Political – हर दूसरी महिला सांसद राजनैतिक परिवार से, BJP-कांग्रेस तकरीबन बराबर, TMC का दांव एक्टर्स पर- #INA
बमुश्किल 10 महीने पुरानी बात है, पिछले साल सितंबर का महीना था. नई संसद में विशेष सत्र बुलाया गया. कयास लगने लगे कि ये होगा, वो होगा, ये नहीं… वो होगा. सत्र की शुरुआत से पहले केंद्रीय कैबिनेट की एक बैठक हुई. और फिर मीडिया में खबर आने लगी कि सरकार 27 साल से अटके पड़े महिला आरक्षण बिल को लागू करने की दिशा में बढ़ सकती है. 20 सितंबर 2023 को ये खबर हकीकत में तब्दील हो गई. विधेयक पारित करा लिया गया लेकिन असली पेंच उस दिन की शाम को और अगले दिन के अखबारों से मालूम हुआ.
लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के नाम पर उस दिन महज बिल पारित हुआ था. उसे असल मायने में लागू होने के लिए 2029 तक के इंतजार का वादा था. सवाल है ऐसा क्यों? क्योंकि सरकार ने बताया कि पहले जनगणना, परिसीमन होगा, तब जाकर इस हवाले से कोई बात बनेगी. खैर, न होने से थोड़ा होना महिलाओं के लिए उपलब्थि से कम नहीं था.
इस उपलब्धि को थोड़ी हिम्मत और मिलती अगर सालभर बाद कुछ राजनीतिक दलों ने इस दिशा में कोई पहलकदमी की होती. तब एक आवाज में महिलाओं के आरक्षण की वकालत करने वाले दल, तमाम हो-हल्ला और बड़ी-बड़ी बातों के बाद इस बार महिलाओं को टिकट देने में फिसड्डी नजर आए. बड़े राजनीतिक दलों के टिकट बंटवारे में आधी आबादी की केवल 15-20 फीसदी हिस्सेदारी को कहीं से भी उत्साहवर्धक नहीं कहा जा सकता. नतीजा ये है कि इस बार लोकसभा में कम महिला सांसद चुनकर आईं हैं.
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कुल 74 महिलाएं लोकसभा पहुंची हैं. ये संख्या पिछली बार से 4 कम है.
आधे से अधिक महिला MP राजनीतिक परिवारों से
बात इतनी भर होती तो कोई बात न थी. जब ये समझने की कोशिश की गई कि जो महिला सांसद चुनी गईं, उनका नाता राजनीतिक परिवारों से है या फिर गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से तो चौंकान्ने वाली जानकारी निकल कर सामने आई.
भारतीय राजनीति के संदर्भ में यह एक अहम तथ्य है कि यहां सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों, खासकर महिलाओं को न के बराबर मौका मिलता है. राजनीतिक पार्टियां उन महिलाओं को ही टिकट देने में प्राथमिकता दिखाती हैं जिनके परिवार का कोई सदस्य राजनीति में हो, पति धनबल या बाहुबल की राजनीति में चैंपियन हो, वगैरा-वगैरा.
सवाल है क्या इस बार भी ऐसा ही रहा?
लोकसभा पहुंचने वाली 74 महिला सांसदों की सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि का अध्ययन करने से मालूम हुआ कि इनमें से आधी से भी अधिक, ठीक-ठीक कहा जाए तो 41 का संबंध राजनीतिक परिवारों से है. जहां इन महिलाओं के भाई, पिता, पति से लेकर ससुर और दूसरे सगे-संबंधी मुख्य धारा की राजनीति में सक्रिय भूमिका में हैं.
यहीं ये भी स्पष्ट हो जाए कि इन महिला सांसदों के बारे में ऐसा बिल्कुल भी नहीं कहा जा रहा कि उनमें राजनीतिक प्रतिभा या कौशल नहीं है बल्कि उनके जरिए यह समझने की कोशिश है कि जिनके परिवार का राजनीति से कोई वास्ता नहीं या यूं कहें कि जिनका कोई गॉडफादर नहीं, उनका प्रतिनिधित्त्व कितना है?
तो जवाब है कि 29 महिला सांसद ऐसी हैं जिनकी पहचान गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि वाली है. इनमें डॉक्टर, एक्टर, समाजिक कार्यकर्ता से लेकर और दूसरे प्रोफेशनल्स शामिल हैं. वहीं, राज परिवार से आने वाली 4 महिला सांसद बनी हैं. ये चारों बीजेपी के टिकट पर लोकसभा पहुंची हैं.
ये तो हुआ मोटेतौर पर एक आकलन. अब इसे थोड़ा और बारीकी से समझते हैं कि किन राजनीतिक दलों ने किस तरह की सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाली महिलाओं पर दांव लगाया.
1. BJP के टिकट पर चुनी गईं महिला सांसदों की पृष्ठभूमि
भारतीय जनता पार्टी ने 2009 में 45, 2014 में 38 और 2019 में 55 महिला उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा था.
इस बार भाजपा के महिला उम्मीदवारों की संख्या बढ़ी. पार्टी ने अपने 441 प्रत्याशियों में से 69 टिकट महिला उम्मीदवारों को दिया.
इसमें 31 की जीत हुई है. इस तरह भारतीय जनता पार्टी के महिला उम्मीदवारों का स्ट्राइक रेट 44.92 फीसदी रहा है.
BJP की आधी महिला सांसद राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं.
पहला – जिनके परिवार के सदस्य राजनीति में (15)
बीजेपी की 31 में से करीब आधी महिला सांसद (15) का संबंध राजनीतिक परिवारों से है. 7 सांसदों के पति, 3 के पिता और 5 महिला सांसदों की मां, भाई या ससुर राजनीति के जाने-माने चेहरे हैं.
मसलन, नई दिल्ली सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीत संसद पहुंचने वाली बांसुरी स्वराज दिवंगत राजनेता सुषमा स्वराज की बेटी हैं. तो आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी सीट से चुनावी जीत हासिल करने वाली डी. पुरंदेश्वरी दिवंगत अभिनेता और राजनेता एन.टी. रामाराव की बेटी हैं.
इसी तरह महाराष्ट्र के रावेर लोकसभा सीट से जीत की हैट्रिक लगाने वाली रक्षा खडसे, जो अब केंद्र में मंत्री भी बन गई हैं, महाराष्ट्र की राजनीति के कद्दावर नाम एकनाथ खडसे की बहू हैं. इसी तरह महाराष्ट्र के जलगांव से चुनाव जीतने वाली स्मिता वाघ के पति उदय वाघ बीजेपी में जिला अध्यक्ष हैं.
झारखंड की कोडरमा सीट से सांसद अन्नपूर्वा देवी, जिन्हें केंद्रीय मंत्री भी बनाया गया है, आरजेडी नेता और पूर्व मंत्री रमेश यादव की पत्नी हैं.
कितनों की बात की जाए, मध्य प्रदेश में भाजपा ने 6 महिलाओं को टिकट दिया था. सभी ने जीत दर्ज की. इनमें सावित्री ठाकुर (धार), संध्या राय (भिंड) के अलावा बाकी सभी – हिमाद्रि सिंह (शहडोल), लता वानखेड़े (सागर), अनीता चौहान (रतलाम), भारती पारधी (बालाघाट) के संबंधी राजनीति में हैं.
अनीता नागर चौहान के पति नागर सिंह चौहान मध्य प्रदेश सरकार में वन मंत्री हैं और तीन बार विधायक रह चुके हैं. इसी तरह लता वानखेड़े के पति नंदकिशोर उर्फ गुड्डू वानखेड़े भी राजनीति में सक्रिय हैं.
दूसरा – गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि वाली बीजेपी की सांसद (12)
गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाली 12 महिलाएं बीजेपी की टिकट पर सांसद चुनी गई हैं. ये वो महिलाएं हैं जिन्होंने सामाजिक जीवन में कुछ अलग कर के अपना नाम बनाया और फिर राजनीति में दांव आजमाया.
मिसाल के तौर पर, मध्य प्रदेश की धार सीट से सांसद चुनी गईं सावित्री ठाकुर, जो केन्द्र में मंत्री भी बन गई हैं, उनके पति एक साधारण किसान हैं, राजनीति में आने से पहले वह एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर जानी जाती थीं.
इसी तरह मध्य प्रदेश की भिंड सीट से संध्या राय ने अपना राजनीतिक सफर बीजेपी में एक कार्यकर्ता के तौर पर शुरू किया था. उनके पति भी किसान हैं. इस तरह सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता से सांसद तक का सफर तय करे वाली सांसदों की संख्या 8 है.
इन 8 के अलावा बीजेपी से चुनी गईं 2 महिलाओं का खुद का बिजनेस हैं. इनमें एक तो असम की गुवाहटी से चुनाव जीतने वाली बिजूली कलिता मेधी हैं और दूसरी गुजरात से सांसद चुनी गईं निमुबेन जयंतीभाई हैं.
वहीं, सिनेमा जगत की दो हस्ती इस चुनाव के जरिये सदन पहुंची हैं. इनमें एक, मथुरा से सांसद हेमा मालिनी और दूसरी, हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट से लोकसभा चुनाव जीतने वाली कंगना रनौत हैं. रनौत पहली बार सांसद बनी हैं जबकि हेमा मालिनी की यह तीसरी पारी है.
तीसरा – राज परिवार से जिनका ताल्लुक (4)
बीजेपी की 31 महिला सांसदों में से 4 महिलाओं का नाता राजशाही परिवारों से है. महिमा विश्वराज सिंह का संबंध मेवाड़ के पूर्व राजघराने से है. वहीं, ओडिशा के बोलांगीर की सांसद संगीता कुमार सिंह देव पूर्ववर्ती पटनागढ़ शाही परिवार से हैं.
मालविका खेशारी देव कालाहंडी शाही परिवार की वंशज हैं. इनके पति अर्का खेशारी देव सांसद रह चुके हैं. इनके अलावा उत्तराखंड की माला राज्य लक्ष्मी जिन्हें टिहरी की रानी के नाम से भी जाना जाता है, वह भी एक राजशाही विरासत समेटे हुए हैं.
2. कांग्रेस के टिकट पर चुनी गईं महिला सांसदों की पृष्ठभूमि
कांग्रेस ने 2019 में 52 महिलाओं को चुनावी समर में उतारा था. इस बार पार्टी ने केवल 41 महिलाओं को टिकट दिया. हालांकि, इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि पार्टी अपने इतिहास के सबसे न्यूनतम सीटों पर इस बार चुनावी मैदान मे थी.
खैर, कांग्रेस के 41 महिला कैंडिडेट्स में 13 की जीत हुई है. बीजेपी के महिला उम्मीदवारों के स्ट्राइक रेट (44.92 फीसदी) के मुकाबले कांग्रेस की महिला सांसदों की सफलता दर 34 फीसदी रहा.
पहला – जिनके परिवार के सदस्य राजनीति में (8)
राजनीतिक पृष्ठभूमि की महिलाओं पर दांव लगाने मेंकांग्रेस का भी हाल भारतीय जनता पार्टी ही की तरह है. कांग्रेस से सांसद चुनी गईं 13 महिलाओं में से 8 का संबंध राजनीतिक परिवारों से है.
4 के पति जबकि 4 के पिता राजनीति के जाने-माने नाम हैं. चाहे वो वर्षा गायकवाड़ हों जो वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एकनाथ गायकवाड की बेटी हैं या फिर तेलंगाना के वारंगल लोकसभा सीट से जीतने वाली कादियाम काव्या , जो भारत राष्ट्र समिति के पूर्व नेता श्रीहरि की बेटी हैं.
छत्तीसगढ़ की कोरबा सीट से जीतने वाली ज्योत्सना महंत चरणदास महंत की पत्नी है. चरण दास कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं. इसी तरह कर्नाटक के देवेनगिरी से सांसद चुनी गईं प्रभा मल्लिकार्जुन के पति कर्नाटक सरकार में माइन्स और जियोलॉजी मंत्री हैं.
दूसरा – गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि वाली कांग्रेस की सांसद (5)
वहीं कांग्रेस की 5 महिला सांसद गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आती हैं.इनमें 1 डॉक्टर, 1 वकील, 1 सोशल वर्कर तो 2 ने अपने बलबूते राजनीति में नाम बनाया है.
सुधा आर पेशे से वकील हैं. बच्छाव शोभा दिनेश पेशे से डॉक्टर हैं. जोथिमनी सेन्निमलाई एक सोशल वर्कर हैं. उन्होंने भारतीय युवा कांग्रेस और तमिलनाडु युवा कांग्रेस के महासचिव और उपाध्यक्ष के रास्ते सांसद तक का सफर तय किया है.
संजना जाटव कांग्रेस की सबसे कम उम्र की सांसद हैं जिनके पति पुलिस कांस्टेबल है. संजना जाटव ने महज 26 साल की उम्र में राजस्थान की भरतपुर सीट पर चुनाव जीता है. गुजरात की गेनीबेन ठाकोर, जिन्होंने बनासकांठा से चुनाव जीता है, वो भी अपने बलबूते यहां तक पहुंची हैं.ठाकोर ने दशको बाद गुजरात में कांग्रेस का खाता खोला है.
3. TMC के टिकट पर चुनी गईं महिला सांसदों की पृष्ठभूमि
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने 12 महिलाओं को टिकट दिया था. इनमें 11 की जीत हुई है. टीएमसी के महिला उम्मीदवारों की स्ट्राइक रेट 91.6 फीसदी रही.
टीएमसी से सांसद चुनी गईं 11 में से 4 (सयानी घोष, शताब्दी रॉय, रचना बैनर्जी और जून मालिया) की मुख्य पहचान एक्टर के तौर पर है. वहीं, शर्मिला सरकार और ककोली घोष दस्तीदार डॉक्टर हैं.
महुआ मोइत्रा एक इंवेस्टमेंट बैंकर रह चुकी हैं. इनके अलावा माला रॉय, मिताली बैग, प्रतिमा मोंडल और सजदा अहमद का अपना राजनीतिक करियर रहा है.
4. SP, DMK के टिकट पर चुनी गईं महिला सांसदों की पृष्ठभूमि
समाजवादी पार्टी ने जिन 10 महिलाओं को चुनावी मैदान में उतारा, उनमें 5 की जीत हुई. सपा के महिला उम्मीदवारों का स्ट्राइक रेट 50 फीसदी रहा.
रोचक बात ये है कि सभी 5 महिला सांसद एक मजबूत और संपन्न राजनीतिक परिवार से आती हैं. चाहे वो डिंपल यादव हो, कृष्णा देवी पटेल, प्रिया सरोज, इकरा चौधरी या फिर रूचि विरा.
तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी डीएमके की टिकट पर 3 महिलाएं लोकसभा पहुंची है. इनमें एक पेशे से डॉक्टर हैं जबकि 2 राजनीतिक परिवार से आती हैं.
राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाली दो सांसदों में एक तो करुणानिधि की बेटी कनिमोणी हैं और दूसरी डीएमके नेता वी थंगापांडियन की बेटी सुमाथी. सुमाथी की एक और पहचान पटकथा लेखक के तौर पर भी है.
5. अन्य पार्टियों के टिकट पर चुनी गई महिला सांसदों की पृष्ठभूमि
बाकी बची 11 महिलाएं जो इस आम चुनाव के जरिये लोकसभा पहुंची हैं, उनमें जेडीयू और लोजपा (रामविलास) से 2-2, शरद पवार की एनसीपी, अपना दल सोनेलाल, तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी), वाईएसआरसीपी, शिरोमणि अकाली दल, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) से एक 1-1 हैं.
इन 11 में से 8 महिलाओं का संबंध सीधे तौर पर राजनीतिक परिवारों से है. जबकि एक की पहचान बाहुबली नेता के पत्नी के नाते है तो दो डॉक्टर हैं.
जेडीयू की लवली आनंद चर्चित आईएस हत्याकांड में सजायाफता आनंद मोहन की पत्नी है. जो दो डॉक्टर हैं, उनमें से एक टीडीपी की बायरेड्डी शबरी है जिन्होंने आंध्र प्रदेश के नांदयाल से जीत हासिल की है तो दूसरी डीएमके की रानी श्री कुमार है जिन्होंने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित तमिलनाडु की तेनकासी लोकसभा सीट से जीत दर्ज की है.
राजनीतिक रसूख वाली नेताओं में अगर प्रमुख नामों पर गौर करें तो लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के टिकट पर जीतने वाली वीणा देवी हैं, जो जनता दल यूनाइटेड के एमएलसी दिनेश सिंह की पत्नी हैं, शिरोमणि आकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल की पत्नी हरसिमरत कौर हैं जिन्होंने बठिंडा की सीट से जीत दर्ज की है, लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती हैं जो पाटलिपुत्र से चुनाव जीतने में कामयाब हुई हैं तो शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले हैं जो बारामती से चुनाव जीत संसद पहुंची हैं.
प्रतिनिधित्त्व का सवालः दूसरे देशों से एक तुलना
इस तरह जब 18वीं संसद का पहला सत्र 24 जून से शुरू होगा तो लोकसभा में दिखने वाली 74 महिला सांसदों में भले अधिकतर ताकतवर राजनीतिक-सामाजिक परिवारों से होंगी लेकिन उन्हीं के बीच में कुछ गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि वाली महिला एमपी भी अपने क्षेत्र की बात करते हुए सुनाई देंगी.
भारत में जब पहली बार 1952 में लोकसभा चुनाव हुआ तो केवल 22 महिलाएं सांसद चुनी गईं. समय के साथ चीजें बेहतर हुई लेकिन इसकी रफ्तार बहुत धीमी रही. 15वीं लोकसभा में जो महिला सांसदों की संख्या 52 थी, वह पांच साल के बाद 64 पहुंची.
पिछली लोकसभा में अब तक की सर्वाधिक (78) महिला सांसद लोकसभा पहुंची. यह कुल सांसदों का तकरीबन 14.36 फीसदी था. पर हालिया आम चुनावों के बाद यह घटकर 13.63 फीसदी पर आ गया है.
अगर हम अफ्रीकी देश रवांडा की संसद में महिलाओं की भागीदारी (62 फीसदी) से भारत की तुलना करें तो स्थिति काफी नाजुक दिखती है. जबकि दक्षिण अफ्रीका (43 फीसदी), यूके (32 फीसदी), अमेरिका (24 फीसदी) और बांग्लादेश (21 फीसदी) के मुकाबले भी भारत का पीछे रहना चिंताजनक है.
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