Political -मिडिल क्लास को जो भूला, उसे ही लगा चूना! दिल्ली चुनाव में जीत का यही एक फॉर्मूला – #INA

दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियों ने खुद को गरीबों का हितैषी बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और कई कल्याणकारी वादों और योजनाओं की घोषणा की है। जहां कांग्रेस सिर्फ अपने वोट शेयर को दोगुना करने और सीटों की संख्या बढ़ाने की उम्मीद कर रही है, तो वहीं असल मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (BJP) और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच है। इस पूरे चुनावी अभियान में सबसे बड़ी विडंबना यह है कि मिडिल क्लास, जो कि दिल्ली के वोटर बेस का एक बड़ा हिस्सा है, उसे चुनाव से पहले काफी हद तक दरकिनार कर दिया गया है। दूसरे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के उलट, दिल्ली में मध्यम वर्ग की एक बड़ी आबादी है, जिसके वोटिंग पैटर्न का चुनावी नतीजों पर बड़ा असर पड़ता है।

हालांकि, शनिवार को केंद्रीय बजट में पर्सनल इनकम टैक्स रेट में बड़ी कटौती करके मध्यम वर्ग के लिए मोदी सरकार ने एक बोनस की पेशकश की है। यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनावी में इसका कितना असर होगा, क्योंकि दिल्ली में बुधवार को मतदान होगा और चुनाव प्रचार आज खत्म हो जाएगा।

इसके अलावा, एक सवाल ये भी है कि खास दिल्ली पर केंद्रित योजनाओं के साथ क्या BJP पिछले तीन दशकों से राजधानी के प्रमुख विपक्ष की भूमिका से बाहर निकल कर सत्ता पर काबिज हो पाएगी या फिर AAP लगातार तीसरी बार सत्ता बरकरार रखेगी?

AAP को झटका देने के लिए काफी होगा ये काम

बीजेपी का अभियान काफी हद तक भ्रष्टाचार के आरोपों, मुख्यमंत्री के “लग्जरी” लाइफस्टाइल और कई वादों को पूरा न करने को लेकर AAP पर हमला करने पर निर्भर रहा है।

पार्टी यह भी मानती है कि उसकी कल्याणकारी योजनाओं के कारण उसे पिछले साल हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में जीत मिली।

उसने राज्य में उभरती कांग्रेस को AAP से चुनौती देने और अपने कल्याणकारी वादों के जरिए महिलाओं के बीच वोट शेयर हासिल करने की उम्मीदें लगा रखी हैं। धारणा यह है कि मुस्लिम वोटों का बंटवारा और गरीब मतदाताओं का दूर होना AAP को झटका देने के लिए काफी होगा।

अगर ये दो चीजें होती हैं, तो भाजपा को वोटों और सीटों में पर्याप्त लाभ मिल सकता है, लेकिन अगर पार्टी मध्यम वर्ग के मतदाताओं को एकजुट करने में विफल रहती है, तो एक बड़ी जीत अभी भी उससे दूर रह सकती है।

पिछले दशक में दिल्ली में बड़े स्तर पर वोट बंटवारा हुआ है, जहां मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा लोकसभा और विधानसभा के लिए अलग-अलग पार्टियों को चुनता है।

राष्ट्रीय राजधानी में पिछले तीन लोकसभा चुनावों में BJP का वोट शेयर औसतन लगभग 55% रहा है, जबकि 2020 के विधानसभा चुनावों में उसे 39% वोट मिले। इसलिए, इस चुनाव को जीतने की उसकी क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि उसे लोकसभा चुनावों में मिलने वाले अतिरिक्त 15-18% वोटों में से कम से कम आधे वोट मिलते हैं या नहीं।

मध्यम वर्ग और गरीब की सरकार से अलग-अलग उम्मीद

ये वोटर कौन हैं? क्या वे मध्यम वर्ग से हैं या वे शहर के गरीब हैं? इन दोनों समूहों की सरकार से बहुत अलग-अलग उम्मीदें हैं।

गरीब वर्ग ज्यादातर कल्याणकारी लाभों को लेकर परेशान हो सकता है, जबकि मध्यम वर्ग बेहतर सड़कों, ट्रैफिक मैनेजमेंट और वायु प्रदूषण को कम करने की कोशिशों पर धोड़ा ज्यादा ध्यान देता है।

भाजपा को यह एहसास होना चाहिए कि पिछले एक दशक में दिल्ली विधानसभा चुनावों में जीत की तलाश में मध्यवर्गीय मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा पार्टी से दूर हो गया है। इस ट्रेंड को समझने के लिए दो डेटा प्वाइंट हैं- वोटिंग पैटर्न और वोट ऑप्शन।

2013 और 2015 में, मध्यम वर्ग की भागीदारी में बढ़ोतरी हुई और उन्होंने इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन के बाद AAP का समर्थन किया। 2013 में, मतदान प्रतिशत में नौ प्रतिशत अंक की बढ़ोतरी हुई (2008 में 57.6% से 66.1%), जो 2015 में बढ़कर 67.4% हो गया, 2020 के चुनावों में घटकर 62.8% हो गया।

2020 में सीमापुरी और ओखला के गरीब इलाकों की तुलना में मालवीय नगर और राजेंद्र नगर जैसे समृद्ध और मध्यम वर्ग के इलाकों में मतदान में गिरावट बहुत ज्यादा थी।

दिल्ली में लोकसभा चुनावों में BJP की जीत और विधानसभा चुनावों में AAP की लगभग जीत से संकेत मिलता है कि दोनों पार्टियों के पास अपने-अपने एक खास वर्ग का समर्थन था। दिल्ली में AAP गरीबों के समर्थन पर निर्भर है, और भाजपा अपने मध्यवर्गीय आधार पर निर्भर है।

लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कौन वोटर बदल जाते हैं?

कौन आम चुनाव में BJP को वोट देता है, लेकिन विधानसभा चुनाव में नहीं? इसका बेहतर जवाब दिया जा सकता था अगर पैनल सर्वे डेटा उपलब्ध होता, यानी, पूरे चुनाव चक्र में एक जैसे मतदाताओं से बातचीत की गई होती।

इसलिए हमें क्रॉस-सेक्शनल सर्वे (चुनावी चक्रों में अलग-अलग मतदाताओं से बातचीत) पर भरोसा करना चाहिए। इसे बड़े ही ध्यान से करने की जरूरत है, क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान AAP वोट शेयर में तीसरे नंबर पर रही, और 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर 5% से नीचे गिर गया।

लोकनीति-CSDS की ओर से किए गए चुनाव बाद सर्वे से पता चलता है कि 2014 और 2015 के बीच बीजेपी को गरीबों के बीच ज्यादा वोट मिले। हालांकि, यह ट्रेंड 2019 और 2020 के बीच पलट गया। लोअर इकोनॉमिक सेगमेंट के बजाय अपर सेगमेंट में पार्टी को ज्यादा नुकसान हुआ।

2020 के विधानसभा में गरीबों के बीच AAP का वोट शेयर बीजेपी से लगभग दोगुना था, लेकिन मध्यम वर्ग के वोट शेयर का अंतर लगभग जीरो था।

अब इसकी तुलना 2019 के लोकसभा चुनाव से करें। सर्वे से पता चलता है कि बीजेपी ने निम्न आर्थिक तबके का लगभग आधा और मध्यम वर्ग का दो-तिहाई वोट हासिल किया था और ये सिलसिला 2024 में भी जारी रहा।

डेटा प्वाइंट से संकेत मिलता है कि अगर भाजपा को एक और विधानसभा चुनाव में हार से बचने की उम्मीद है, तो उसे अपने कोर विधानसभा तक पहुंचना होगा और पार्टी को ज्यादा से ज्यादा मध्यम वर्ग को अपनी ओर वापस मोड़ना होगा।

अब सवाल यह है कि क्या बजट में की गई घोषणाएं उन मतदाताओं के एक बड़े हिस्से को इस पैटर्न को तोड़ने के लिए मना सकती हैं, जो लोकसभा में तो वोट करते हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों में नहीं।

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