Political – कुमारी सैलजा की खामोशी बढ़ा रही हुड्डा की बेचैनी, कहीं कांग्रेस का बिगड़ न जाए खेल?- #INA
हरियाणा में हुड्डा और सैलजा के बीच तल्खी से कांग्रेस की बढ़ सकती है टेंशन
कांग्रेस हरियाणा में अपने सत्ता के वनवास को खत्म करने की हरसंभव कोशिश कर रही है, लेकिन पार्टी की अंदरूनी कलह ही उसकी सबसे बड़ी टेंशन बन गई है. भूपिंदर सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंदर हुड्डा फुल एक्टिव मोड में नजर आ रहे हैं तो रणदीप सुरजेवाला और चौधरी बीरेंद्र सिंह अपने-अपने बेटे की सीट पर लगे हुए हैं. कांग्रेस की दलित चेहरा और सांसद कुमारी सैलजा खुद को चुनाव प्रचार से दूर रखे हुए हैं. वो न ही कहीं जनसभा करती दिख रही हैं और न ही सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं. ऐसे में सैलजा की खामोशी भूपिंदर हुड्डा की बेचैनी को बढ़ा रहा है. ये सियासी टकराव कांग्रेस का खेल कहीं न बिगाड़ दे?
साल 2019 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में कुमारी सैलजा और भूपिंदर सिंह की जोड़ी कुछ हद तक सफल रही. हुड्डा जाट तो सैलजा दलित वोटों को कांग्रेस के पक्ष में जोड़ने में कामयाब रहीं. जाट-दलित वोट समीकरण की बदौलत कांग्रेस हरियाणा की सत्ता में वापसी का तानाबाना बुन रही है, लेकिन सैलजा के विधानसभा चुनाव से दूरी बनाए जाने के चलते मामला गड़बड़ता नजर आ रहा है. सैलजा न तो कांग्रेस के घोषणा पत्र जारी करने के समय दिखाई दीं और न ही वो अब चुनाव प्रचार कर रही हैं.
सैलजा, सबसे बड़ा दलित चेहरा
सिरसा से सांसद कुमारी सैलजा हरियाणा में कांग्रेस की सबसे बड़ी दलित चेहरा हैं. हरियाणा में करीब 20 फीसदी दलित मतदाता हैं. कुल 90 में से दलित समुदाय के लिए 17 विधानसभा सीटें सुरक्षित हैं, लेकिन सियासी प्रभाव उससे कहीं ज्यादा है. विधानसभा चुनाव के टिकट बंटवारे में हुड्डा खेमे को ही तवज्जे मिली है और कुमारी सैलजा अपने 8 से 10 करीबी नेताओं को ही टिकट दिला सकी हैं.
हरियाणा में 12 सितंबर को नामांकन के अंतिम दिन कांग्रेस ने टिकट की अंतिम सूची जारी की थी, तब से ही कुमारी सैलजा चुप हैं. इसके बाद हुड्डा खेमे के समर्थकों की ओर की गईं टिप्पणियों से सैलजा नाराज मानी जा रही है. जिसके चलते उन्होंने चुनावी कैंपेन से ही दूरी बना ली है.
चुनाव प्रचार में नहीं उतर रहीं सैलजा
हरियाणा विधानसभा चुनाव की वोटिंग के लिए सिर्फ 15 दिन का वक्त बचा हुआ है, लेकिन कुमारी सैलजा किसी भी सीट पर प्रचार के लिए नहीं पहुंची हैं. सैलजा की चुप्पी से इन दिनों पार्टी की टेंशन बढ़ गई है और हुड्डा खेमे में बेचैनी बढ़ गई है, क्योंकि उनकी चुप्पी से कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है और हुड्डा खेमे को सत्ता पाने की चाहत से दूर कर सकता है. वक्त की नजाकत को समझते हुए हुड्डा डैमेज कंट्रोल करने में जुट गए हैं और उन्होंने कहा कि सैलजा पर की गई टिप्पणी मैनिपुलेटेड है.
कुमारी सैलजा को हुड्डा ने अपनी बहन बताते हुए कहा कि वह कांग्रेस की सम्मानित नेता हैं. कांग्रेस का कोई भी नेता या फिर कार्यकर्ता उनके बारे में गलत टिप्पणी नहीं कर सकता. कुमारी सैलजा के बारे में यदि कोई भी, किसी प्रकार की गलत टिप्पणी करता है तो उसका कांग्रेस पार्टी में कोई स्थान नहीं है. उन्होंने कहा कि आज हर किसी के पास मोबाइल है और किसी को भी मैनिपुलेट कर कुछ भी बुलवाया जा सकता है, लेकिन ऐसी मानसिकता का समाज या राजनीति में कोई स्थान नहीं है. विरोधी दल जानबूझकर साजिश कर रहे हैं.
चुप्पी कांग्रेस के लिए चिंता का सबब
हरियाणा में कांग्रेस सत्ता में की वापसी सपा सपना संजोय हुए है, लोकसभा चुनाव में 5 सीटें जीतने के बाद से ही उम्मीदें बढ़ गई हैं. ऐसे में सैलजा की चुप्पी कांग्रेस के लिए चिंता का सबब बनती जा रही है. कुमारी सैलजा और हुड्डा की सियासी अदावत भी जगजाहिर है. इसी तरह रणदीप सुरेजवाला को भी हुड्डा विरोधी गुट का माना जाता है. कांग्रेस में इसी तरह से अंतर्कलह रही तो सूबे की सत्ता में वापसी की उम्मीदों पर ग्रहण लग सकता है, क्योंकि एक दूसरे के गुट के नेता एक दूसरे को जिताने के बजाय हराते हुए नजर आएंगे.
कुमारी सैलजा के चुनावी कैंपेन से दूरी बनाए रखने के चलते दलित समुदाय में भी नाराजगी बढ़ सकती है. दलित वोटर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत राज्य में रखते हैं. 17 विधानसभा सीटें दलित समाज के लिए आरक्षित हैं, जहां पर दलित बहुल हैं. जबकि दलित समुदाय 35 विधानसभा सीटों पर महत्वपूर्ण रोल अदा करते हैं. सैलजा कांग्रेस की सबसे बड़ी दलित चेहरा हैं और उनके खामोशी से दलित वोटों में मैसेज सही नहीं जाएगा.
हुड्डा- सैलजा की जोड़ी ने दी थी कड़ी टक्कर
कांग्रेस हरियाणा की सत्ता में वापसी के लिए पूरी तरह से जाट और दलित वोटों पर निर्भर है. जाट करीब 28 फीसदी हैं तो दलित 21 फीसदी हैं. इस तरह से कांग्रेस 50 फीसदी वोटबैंक को अपने साथ जोड़ने का लक्ष्य लेकर काम कर रही है. हरियाणा में जब से बीजेपी ने गैर जाट राजनीति शुरू की है तभी से कांग्रेस ने जाट के साथ दलित का समीकरण बैठाना शुरू कर दिया था. इसी समीकरण के हिसाब से भूपिंदर सिंह हुड्डा को पार्टी का सर्वोच्च नेता बनाया गया है. उनके साथ दलित नेता चौधरी उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. इसके अलावा हरियाणा में कुमारी सैलजा भी कांग्रेस की दलित चेहरा हैं.
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हुड्डा और सैलजा की जोड़ी के दम पर बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी. 2024 लोकसभा चुनाव में दलित-जाट वोटों के दम पर ही कांग्रेस हरियाणा की 10 में से 5 सीटें जीतने में कामयाब रही है. अभी तक जो तस्वीर दिख रही है उसमें कांग्रेस दलित समीकरण साधने की कवायद में है. लोकसभा चुनाव में दलित मतदाताओं का रुझान कांग्रेस की ओर दिखा था. संविधान और आरक्षण बचाने के शोर के बीच देशभर में कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों को दलितों का वोट मिला है, लेकिन सैलजा की नाराजगी अब कांग्रेस के लिए ही चिंता का सबब बनती जा रही है.
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