UP News: दिल्ली में बिछड़ गए यूपी के दो लड़के, केजरीवाल के साथ अखिलेश की जोड़ी कितनी होगी हिट? – INA
उत्तर प्रदेश में आठ साल पहले कांग्रेस और सपा ने पहली बार गठबंधन कर 2017 के विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरी थी. राहुल गांधी और अखिलेश यादव की सियासी केमिस्ट्री को ‘यूपी के दो लड़कों’ की जोड़ी बताई गई थी. 2024 में कांग्रेस और सपा ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा. इस बार राहुल-अखिलेश की जोड़ी बीजेपी को मात देने में सफल रहे. यूपी की 80 संसदीय सीटों में से सपा 37 सीटें और कांग्रेस 6 सीटें जीतने में सफल रही है.
संसद से सड़क और सोशल मीडिया तक राहुल गांधी और अखिलेश यादव एक दूसरे के सुर में सुर मिलाते नजर आते थे. माना जा रहा था कि राहुल और अखिलेश की दोस्ती सियासी राह पर लंबी चलेगी, लेकिन दिल्ली चुनाव में ‘यूपी के दो लड़कों’ की जोड़ी बिछड़ गई है. राहुल के बजाय अखिलेश यादव दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के साथ सियासी केमिस्ट्री बनाकर चल रहे हैं, लेकिन क्या चुनावी पिच पर सफल होगी?
राहुल और अखिलेश में सियासी दूरियां
अखिलेश यादव और राहुल गांधी गुरुवार को दिल्ली के एक ही इलाके में चुनाव प्रचार कर रहे थे, लेकिन यूपी के दोनों लड़के एक साथ नहीं बल्कि अलग-अलग थे. राहुल गांधी बादली विधानसभा क्षेत्र में जनसभा संबोधित कर रहे थे तो अखिलेश यादव किराड़ी क्षेत्र में अरविंद केजरीवाल के साथ रोड शो कर रहे थे. राहुल और अखिलेश एक दूसरे से 15 किलोमीटर की दूरी पर थे, लेकिन उनके बीच सियासी दूरियां काफी थीं.
राहुल गांधी बादली में केजरीवाल पर आक्रामक हमले कर रहे थे तो अखिलेश यादव दिल्ली में केजरीवाल को जिताने की अपील कर रहे थे. इतना ही नहीं अखिलेश यादव ने कहा कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी को लेकर लोगों का जोश और उत्साह देखने को मिल रहा है. कांग्रेस का नाम लिए बगैर अखिलेश ने कहा कि आपको अपना वोट खराब नहीं करना है. साथ ही केजरीवाल के द्वारा किए गए कार्यों का भी बखान किया. इस तरह अखिलेश ने ‘डबल अटैक’ किया.
अखिलेश यादव के साथ-साथ सपा के तमाम दिग्गज नेता दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को जिताने के लिए उतार दिया है. केजरीवाल ने अखिलेश और सपा नेताओं के द्वारा दिल्ली में सोची-समझी रणनीति के तहत प्रचार कराने की स्टैटेजी बनाई है. इस बार के दिल्ली चुनाव में केजरीवाल के लिए सबसे ज्यादा मुश्किलें मुस्लिम और दलित-ओबीसी बहुल सीटों पर हो रहा.
राहुल गांधी लगातार पीएम मोदी के साथ केजरीवाल को दलित-मुस्लिम विरोधी कठघरे में खड़े करने में जुटे हैं, जिसके चलते ही केजरीवाल ने अखिलेश के साथ सियासी केमिस्ट्री बनाकर डैमेज कन्ट्रोल करने का दांव चला है. अखिलेश यादव न केवल यूपी वाले एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण को केजरीवाल के साथ जोड़ रहे हैं, बल्कि यूपी के रहने वाले आम वोटरों को भी आप को वोट देने का अपली कर रहे हैं.
दिल्ली में कितने यादव-मुस्लिम मतदाता?
दिल्ली में करीब 3 फीसदी यादव वोटर हैं तो 13 फीसदी मुस्लिम मतदाता है. राजधानी में 364 गांवों में से 40 गांवों में यादवों समाज का दबदबा है. यादव समाज चार से पांच सीटों पर अहम रोल में हैं तो मुस्लिम एक दर्जन सीटों पर हार-जीत तय करते हैं. रिठाला, किराड़ी, नांगलोई, नजफगढ़, विकासपुरी, बादली, महरौली सीट पर यादव समुदाय के लोग जीत सकते हैं या फिर किसी को जिताने की ताकत रखते हैं. दिल्ली में तीनों ही प्रमुख पार्टियों ने यादव प्रत्याशी उतार रखे हैं.
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने तीन-तीन यादव प्रत्याशी उतारे हैं तो बीजेपी ने दो यादव समुदाय पर दांव खेला है. AAP विकासपुरी में महेन्द्र यादव, नजफगढ़ में तरुण यादव और बदली में अजेय यादव पर दांव खेला है. बीजेपी ने महरौली महिंदर चौधरी और बादली में गजेंद्र यादव को उतारा है. कांग्रेस ने नजफगढ़ सीट से सुषमा यादव, बादली से देवेंद्र यादव और राजेंद्र नगर से विनीत यादव को उतारा है. बादली विधानसभा सीट यादव बहुल क्षेत्र है, जहां पर तीनों पार्टियों के यादव उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर है.
1 दर्जन सीटों को प्रभावित करते मुस्लिम वोटर
मुस्लिम वोटर एक दर्जन से ज्यादा सीटों को प्रभावित करते हैं, लेकिन सात ऐसी सीटें हैं जहां उनके वोट से ही जीत-हार तय होती.इन सात सीटों में सीलमपुर, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, चांदनी चौक, बल्लीमारान, मटिया महल और ओखला शामिल हैं. 2020 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने इन सातों मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2015 में 6 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने और मुस्तफाबाद सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. 1993 से 2013 तक इन मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस का एकक्षत्र राज कायम था, लेकिन अरविंद केजरीवाल के सत्ता में आने के बाद मुस्लिम मतदाता कांग्रेस को छोड़कर आम आदमी पार्टी के साथ चले गए.
यादव-मुस्लिम वोट पाने की कोशिश में केजरीवाल
अखिलेश यादव के साथ सियासी जोड़ी बनाकर केजरीवाल इस कोशिश में है कि यादव-मुस्लिम वोट कांग्रेस के पाले में किसी भी सूरत में न जा सके. राहुल गांधी ने दिल्ली प्रदेश की कमान यादव समाज के आने वाले देवेंद्र यादव के हाथों में सौंप रखी है तो मुस्लिम वोटों पर खास फोकस किया है. केजरीवाल के साथ अखिलेश यादव जिस समय रोड शो कर रहे थे, उस समय राहुल गांधी बादली में देवेंद्र यादव के लिए प्रचार कर रहे थे.
अखिलेश यादव को उतारकर अरविंद केजरीवाल ने एक तीर से कई निशाना साध लिया है. यादव बहुल सीटों के साथ-साथ मुस्लिम समीकरण को भी साधने की कवायद की है. इस बार सपा दिल्ली चुनाव में खुद लड़ने के बजाय आम आदमी पार्टी को समर्थन कर रही है. पूर्वांचली और यादव-मुस्लिम मतदाताओं को साधने की स्टैटेजी है.
दिल्ली में सपा का सियासी आधार
दिल्ली में समाजवादी पार्टी का कभी खाता तक नहीं खुला है. 2015 और 2020 का चुनाव सपा नहीं लड़ी है और इस बार नहीं उतरी है. सपा ने इससे पहले 2013 में 25 सीट पर चुनाव लड़ी थी, उसे 17,042 (0.2 %) वोट मिले थे. 2008 में सपा 36 सीट पर चुनाव लड़ी थी. उसे कुल 30,073 (0.5 %) वोट मिले थे. 2003 में सपा 39 सीट पर चुनाव लड़कर 29,224 (0.6%) वोट हासिल की थी.
1998 चुनाव में सपा 24 सीट पर चुनाव लड़ी थी और19,418 (0.5 %) वोट हासिल की थी, सपा 3 सीटों पर रहे तीन नंबर पर रही. इससे पहले 1993 में सपा 26 सीट पर चुनाव लड़ी और उसे 17,717 (0.5 %) वोट मिले थे. सपा एक सीट पर रहे तीसरे नंबर पर रही थी. दिल्ली में सपा कभी भी एक सीट नहीं जीत सकी और न ही उसके उम्मीदवार अपनी जमानत बचा सके जबकि तीन फीसदी यादव वोटर है. सपा ने इस बार दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी को समर्थन कर रही है.
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