ शिक्षा की मुहिम में जुटे रहते हैं और अपने ही समाज का कोपभाजन भी होते हैं.
गौरतलब है कि फिल्म की नामावली में विष्णुपंत का पूरा नाम विष्णुपंत थत्ते बताया गया है. और अनुसंधान में यह भी तथ्य सामने आया है कि जब फुले दंपत्ति ने सन् 1848 में जब पुणे की दलित बस्ती में पहला स्कूल खोला जब विष्णुपंत ने मानवता के नाते मुफ्त में शिक्षक के तौर पर अपना योगदान दिया था. लेकिन जब पुरातनपंथियों की धमकी के चलते उन्हें स्कूल छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा तब भी उन्होंने अपने पैसों से किताबें खरीदकर स्कूल को दान दिया.
अपना घर छोड़ फातिमा के यहां रहे फुले दंपत्ति
इसी तरह एक अहम किरदार फिल्म में उस्मान शेख और फातिमा शेख का भी है. फुले दंपत्ति को इन दोनों भाई-बहन का भी भरपूर सहयोग मिला था. फिल्म में जो दिखाया गया है उसके मुताबिक जब ज्योतिबा के पिता अपने बेटे-बहू से नाराज हैं. उनकी नाराजगी की वजह ब्राह्मण समाज से मिल रही लगातार धमकियां हैं. वो बेटे-बहू को सलाह देते हैं कि लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान रोक दे. अपनी संतति को आगे बढ़ाए. वह इस बात से भी खफा हैं कि फुले को अभी तक कोई संतान नहीं हुई. वह उन्हें दूसरी शादी करने के लिए भी कहते हैं. लेकिन ज्योतिबा साबित्री बाई को छोड़ना नहीं चाहते. उन्हें शिक्षा क्रांति की परम सहयोगिनी मानते हैं और कहते हैं सैकड़ों शिक्षित बच्चे ही एक दिन उनकी संतान कहलाएंगे.
फातिमा शेख ने मुस्लिम बस्तियों में दी शिक्षा
इसके बाद पिता से विद्रोह करके दोनों अपना घर-बार छोड़ देते हैं और अपने मित्र उस्मान शेख के घर पहुंचते हैं. उस्मान से उन्हें इस शिक्षा मुहिम में सहयोग मिलता है. यहीं मिलती हैं उस्मान की बहन फातिमा शेख जो साबित्री बाई की मुहिम में हाथ बंटाती हैं. इसके बाद फिल्म में एक तरफ साबित्री बाई हिंदू समाज की लड़कियों को हिंदी-अंग्रेजी तो दूसरी तरफ फातिमा को मुस्लिम बस्तियों में लड़कियों को उर्दू-अंग्रेजी की शिक्षा देते हुए दिखाया गया है. कोई हैरत नहीं कि फातिमा को भी अपने समाज के पुरातनपंथियों का सामना करना पड़ता है लेकिन वह अपने मिशन में जुटी रहती हैं. फिल्म में पार्श्व ध्वनि आती है- इस प्रकार भारत में मुस्लिम लड़कियों को शिक्षा देने की शुरुआत फातिमा शेख ने की थी. यानी फुले की शिक्षा क्रांति में उन्होंने भी अपना-सा योगदान दिया था.
इतना ही नहीं फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि बड़ौदा के गायकवाड राजघराना से भी फुले दंपत्ति को काफी मदद मिली थी. फुले दंपत्ति शिक्षा क्षेत्र में ही नहीं बल्कि अकाल और प्लेग जैसी महामारी के वक्त भी मानवता की सेवा करने के लिए जाने गए हैं. बड़ौदा राजघराना ने अकाल के समय समाज सेवा के लिए उन्हें भरपूर अनाज देकर सहयोग किया था. बाद में ज्योतिबा को महात्मा की उपाधि भी बड़ौदा राजघराना की अनुशंसा पर ही मिली.
‘फुले’ फिल्म में ‘विष्णुपंत’ और ‘फातिमा’ भी हैं… ज्योतिबा और साबित्री बाई के साथ इन्हें न भूलें
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