दुनियां – वो 3 देश जिनकी वजह से बशर अल असद को देखने पड़े ये दिन – #INA
सीरिया में नई सरकार के गठन की कवायद शुरू हो चुकी है, मोहम्मद अल-बशीर को अंतरिम प्रधानमंत्री बना दिया गया है. वह 1 मार्च तक अंतरिम सरकार का नेतृत्व करेंगे. दमिश्क पर विद्रोही गुटों के कब्जे के 3 दिन बाद यह फैसला लिया गया है. सीरिया में करीब 5 दशक से असद परिवार का शासन था 13 साल के संघर्ष के बाद खत्म हो चुका है.
बशर अल-असद पेशे से एक डॉक्टर थे, उन्होंने लंदन के वेस्टर्न आई हॉस्पिटल से ऑप्थैल्मोलॉजी की पढ़ाई की है. 1994 में हुए एक कार एक्सीटेंड में बड़े भाई की मौत के बाद उन्हें मजबूरन सियासत में कदम रखना पड़ा. साल 2000 में पिता की मौत के बाद वह सीरिया के राष्ट्रपति बने, उस दौरान सीरिया की जनता को बशर से काफी उम्मीदें थीं.
बशर अल असद को क्यों देखने पड़े ये दिन?
ब्रिटेन पढ़ा लिखा एक नौजवान जो पश्चिमी सभ्यता का प्रशंसक था उससे बदलाव और आजादी की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ बल्कि असद का शासन अपने पिता के शासन से भी ज्यादा कठोर साबित हुआ. नतीजतन 13 साल के संघर्ष के बाद बशर अल-असद को कुर्सी छोड़कर रूस भागना पड़ा. ऐसा क्यों हुआ और इसके पीछे किन-किन देशों का हाथ है जानते हैं.
दरअसल जिस असद से सीरिया की जनता को काफी उम्मीदें थीं अचानक वह उनके लिए तानाशाह बन गया. सीरिया में एक दशक के शासन में ही बशर अल-असद ने डॉक्टर से डिक्टेटर की उपाधि हासिल कर ली. इसमें 3 देशों की भूमिका अहम है जिनकी वजह से असद को ये दिन देखने पड़े. पहला- लेबनान, दूसरा- ईरान और तीसरा- रूस.
लेबनान में मौजूदगी से नुकसान
सीरिया में साल 2001 से ही बशर अल-असद पर विरोधियों के खिलाफ दमनकारी रवैया अपनाने का आरोप लगता रहा है. लेकिन पश्चिमी देशों के साथ तनाव की शुरुआत इराक युद्ध के दौरान हुई. असद ने इराक में अमेरिकी आक्रमण का विरोध किया, उन्हें डर था कि अमेरिका का अगला निशाना सीरिया हो सकता है.
इसके बाद साल 2005 में लेबनान के बेरूत में एक धमाका हुआ, इस हमले में पूर्व प्रधानमंत्री रफीक हरीरी को निशाना बनाया गया था. हरीरी, सीरिया विरोधी थे, यही वजह है कि उनकी हत्या का आरोप भी सीरिया की असद सरकार और लेबनान में मौजूद उनके सहयोगियों पर लगा. असद सरकार ने लेबनान में हिजबुल्लाह को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई और ईरान से आने वाले हथियार पहुंचाने के लिए सुरक्षित रूट मुहैया कराया. असद के नेतृत्व में सीरिया, ईरान के बनाए गए ‘एक्सिस ऑफ रेसिस्टेंट’ का अहम घटक रहा है. साल 2006 में उन्होंने इजराइल के खिलाफ फिलिस्तीनियों और हिजबुल्लाह के संघर्ष का खुलकर समर्थन किया और यही वजह है कि असद सरकार अमेरिका की आंखों को हमेशा खटकती रही है.
ईरान से नज़दीकी पड़ी भारी!
बशर अल-असद सरकार के पतन का दूसरा सबसे बड़ा किरदार ईरान है. ईरान शिया बहुल मुल्क है और असद परिवार भी शिया इस्लाम को ही मानता है. यही वजह है कि बशर अल-असद के शासन में ईरान के साथ रिश्ते और गहरे होते चले गए. ईरान ने ‘एक्सिस ऑफ रेसिस्टेंट’ को मजबूत करने के लिए सीरिया को एक ‘सेफ-रूट’ के तौर पर इस्तेमाल किया, आरोप हैं कि ईरान, इराक और सीरिया के जरिए ही हिजबुल्लाह तक हथियार पहुंचाता रहा है. यही नहीं हिजबुल्लाह के लड़ाकों को ट्रेनिंग देने का काम भी ईरान ने सीरिया की जमीन पर ही किया है.
2011 में सीरिया में शुरू हुए गृह युद्ध के दौरान ईरान ने असद सरकार का साथ दिया. ईरान ने हथियारों, सैन्य सहायता और इराक में मौजूद शिया मिलिशिया के जरिए असद सरकार को सत्ता में बने रहने में मदद की. लेकिन बीते महीने नवंबर में जब अचानक विद्रोह शुरू हुआ तो ईरान खुद कमजोर पड़ चुका था. उसके प्रॉक्सी गुटों को इजराइल से जंग में बड़ा नुकसान पहुंचा है और वह खुद किसी जंग में शामिल होने की स्थिति में नहीं है. यही वजह है कि ईरान मदद का भरोसा तो देता रहा लेकिन उसने समय रहते असद सरकार को बचाने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया.
2016 जैसी मदद नहीं कर पाया रूस
सीरिया में असद सरकार का सबसे बड़ा सहयोगी रूस है. गृह युद्ध के दौरान रूसी हमलों में लाखों लोग मारे गए. बशर अल-असद ने 2015 में रूस से मदद मांगी और इसके बाद रूसी सेना विद्रोहियों के साथ-साथ सीरियाई जनता पर भी कहर बनकर बरसी. रूस को सैन्य सहायता के बदले सीरिया के दो रणनीतिक हिस्सों में नेवल बेस के लिए 49 साल का पट्टा मिल गय. इससे मिडिल ईस्ट में रूस की मजबूत उपस्थिति दर्ज हो गई. यही वजह है कि रूस ने असद सरकार को बचाने के लिए अलेप्पो शहर पर ताबड़तोड़ हमले किए. इन हमलों ने बशर अल-असद की छवि को काफी नुकसान पहुंचाया.
2022 से रूस खुद यूक्रेन के खिलाफ जंग में उलझा हुआ है, उसने सीरिया में बने अपने सैन्य अड्डों से महत्वपूर्ण फाइटर जेट और डिफेंस सिस्टम पहले ही वापस बुला लिए थे, जिससे उनका इस्तेमाल यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में हो सके. वहीं अब अचानक हुए विद्रोहियों के हमले ने रूस को मौका ही नहीं दिया कि वह असद सरकार की बड़ी मदद कर सके. 8 दिसंबर को असद सरकार का तख्तापलट हुआ और उन्हें दमिश्क छोड़कर मॉस्को भागना पड़ा. रूस ने बशर अल-असद और उनके परिवार को राजनीतिक शरण तो दी है लेकिन सीरिया में असद शासन के साथ-साथ मिडिल ईस्ट में रूस का प्रभाव भी खत्म हो चुका है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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