UP News: Gorakhpur News: त्रेता युग से चढ़ रही है बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी, ऐसे शुरू हुई परंपरा – INA
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गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा त्रेतायुग से चली आ रही है, और यह परंपरा आज भी श्रद्धा और भक्ति के साथ पूरी होती है. मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव का उत्तरायण होना, इस दिन का महत्व और भी बढ़ा देता है. यही कारण है कि इस दिन गोरखनाथ मंदिर में लाखों श्रद्धालु अपनी आस्थाओं के साथ खिचड़ी चढ़ाते हैं और बाबा से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
यह परंपरा केवल एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि इसमें गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तत्व भी जुड़े हैं. जब बाबा गोरखनाथ हिमाचल प्रदेश में स्थित मां ज्वाला देवी के दरबार में पहुंचे थे, तो वहां उन्होंने अपना भोजन भिक्षा के रूप में लिया और वहीं से इस परंपरा की शुरुआत की थी. बाबा गोरखनाथ ने पहले भिक्षाटन किया और फिर गोरखनाथ मंदिर में अपना ध्यान साधना आरंभ किया.
नेपाल के एकीकरण का आशीर्वाद
बाबा गोरखनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लोग उन्हें चावल, दाल जैसी चीज़ें दान करते थे. समय के साथ यह परंपरा खिचड़ी चढ़ाने के रूप में बदल गई. गोरखनाथ की खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा नेपाल के एकीकरण से भी जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि एक बार नेपाल के तत्कालीन राजा ने अपने बेटे, राजकुमार पृथ्वी नारायण शाह को गोरखनाथ से मिलने के लिए भेजा था.
जब राजकुमार गुफा में पहुंचे तो बाबा गोरखनाथ ने उन्हें दही की मांग की. राजकुमार दही लेकर आए और बाबा ने उस दही से आचमन किया और फिर उनके हथेली पर उल्टी कर दी. इस घटना के बाद बाबा ने उन्हें नेपाल के एकीकरण का आशीर्वाद दिया. कुछ समय बाद, वही राजकुमार नेपाल का राजा बना और उसने नेपाल का एकीकरण किया. उसी समय से नेपाल का राज परिवार गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा निभाता आ रहा है.
मकर संक्रांति का महत्व
मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के उत्तरायण होने की खुशी में मनाया जाता है, जिससे प्रकृति में ऊर्जा का संचार होता है. गोरखनाथ मंदिर में इस दिन खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा का उद्देश्य लोगों के जीवन में सुख-समृद्धि और सुख-शांति की कामना करना है.
इस दिन सबसे पहले गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ खिचड़ी चढ़ाकर बाबा गोरखनाथ को भोग अर्पित करते हैं. इसके बाद नेपाल के राजपरिवार की तरफ से भी खिचड़ी चढ़ाई जाती है. फिर मंदिर के कपाट खोलकर जनसामान्य के लिए खिचड़ी चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू होती है.
खिचड़ी मेला और सामाजिक समरसता
गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने के साथ ही खिचड़ी मेला की शुरुआत होती है. यह मेला सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है. इस मेले में हिंदू, मुस्लिम, और अन्य सभी धर्मों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ काम करते हैं.
उत्तरायण का सामान्य अर्थ है…
सूर्य अपने पूरे वार्षिक भ्रमण में उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के बीच घूमता है. जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तर की ओर बढ़ता है, तो उत्तरी गोलार्ध में दिन का समय बढ़ने लगता है और रात छोटी होने लगती है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करता है, जिससे दिन लंबा होने लगता है.
जब सूर्य मकर संक्रांति के दिन उत्तरायण होते हैं, तो इसे धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व दिया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस समय से देवताओं के दिन का आरंभ होता है और प्रकृति में एक नई ऊर्जा का संचार होता है. शीत ऋतु में ठंड से कांपते जीव-जंतु अब ऊर्जा महसूस करने लगते हैं.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस समय स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते हैं और जो जीव देह त्याग कर गए होते हैं, उन्हें स्वर्ग में प्रवेश मिलता है. वहीं, कृष्ण पक्ष में मृत्यु को प्राप्त हुए जीवों को अपने कर्मों का फल भोगने के लिए पुनः पृथ्वी पर आना पड़ता है. यह मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन जो व्यक्ति देह त्याग करते हैं, वे जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाते हैं.
उत्तरायण का पर्व पूरे भारत में भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है, लेकिन सभी स्थानों पर सूर्य देव की पूजा और उनकी आराधना का सामान्य तत्व समान रहता है. इस दिन सूर्य की पूजा की जाती है और उन्हें तिल, गुड़, चावल आदि से बने विशेष व्यंजन अर्पित किए जाते हैं.
Gorakhpur News: त्रेता युग से चढ़ रही है बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी, ऐसे शुरू हुई परंपरा
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