Tach – स्मार्टफोन बाजार में बह रही उल्टी गंगा, मार्केट से गायब हो रहे सस्ते फोन, महंगे फोन्स पर बढ़ा फोकस

नई दिल्ली. अगर आप इन दिनों नया स्मार्टफोन खरीदने का सोच रहे हैं और बाजार या ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर सस्ते स्मार्टफोन्स की तलाश कर रहे हैं, तो आपको यह विकल्प अब कम ही दिखाई देंगे. सस्ते स्मार्टफोन्स का बाजार से गायब होना जारी है. ब्रांड्स और रिटेलर्स अब बजट स्मार्टफोन्स के बजाय प्रीमियम स्मार्टफोन्स पर जोर दे रहे हैं, जिससे सवाल उठता है कि क्या बजट स्मार्टफोन्स का बाजार खत्म हो रहा है या फिर कंपनियां सस्ते फोन्स को बढ़ावा देने में अब रुचि नहीं रखतीं.

बाजार में अब यह धारणा बनाई जा रही है कि महंगे स्मार्टफोन्स में ज्यादा वैल्यू मिलती है, जिससे लोग बजट स्मार्टफोन्स के बजाय प्रीमियम फोन्स खरीदना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि सस्ते स्मार्टफोन्स का महत्व कम होता जा रहा है? क्या अब कंपनियां सस्ते फोन्स बनाने में रुचि नहीं रखतीं या फिर ग्राहकों की सस्ते फोन्स में दिलचस्पी नहीं रही? शायद EMI और अन्य फाइनेंसिंग विकल्पों की वजह से अब एंट्री-लेवल स्मार्टफोन्स की मांग भी कम होती जा रही है.

सस्ते स्मार्टफोन्स का बदलता स्वरूप
भारत में आमतौर पर 7,000-8,000 रुपये की कीमत वाले स्मार्टफोन्स को सस्ता स्मार्टफोन माना जाता है. इसके अलावा 10,000 रुपये से कम कीमत वाले स्मार्टफोन्स को भी बजट स्मार्टफोन की श्रेणी में रखा जा सकता है. लेकिन समय के साथ सस्ते स्मार्टफोन्स का मतलब भी बदलने लगा है. प्रीमियम फोन्स की ओर रुझान बढ़ने और स्मार्टफोन की लागत में इजाफे के चलते अब 15,000 रुपये की कीमत वाला फोन भी किफायती माना जाने लगा है. फिर भी, 10,000 रुपये से कम कीमत वाले फोन्स को आमतौर पर सस्ते स्मार्टफोन्स में गिना जाता है.

CyberMedia Research (CMR) की 2024 की दूसरी तिमाही की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 7,000 रुपये से कम कीमत वाले स्मार्टफोन्स की डिमांड में सालाना 26% की गिरावट आई है. वहीं, 5G स्मार्टफोन्स की शिपमेंट में वृद्धि हुई है, खासकर 10,000-13,000 रुपये की कीमत वाले स्मार्टफोन्स की बिक्री में 200% से अधिक की बढ़त दर्ज की गई है. पिछले कुछ सालों से सस्ते स्मार्टफोन्स की मांग लगातार गिर रही है.

सस्ते स्मार्टफोन्स की घटती बिक्री का कारण
सस्ते स्मार्टफोन्स की घटती बिक्री के पीछे कई बाहरी कारण हैं. महामारी के दौरान लॉकडाउन और चिप की कमी के चलते उत्पादन में रुकावट आई, जिससे स्मार्टफोन्स की कीमतों में इजाफा हुआ. इसके साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आपूर्ति श्रृंखला पर असर पड़ा, जिससे महंगाई के चलते निर्माण लागत भी बढ़ी. कड़े नियमों और स्थिरता की ओर बढ़ते रुझान के कारण उत्पादन लागत में भी इजाफा हुआ, जिससे कंपनियों के पास कीमतें बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा. इस वजह से सस्ते स्मार्टफोन्स पर ध्यान कम हो गया और इनकी उपलब्धता घटने लगी.

फोन का ‘सस्ता’ होना ही सबसे बड़ी समस्या
सस्ते स्मार्टफोन्स को अक्सर “सस्ता” और “अफोर्डेबल” कहे जाने के चलते इन्हें “कम गुणवत्ता वाला” माना जाता है. लेकिन 2010 के शुरुआती दौर में जब स्मार्टफोन ब्रांड्स भारत में आए थे, तब सस्ते फोन्स की मांग ज्यादा थी. उस समय स्मार्टफोन बाजार पूरी तरह से विकसित नहीं हुआ था, और कंपनियां सस्ते फोन्स के साथ महंगे स्मार्टफोन्स भी पेश कर रही थीं.

अब बाजार में महंगे स्मार्टफोन्स की बढ़ती मांग के कारण सस्ते फोन का स्थान कम हो गया है. सस्ते स्मार्टफोन्स से ज्यादा मुनाफा नहीं मिलता, इसलिए कंपनियां अब प्रीमियम फोन्स पर जोर दे रही हैं. इसके अलावा, कई ब्रांड्स अपने प्रीमियम इमेज को भी मजबूत करना चाहते हैं. Apple के भारत में महंगे आईफोन्स की आक्रामक रणनीति को देखते हुए, अन्य ब्रांड्स ने भी इसी मॉडल को अपनाना शुरू कर दिया है.

अफोर्डेबल विकल्प से फोन खरीदना हुआ आसान
सस्ता स्मार्टफोन खरीदने के बजाय, ग्राहक अब EMI और कैशबैक ऑफर्स के जरिए 50,000 रुपये से अधिक कीमत के फोन्स भी आसानी से खरीद सकते हैं. EMI और फाइनेंस के चलते ग्राहक फोन की असल कीमत से अनजान रहते हैं, और महंगे फोन्स खरीदने में उन्हें कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं होती.

भारत जैसे कीमत-संवेदनशील बाजार में अभी भी 10,000 रुपये से कम कीमत के फोन्स की भारी मांग है. लेकिन कंपनियों का फोकस महंगे स्मार्टफोन्स की ओर बढ़ने के कारण सस्ते फोन्स का आकर्षण धीरे-धीरे कम होता जा रहा है.

सस्ते स्मार्टफोन्स का धीरे-धीरे गायब होना बाजार के लिए एक बड़ा सवाल है. शायद अब समय आ गया है कि सस्ते फोन्स को दोबारा से परिभाषित किया जाए ताकि इस सेगमेंट को खत्म होने से रोका जा सके.


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