UP News: महाकुंभ: 2500 साल पुरानी है पीपा पुल बनाने की टेक्निक, जानें कितना भार उठा सकता है? – INA

प्रयागराज में इन दिनों भव्य और दिव्य महाकुंभ मेला चल रहा है. मेले में तरह-तरह की ढेरों चीजें चर्चा का विषय बनी हुई हैं. इनमें से यही एक पीपे के पुल, जो कि ढाई हजार साल पुरानी फारसी तकनीक से बनाए गए है. यह पुल अखाड़े में महत्वपूर्ण कड़ी का काम कर रहे है. महाकुंभ मेला 4,000 हेक्टेयर में फैले हुआ है, जिसे 25 सेक्टरों में बांटा गया है. इन सब सेक्टरों को जोड़ने में पीपे के पुल महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं.
दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक मेले का आयोजन प्रयागराज में चल रहा है. यह मेला अपने आप में बेहद खास है. मेले में देश-विदेश से 40 करोड़ श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है. मेले की बेहतर व्यवस्था और आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए के लिए पीपे के पुलों का निर्माण किया गया है. इन पीपे के पुलों का निर्माण 2,200 से अधिक काले तैरते लोहे के कैप्सूलनुमा पीपों के इस्तेमाल से किया गया है.
5 टन वजन उठा सकते हैं पीपे के पुल
प्रत्येक पीपे के वजन की बात करे, तो इसका वजन करीब पांच टन है. यह पुल करीब इतना ही भार सह सकते है. महाकुंभ नगर के ADM विवेक चतुर्वेदी ने बताया कि यह पुल संगम और अखाड़ों के बीच के क्षेत्रों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने बताया कि यह पुल महाकुंभ मेला का अभिन्न अंग हैं. दिनभर में लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस पुल से आवाजाही कर रहे हैं. पुल के इस्तेमाल के साथ इसकी निगरानी भी जा रही है.
480 ईसा पूर्व में हुआ था पहली बार निर्माण
ADM का कहना है कि हमने प्रत्येक पुल पर CCTV कैमरे लगाए हैं. साथ ही केंद्र भी बनाया है, जहां से CCTV की निगरानी की जा रही है. पीपे के पुल की बात करे, तो इस पुल का पहली बार निर्माण 480 ईसा पूर्व में उस समय किया गया था. जब फारसी राजा जेरेक्सेस प्रथम ने यूनान पर आक्रमण किया था. चीन में झोउ राजवंश ने भी 11वीं शताब्दी ईसा पूर्व में इन पुलों का इस्तेमाल किया था.भारत में पहली बार इस तरह के पुल का निर्माण अक्टूबर 1874 में हावड़ा और कोलकाता के बीच हुगली नदी पर किया गया था.
महाकुंभ: 2500 साल पुरानी है पीपा पुल बनाने की टेक्निक, जानें कितना भार उठा सकता है?
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