सेहत – मलमल फाल्टीपल मैलोमा से लड़की अरिहित सिंगर सारदा एस ख्यातना, कितनी खतरनाक है बीमारी, छठ से पहले होगी ठीक?

उत्तर

प्रसिद्ध लोक वैज्ञानिक शारदा सिन्‍हा ने बहुत से छठ गीत गाए हैं। शारदा सिन्हा ने नादिया के पार ज़ालिम के अलावा भी कई नूतन गीत गाए हैं।

मल्टीपल मायलोमा क्या है: बिहार और यूपी में छठ पर्व में शामिल हैं बॉलीवुड के दिग्गजों से लेकर लोगों के दिलों तक में डुबकी लगाने वाली लोक साकेरा शारदा सिन्हा की जिंदगी और मौत के बीच झूल रही हैं। ऑल इंडिया मार्केटिंग इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद नई रिसर्च हॉस्पिटल के इंस्टीट्यूट एसोसिएटेड कैंसर में भर्ती सारदा सिन्नाधा क्लिनिक या आयुर्वेदिकजन सपोर्ट पर हैं और वे एक तरह के हेल्थीपॉल मैलोमा से जंग लड़ रहे हैं। सिन्‍हा को 2018 से ही ये बीमारी है, इसका इलाज चल रहा है। आइए एम उखड़ना के ऑन डॉकलोजी प्रोटोटाइप से पता चलता है कि यह मलोमा की बीमारी है, यह कितनी खतरनाक है और छठ पर्व तक सिंगर की बीमारी से ठीक है क्या मंशा?

एम अनफॉलो, नये के आईसीएच में डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल ऑन्कोलॉजी में असेंबल प्रोफेसर डॉ. अजय गोगिया अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि मैलोमा या मल्टिपल मैलोमा एक तरह का कैंसर है, जिसमें बी सेल मेलिग्नेंसी भी पैदा होती है। यह हमारे शरीर की सेलड सेल और बोन मैरो को प्रभावित करता है। बी सेल लॉन्च ए स्क्रीनशॉटल नॉर्मल फ्रैंचाइज़ी शुरू कर देते हैं। जिन भी आवेदकों में ये डायाशियनोकोनोस होता है वे लोग अभ्यारण्य कमर में दर्द या बैक पेन के साथ आते हैं। कुछ लोग रीनल फ़ेलियर या चे मदरमा इन्फ़ेक्शन के साथ भी आते हैं।

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ये होते हैं मलमल एटलीपल मैलोमा के लक्षण

. कमर की हड्डियों में दर्द, प्लास्टर पर डॉक्टर, कूल्हे का हिलना या छाती में दर्द और सूजन
. कब्ज़
. उल्‍टी
. भूख ख़तम होना
. मेंटल फॉग या कैन्ड फ़ूज़न
. थकान
. वजन घटना

ऐसे है रोग का पता
डॉ. गोगिया का कहना है कि इस बीमारी का पता दो तरह से लगाया जाता है. बैटलैड ते स्टार्स और बोन मैरो ते स्टार्स से यह पता चलता है कि कौन सी स्टार्स का मैलोमा है। साथ ही कौन सा लक्षण लाइक रिस्क का जन्म हो रहा है। जैसे कि क्लिनिकल दर्द, रीनल फेलियर या चेइ स्टार्टअप इन्फैक्शन आदि। समानता जोखिम को लो और उच्च में केटेगराइज करने की आवश्यकता का इलाज किया जाता है। इसके लिए कुछ और ते स्टैमिना और स्टैमिना भी मौजूद हैं, जिनके आधार पर कैंसर कहां स्थित है, यह भी पता चला है।

कितना खतरनाक है
यह कैंसर काफी खतरनाक है। मरीज की उम्र और कैंसर की बीमारी के आधार पर इसका आउटकम रहता है। अमूमन 40 से 82 प्रतिशत लोगों की जीवित रहने की दर करीब 5 साल है। मालफ़िल्टिपल मैलोमा से ग्रस्ट क्लोज़ 85 प्रतिशत व्यक्ति एक साल तक जीवित रह चुके हैं। जबकि 55 प्रतिशत लोग 5 साल या रिश्तेदार जी लेते हैं। 30 फीसदी मरीज ऐसे ही होते हैं जो जल्दी डायरिया से पीड़ित हो जाते हैं और सही इलाज के बाद 10 साल तक जी जाते हैं।

इसका इलाज संभव है
डॉ. डॉक्टर का कहना है कि मलमल फेल्टिपल मैलोमा को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है, हालांकि समय पर बीमारी की पहचान और इलाज से इसका इलाज करने के साथ ही बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है। 60 साल से कम उम्र में एम अनाउंसमेंट का बोन मेरो ट्रांसप्लांट भी किया जाता है। साथ ही दो साल तक की कमाई भी जारी है। वहीं 65 वर्ष से ऊपर के छात्र जो या तो कई चुनौतीपूर्ण से ग्रॅस्ट होते हैं या बुजुर्ग होते हैं उन्हें भी इंडस्ट्री के बाद मेंटेनेंस दिया जाता है।

तीसरे छात्र में जाने के बाद बचना संभव है
डॉ. कहते हैं कि यह बुजुर्गों की बीमारी है. एम उल्लंघन में अभी तक मैलोमा का सबसे युवा मरीज 16 साल की उम्र का आया था। बाकी यह बीमारी 50 साल की उम्र के बाद ही अज़ाबर्स देखने को मिलती है। जहां तक ​​मरीज़ के दोस्त में जाने के बाद भागने की संभावना की बात है तो दोस्त में मरीज़ के चे बुनियादी ढांचे के संक्रमण नियंत्रण के लिए ही जाना जाता है। अगर यह इंफेक्शन कंट्रोल हो जाता है तो मरीज बच जाता है। शारदा सिन्हा के मामले में भी यही बात है.

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