UP News: मायावाती की परछाई बनकर रहने वाले सतीश चंद्र मिश्रा BSP की सियासत में क्यों हैं साइड लाइन? – INA
मायावती के साथ साए की तरह रहने वाले सतीश चंद्र मिश्रा इन दिनों बीएसपी की राजनीति नेपथ्य में चले गए हैं. बुधवार को बीएसपी की तरफ से जारी स्टार प्रचारकों की सूची में मिश्रा का नाम शामिल नहीं था. वो भी तब, जब दिल्ली के दंगल में बीएसपी पूरी ताकत झोंकने की रणनीति पर काम कर रही है.
बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव पद पर काबिज मिश्रा को एक वक्त में मायावती का चाणक्य भी कहा जाता था. 2007 से 2012 तक सतीश ही बीएसपी के दूसरे बड़े नेता थे.
अब स्टार प्रचारक लिस्ट में भी नहीं
बुधवार को बहुजन समाज पार्टी ने जिन 40 नेताओं के नाम चुनाव आयोग को सौंपे हैं, उनमें राष्ट्रीय स्तर के मायावती और उनके भतीजे आकाश आनंद का नाम ही सिर्फ शामिल हैं. लिस्ट में इसके बाद दिल्ली इकाई के नेताओं को जगह दी गई है. तीसरे नंबर पर बीएसपी के दिल्ली अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह का नाम शामिल हैं.
2024 के लोकसभा चुनाव में सतीश चंद्र मिश्रा का नाम स्टार प्रचारकों की सूची में तीसरे नंबर पर था. इतना ही नहीं, 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीएसपी के स्टार प्रचारक लिस्ट में सतीश चंद्र मिश्रा का नाम दूसरे नंबर पर था.
मिश्रा को मायावती का काफी भरोसेमंद माना जाता रहा है. 2007 में सरकार गठन के कुछ महीने बाद ही मायावती ने मिश्रा को अपने कैबिनेट से हटाकर राष्ट्रीय स्तर की ड्यूटी लगा दी थी. उस वक्त मायावती ने मिश्रा को पूरे देश में सवर्ण को जोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी थी. हालांकि, मिश्रा इस काम में सफल नहीं हो पाए.
दिल्ली चुनाव पर मायावती की नजर
मायावती की पार्टी बिना किसी गठबंधन के दिल्ली चुनाव में उतरी है. एक वक्त में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मायावती मजबूत स्थिति में थी. 2008 में मायावती की पार्टी को 2 सीटों पर जीत मिली थी. उसे करीब 15 प्रतिशत मत मिले थे. 2013 में बीएसपी को सीटें तो नहीं मिली, लेकिन उसे वोट जरूर 5 प्रतिशत मिले.
दिल्ली रण में मायावती ने इस बार सभी सीटों पर उम्मीदवार उतार दिया है. मायावती का कहना है कि अगर सही ढंग से चुनाव कराया गया तो दिल्ली में बीएसपी अपने सारे रिकॉर्ड को तोड़ देगी. मायावती की पार्टी दलितों के लिए रिजर्व सीट पर ज्यादा मेहनत कर रही है.
दिल्ली में दलितों के लिए 12 सीटें रिजर्व है. राजधानी में दलितों की आबादी करीब 17 प्रतिशत है.
बीएसपी में नेपथ्य में कैसे गए मिश्रा?
2019 के बाद बहुजन समाज पार्टी के भीतर आकाश आनंद को जिम्मेदारी मिलनी शुरू हुई. आकाश पहले कॉर्डिनेटर और फिर उत्तराधिकारी घोषित किए. 2022 के बाद आकाश आनंद का प्रभाव बीएसपी में बढ़ता गया. आकाश की वजह से ही बीएसपी के बड़े नेता सोशल मीडिया पर सक्रिय हुए.
मायावती सोशल मीडिया हैंडल एक्स के जरिए हर मुद्दों पर अपनी राय बेबाकी से रखती हैं. आकाश का कद जैसे-जैसे बीएसपी में बढ़ता गया, वैसे-वैसे सतीश नेपथ्य में जाते गए. 2022 के जुलाई में उनके पास से राज्यसभा की कुर्सी भी चली गई.
2023 में तो सतीश चंद्र मिश्रा के बीएसपी छोड़ने की चर्चा भी शुरू हो गई थी. हालांकि, मिश्रा बहनजी के साथ डटे रहे. 2024 लोकसभा चुनाव में मिश्रा के कानपुर से लड़ने की खबर भी आई, लेकिन मिश्रा मैदान में नहीं उतरे.
लोकसभा चुनाव 2024 में तमाम कवायदों के बावजूद बीएसपी को सफलता नहीं मिली. चुनाव में ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम फॉर्मूले को साधने निकलीं मायावती के हाथ से दलित वोट ही छिटक गए. इसके बाद मिश्रा मायावती के साथ तो दिखते हैं, लेकिन उन्हें पार्टी के भीतर कोई भी बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी जा रही है.
मिश्रा के साइड लाइन होने की एक वजह उनका मजबूत जनाधार न होना भी है. वकालत से राजनीति में आने वाले मिश्रा न तो कभी खुद चुनाव जीत पाए हैं और न ही लड़े हैं. मिश्रा राज्यसभा के जरिए ही राजनीति करते रहे हैं.
मायावाती की परछाई बनकर रहने वाले सतीश चंद्र मिश्रा BSP की सियासत में क्यों हैं साइड लाइन?
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