यूपी- कानपुर: पत्नी नहीं लगाती थी मांग में सिंदूर, पति को मिल गया तलाक – INA

हमारे हिंदू धर्म में पत्नी की मांग में सिंदूर लगाने का एक खास महत्व है. माना जाता है कि मांग में सिंदूर लगाना पतिव्रता नारी की सबसे बड़ी पहचान है. हालांकि आज के आधुनिक युग में महिलाएं इसको “आउट ऑफ फैशन” मानने लगी हैं. ऐसे ही एक मामले में यूपी के कानपुर कोर्ट ने तलाक मंजूर करते हुए सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने सिंदूर न लगाने वाली को महिलाओं को गलत कहा है.

स्टेट बैंक से वीआरएस ले चुके 56 वर्षीय पति ने अपनी 40 वर्षीय पत्नी से तलाक के लिए पारिवारिक न्यायालय में अर्जी लगाई थी. दोनों की शादी 2008 में आर्य समाज रीति से हुई थी. शादी के कुछ समय बाद ही दोनों में झगड़ा होने लगा. पति का आरोप था कि शादी के बाद से ही उसकी पत्नी, उनकी विधवा मां को घर से निकालने का दबाव बनाती थी. 2014 में पत्नी ससुराल चली गई और धमकाया कि झूठे मुकदमे में फंसा देगी.

पत्नी ने लगाए ये आरोप

वहीं दूसरी तरफ पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके पति ने पांच लाख रुपए दहेज की मांग की और ना देने पर मारपीट कर घर से निकाल दिया. यह पूरा मामला पारिवारिक न्यायालय में चल रहा था. मुकदमे की सुनवाई के दौरान पति के अधिवक्ता ने पत्नी के सिंदूर ना लगाने की भी बात उठाई. अधिवक्ता ने कहा कि पति उनके मुवक्किल को पति मानती ही नहीं है इसलिए मांग में सिंदूर भी नहीं लगाती हैं.

साक्ष्यों के आधार पर कर ली तलाक की अर्जी मंजूर

मुकदमे में कोर्ट ने इस बिंदु के अलावा अन्य साक्ष्यों के आधार पर तलाक की अर्जी मंजूर कर ली. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि विवाह पर विश्वास करने वाली हर नारी से अपेक्षा की जाती है कि वह मांग में सिंदूर भरने को अपना कर्तव्य माने. सिंदूर ना लगाना संकेत है कि भावनात्मक रूप से पति पत्नी के संबंध खत्म हो चुके हैं. सिंदूर लगाना विवाह की स्वीकार्यता से जुड़ा हुआ है.


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