Political – 8 का काम तमाम, नीतीश-केजरीवाल पर नजर… बीजेपी का विजयी रथ छोटी पार्टियों के लिए ज्यादा खतरा क्यों?- #INA

BJP का विजयी रथ छोटी पार्टियों के लिए ज्यादा खतरा क्यों?

2024 और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी का विजयी रथ जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है, उसका सीधा खतरा छोटी पार्टियों पर बढ़ता जा रहा है. ओडिशा, महाराष्ट्र, कश्मीर और हरियाणा के बाद अब दिल्ली में बीजेपी की जीत का दावा किया जा रहा है. बीजेपी अगर दिल्ली जीतती है तो इसका सीधा नुकसान आम आदमी पार्टी को होगा. इतना ही नहीं, दिल्ली के चुनाव परिणाम का असर बिहार पर भी पड़ेगा, जहां नीतीश कुमार की जेडीयू सत्ता का नेतृत्व कर रही है.

बीजेपी के आगे बेदम छोटी पार्टियां

2014 के बाद बीजेपी का ग्राफ बढ़ा तो उसका सीधा नुकसान कांग्रेस को हुआ, लेकिन महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली, ओडिशा जैसे राज्यों में छोटी पार्टियों का रसूख बना हुआ है. 2024 में कांग्रेस ने गठबंधन के सहारे मजबूत वापसी की. इसके बाद छोटी पार्टियों के भी पंख लगने लगे, लेकिन पिछले 4 चुनावों के नतीजों ने छोटी पार्टियों का सियासी अस्तित्व ही संकट में है.

बीजेपी के आगे अब तक 6 छोटी पार्टियां सियासी तौर पर बेदम हो चुकी हैं. इनमें से कुछ पार्टियां तो ऐसी हैं, जो एक वक्त में बीजेपी के सहयोगी से राजनीति करती थी.

ओडिशा में बीजेडी पर संकट

नवीन पटनायक की बीजू जनता दल ने 20 साल तक ओडिशा पर राज किया. 2014 में बीजेपी के प्रचंड लहर में भी बीजेडी का सियासी रुतबा बना रहा, लेकिन 2024 में बीजेडी चुनाव हार गई. चुनाव में हार के बाद से ही बीजेडी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

बीजेडी के अबतक 2 राज्यसभा सांसद टूट चुके हैं. पार्टी के भीतर आंतरिक गुटबाजी भी चरम पर है, जिसे 77 साल के नवीन बाबू संभालने की जद्दोजहद कर रहे हैं.

जेजेपी और इनेलो का दबदबा खत्म

हरियाणा में 1990 के दशक में चौधरी देवीलाल की इनेलो सत्ता में रहती थी. इनेलो 2014-19 तक हरियाणा विधानसभा में विपक्ष की भूमिका में रही. 2019 से पहले इनेलो में टूट हुई और जेजेपी का गठन हुआ. 2019 के चुनाव में जेजेपी किंगमेकर की भूमिका में रही. जेजेपी प्रमुख दुष्यंत चौटाला ने समझौता कर बीजेपी के साथ सरकार भी बना लिया.

हालांकि, 2024 के चुनाव में हरियाणा में इनेलो तो 2 सीट जीतने में कामयाब रही, लेकिन जेजेपी का सूपड़ा साफ हो गया. इनेलो के नेता अभय चौटाला भी चुनाव हार गए.

कश्मीर में पीडीपी पर संकट

2014 में बीजेपी के साथ सरकार बनाने वाली पीडीपी भी कश्मीर में साफ हो गई है. पीडीपी को 2024 के चुनाव में सिर्फ 3 सीटों पर जीत मिल पाई. 2014 में पीडीपी पहले नंबर की पार्टी थी, लेकिन 2018 में दोनों की राहें अलग हो गई.

पीडीपी के बड़े नेता विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं. पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती अब अपनी सियासी रास्ता तलाशने में जुटी हैं. हालांकि, उनके लिए राह आसान नहीं है.

दूसरी तरफ बीजेपी का घाटी में दबदबा बढ़ गया है. 2014 में 25 सीटों पर जीतने वाली बीजेपी 2024 में 28 पर पहुंच गई है.

महाराष्ट्र में भी क्षत्रपों का गेम

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे,शरद पवार, प्रकाश आंबेडकर और बच्चू कडू की पार्टी का सियासी दबदबा हुआ करता था. उद्धव और पवार तो सीएम रह चुके हैं. भीमराव आंबेडकर के पोते प्रकाश भी दलित राजनीति में मजबूत पैठ रखते हैं.

हालांकि, 2024 के विधानसभा चुनाव में सभी पार्टियां साफ हो गई. उद्धव के पास अभी 20 विधायक हैं. इसी तरह शरद पवार के पास भी सिर्फ 10 विधायक हैं, जो सबसे कम है. शरद और उद्धव से तो मूल पार्टियां भी छिन गई है.

2024 में प्रकाश आंबेडकर और बच्चू कडू भी कोई करिश्मा नहीं कर पाए. दोनों की पार्टियां भी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है.

अब नजर बिहार पर सबसे ज्यादा

बिहार में इस साल के आखिर में विधानसभा के चुनाव होने हैं. यहां पर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू सत्ता के शीर्ष पर है. बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन है, लेकिन जिस तरीके से बीजेपी के विजयी रथ के सामने छोटी पार्टियां ढेर हो गई है, उससे नीतीश को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं.

नीतीश कुमार की जेडीयू पिछले चुनाव 43 सीटों पर सिमट गई थी. बीजेपी भी 74 से आगे नहीं बढ़ पाई. आखिर में बीजेपी ने नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी. इस बार क्या होगा, इसको लेकर सियासी चर्चाएं तेज है. बिहार बीजेपी के नेता खुलकर नीतीश के साथ लड़ने की बात कह रहे हैं.

हालांकि, केंद्रीय हाईकमान ने अब तक नीतीश के नेतृत्व में लड़ने की बात नहीं कही है. महाराष्ट्र में कम सीट आने के बाद एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी है.

8 का काम तमाम, नीतीश-केजरीवाल पर नजर… बीजेपी का विजयी रथ छोटी पार्टियों के लिए ज्यादा खतरा क्यों?


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