UP News: त्रिशूल, तलवार और भाला… नागा साधु अपने पास हथियार क्यों रखते हैं? जानिए इसकी वजह – INA

साधुओं की छवि आमतौर पर सांसारिक मोह माया और हिंसा से दूर रहने और साधना में लीन रहने वाली होती है. लेकिन जब बात नागा साधुओं की होती है, तो आपने देखा होगा कि साधना के बीच भी वे हमेशा अपने साथ अस्त्र रखते हैं. एक साधु का जीवन त्याग और तपस्या का प्रतीक माना जाता है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर एक साधु होकर भी नागा क्यों अस्त्र रखते हैं.

नागा साधु भगवान शिव के अनुयायी माने जाते हैं और उनकी पूजा करते हैं. कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए ही नागा साधुओं और अखाड़ों की स्थापना की थी. इसलिए नागा साधु अपने अस्त्रों का इस्तेमाल धर्म की रक्षा के लिए करते हैं. उनका अस्त्र केवल आत्मरक्षा के लिए होता है, ना कि किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए.

अस्त्रों का महत्व

नागा साधुओं के पास जो अस्त्र होते हैं, जैसे त्रिशूल, तलवार और भाला, उनका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. त्रिशूल भगवान शिव का प्रिय अस्त्र है और इसे शक्ति, सृष्टि और विनाश का प्रतीक माना जाता है. इसे भगवान शिव की शक्ति का प्रतिनिधित्व करने के रूप में देखा जाता है.

वहीं तलवार और भाला वीरता और साहस के प्रतीक होते हैं. यह अस्त्र उन साधुओं के शौर्य और बलिदान का प्रतीक होते हैं जो धर्म और समाज की रक्षा में जुटे रहते हैं. नागा साधु इन अस्त्रों को केवल आत्मरक्षा के रूप में रखते हैं, ताकि अगर कभी जरूरत पड़े तो वे अपनी रक्षा कर सकें.

सालों से परंपराओं और संस्कृति की रक्षा

इतिहास में जब भारत पर विदेशी आक्रमणकारी आए थे, तब नागा साधुओं ने अपने अस्त्रों का इस्तेमाल धर्म की रक्षा के लिए किया था. वे भारतीय मंदिरों, परंपराओं और संस्कृति की रक्षा के लिए लड़ते थे. नागा साधुओं का अस्त्र रखना इस बात का प्रतीक है कि वे किसी भी संकट की स्थिति में धर्म की रक्षा के लिए तैयार रहते हैं.

नागा साधु अपने अस्त्रों का इस्तेमाल केवल आत्मरक्षा और धर्म की रक्षा के लिए करते हैं. वे इसे किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं रखते हैं. उनके अस्त्र सिर्फ उनके तप और साधना का हिस्सा हैं, जो उन्हें शक्ति और साहस प्रदान करते हैं.

नागा साधु अपने अस्त्रों के साथ एक जीवन जीते हैं जो न केवल उनके आत्मविश्वास और ताकत का प्रतीक है, बल्कि यह उनके धर्म की रक्षा के लिए उनकी तैयारियों को भी दर्शाता है. यह उनके जीवन में तप, त्याग और बलिदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो उनके आध्यात्मिक और धार्मिक उद्देश्यों के साथ मेल खाता है.

त्रिशूल, तलवार और भाला… नागा साधु अपने पास हथियार क्यों रखते हैं? जानिए इसकी वजह





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साधुओं की छवि आमतौर पर सांसारिक मोह माया और हिंसा से दूर रहने और साधना में लीन रहने वाली होती है. लेकिन जब बात नागा साधुओं की होती है, तो आपने देखा होगा कि साधना के बीच भी वे हमेशा अपने साथ अस्त्र रखते हैं. एक साधु का जीवन त्याग और तपस्या का प्रतीक माना जाता है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर एक साधु होकर भी नागा क्यों अस्त्र रखते हैं.

नागा साधु भगवान शिव के अनुयायी माने जाते हैं और उनकी पूजा करते हैं. कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए ही नागा साधुओं और अखाड़ों की स्थापना की थी. इसलिए नागा साधु अपने अस्त्रों का इस्तेमाल धर्म की रक्षा के लिए करते हैं. उनका अस्त्र केवल आत्मरक्षा के लिए होता है, ना कि किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए.

अस्त्रों का महत्व

नागा साधुओं के पास जो अस्त्र होते हैं, जैसे त्रिशूल, तलवार और भाला, उनका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. त्रिशूल भगवान शिव का प्रिय अस्त्र है और इसे शक्ति, सृष्टि और विनाश का प्रतीक माना जाता है. इसे भगवान शिव की शक्ति का प्रतिनिधित्व करने के रूप में देखा जाता है.

वहीं तलवार और भाला वीरता और साहस के प्रतीक होते हैं. यह अस्त्र उन साधुओं के शौर्य और बलिदान का प्रतीक होते हैं जो धर्म और समाज की रक्षा में जुटे रहते हैं. नागा साधु इन अस्त्रों को केवल आत्मरक्षा के रूप में रखते हैं, ताकि अगर कभी जरूरत पड़े तो वे अपनी रक्षा कर सकें.

सालों से परंपराओं और संस्कृति की रक्षा

इतिहास में जब भारत पर विदेशी आक्रमणकारी आए थे, तब नागा साधुओं ने अपने अस्त्रों का इस्तेमाल धर्म की रक्षा के लिए किया था. वे भारतीय मंदिरों, परंपराओं और संस्कृति की रक्षा के लिए लड़ते थे. नागा साधुओं का अस्त्र रखना इस बात का प्रतीक है कि वे किसी भी संकट की स्थिति में धर्म की रक्षा के लिए तैयार रहते हैं.

नागा साधु अपने अस्त्रों का इस्तेमाल केवल आत्मरक्षा और धर्म की रक्षा के लिए करते हैं. वे इसे किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं रखते हैं. उनके अस्त्र सिर्फ उनके तप और साधना का हिस्सा हैं, जो उन्हें शक्ति और साहस प्रदान करते हैं.

नागा साधु अपने अस्त्रों के साथ एक जीवन जीते हैं जो न केवल उनके आत्मविश्वास और ताकत का प्रतीक है, बल्कि यह उनके धर्म की रक्षा के लिए उनकी तैयारियों को भी दर्शाता है. यह उनके जीवन में तप, त्याग और बलिदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो उनके आध्यात्मिक और धार्मिक उद्देश्यों के साथ मेल खाता है.

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