यूपी- अतुल सुभाष सुसाइड केस: निकिता, निशा, अनुराग या सुशील सिंघानिया… इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किसे दी राहत? – INA

AI सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतुल सुभाष सुसाइड केस में एक याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है. यह याचिका अतुल की पत्नी निकिता सिंघानिया समेत चारों ने आरोपियों ने लगाई थी. सोमवार को इस याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए चारों आरोपियों को अग्रिम जमानत दे दी. लेकिन इसका फायदा चारों में से सिर्फ एक को ही मिलेगा.

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जानकारी के मुताबिक, हाईकोर्ट ने अतुल सुभाष की पत्नी निकिता, सास निशा, साले अनुराग और पत्नी के चाचा सुशील सिंघानिया को अग्रिम जमानत दे दी है. हालांकि पत्नी, सास और साला पहले ही गिरफ्तार हो चुके हैं. ऐसे में यह जमानत अब उनके किसी काम की नहीं रह जाती है. अब केवल अतुल की पत्नी के चाचा सुशील सिंघानिया को ही राहत मिल पाएगी. यानि पुलिस फिलहाल उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकेगी.

अतुल के सुसाइड के बाद भाई विकास की तहरीर पर चारों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था. इसी के बाद बेंगलुरु पुलिस जौनपुर स्थित निकिता सिंघानिया के घर पहुंची. वो लोग उस वक्त वहां से भाग चुके थे. इसलिए पुलिस ने घर के बाहर नोटिस चस्पा करके चारों की तलाश शुरू कर दी. इसी के बाद सभी ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की थी. इस पर सोमवार की डेट लगी थी.

इससे पहले ही रविवार को पत्नी, सास और साले को कर्नाटक पुलिस ने गिरफ्तार कर बंगलुरु की कोर्ट में पेश कर दिया. जहां से तीनों को न्यायिक हिरासत में जेल भी भेजा जा चुका है. अग्रिम जमानत की याचिका पर सोमवार को न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव ने सुनवाई की. उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष तिवारी ने तर्क दिया कि याची मृतक की पत्नी, सास और साले हैं. उन्हें बेंगलुरु पुलिस ने पहले ही गिरफ्तार कर लिया है और उनकी अग्रिम जमानत अर्जी का कोई मतलब नहीं है. अब अग्रिम जमानत अर्जी केवल सुशील सिंघानिया के लिए है.

कोर्ट ने क्या दिया तर्क

यह तर्क दिया गया कि गिरफ्तारी एक सुसाइड नोट और एक वीडियो के आधार पर की गई है, जो इंटरनेट पर वायरल हुए हैं और सुशील सिंघानिया को मीडिया ट्रायल का सामना करना पड़ रहा है. यह भी तर्क दिया गया कि सुशील सिंघानिया 69 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति हैं, जिन्हें पुरानी बीमारी है और वह लगभग अक्षम हैं. आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई सवाल ही नहीं है.

हाईकोर्ट ने बताया अंतर

ऐसा भी कहा गया कि आत्महत्या के लिए उकसाने और उत्पीड़न के बीच एक अंतर है. यदि सुसाइड नोट को सही मान लिया जाता है तो सबसे ज्यादा आरोप उत्पीड़न के लिए लगाए जाएंगे, जो मृतक को झूठे मामलों में फंसाने और बड़ी रकम निकालने के लिए हैं. किसी भी मामले में बीएनएस की धारा 108, 3(5) के तहत आत्महत्या का अपराध नहीं कहा जा सकता है.

अगर गिरफ्तार होते भी हैं तो…

यह भी तर्क दिया गया कि सुशील सिंघानिया को उचित समय के लिए सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए ताकि वह अपना पक्ष कर्नाटक की अदालत और संबंधित अधिकारियों के सामने प्रस्तुत कर सकें. कोर्ट ने सुशील सिंघानिया की अग्रिम जमानत सशर्त मंजूर करते हुए कहा कि यदि सुशील सिंघानिया को गिरफ्तार किया जाता है, तो उन्हें 50 हजार रुपए के व्यक्तिगत बंधपत्र और दो जमानतदारों के प्रस्तुत होने पर मजिस्ट्रेट/अदालत के संतुष्ट होने पर रिहा किया जाएगा.


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