यूपी – चिंताजनक: युवाओं की ही नहीं… शिशुओं की भी सेहत बिगाड़ रहा मोबाइल, छीन रहा भाषा व सामाजिकता का विकास – INA

Excessive use of mobile is causing autism in children and their language and social skills are not developing

child with mobile (Demo)

– फोटो : freepik

राजधानी लखनऊ स्थित केजीएमयू में चलने वाली बाल एवं किशोर मनोरोग की ओपीडी में अभिभावक अपने बच्चे को लेकर पहुंच रहे हैं। उनकी समस्या है कि बच्चे की उम्र तीन साल होने वाली है। पहले की तरह अब हमसे बात नहीं करता। बुलाने और पुचकारने पर आंख से आंख नहीं मिलाता है। अपने आसपास ऐसे देखता है मानो कार्टून के चरित्र तलाश रहा हो। 

केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के डॉ. अमित आर्या के मुताबिक, ये ऑटिज्म के लक्षण हैं। यह समस्या कम उम्र में मोबाइल फोन ज्यादा देखने से आती है। ओपीडी में कम से कम चार-पांच ऐसे बच्चे लाए जाते हैं, जिनकी समस्या मोबाइल या फिर स्क्रीन आधारित होती है। इसकी वजह से उनका सामाजिक व्यवहार और सोचने की क्षमता प्रभावित हो जाती है। समस्या की पहचान देर से होने पर बच्चे का इलाज करना काफी मुश्किल हो जाता है।


इन बच्चों के अभिभावकों ने बताया कि उन्होंने अपनी व्यस्तताओं के चलते बच्चे को कम उम्र से ही मोबाइल दिखाना शुरू कर दिया था। बच्चा जब थोड़ा बड़ा हुआ तो उसमें कई तरह की समस्याएं नजर आईं। इसके बाद ही उन्होंने डॉक्टर से सलाह लेना उचित समझा।
 


दो साल की उम्र से पहले न दिखाएं फोन

डॉ. अमित के मुताबिक, दो साल से कम उम्र के बच्चे को किसी भी प्रकार की स्क्रीन नहीं दिखानी चाहिए। दो से पांच साल की उम्र में बच्चे को एक दिन में अधिकतम एक घंटे मोबाइल या फिर कोई अन्य स्क्रीन टीवी या कंप्यूटर दिखा सकते हैं, लेकिन इसका उपयोग पूरी तरह से शैक्षणिक होना चाहिए। बच्चों को सिर्फ पढ़ाई और कविताओं वाले कार्टून ही दिखाना चाहिए। इससे उसका मानसिक विकास सही तरीके से होगा।
 


सप्ताह में तीन दिन चलती है ओपीडी

केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग में बाल एवं किशोरों के लिए सप्ताह में तीन दिन सोमवार, बुधवार और शुक्रवार ओपीडी चलती है। इसमें बच्चों के मानसिक रोगों से संबंधित समस्याओं का इलाज होता है। आमतौर पर हर ओपीडी में करीब 70 से 80 बच्चे इलाज के लिए लाए जाते हैं।
 


जानिए, क्या है ऑटिज्म

ऑटिज्म को मेडिकल की भाषा में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर कहते हैं। यह विकास संबंधी गड़बड़ी है। पीड़ित व्यक्ति को बातचीत, पढ़ने-लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने में समस्या होती है। इसमें पीड़ित व्यक्ति का दिमाग सामान्य लोगों के मुकाबले अलग तरीके से काम करता है। इसके कुछ मरीज या तो पढ़ने लिखने में बहुत तेज होते हैं या फिर बेहद सामान्य होते हैं।

राजधानी लखनऊ स्थित केजीएमयू में चलने वाली बाल एवं किशोर मनोरोग की ओपीडी में अभिभावक अपने बच्चे को लेकर पहुंच रहे हैं। उनकी समस्या है कि बच्चे की उम्र तीन साल होने वाली है। पहले की तरह अब हमसे बात नहीं करता। बुलाने और पुचकारने पर आंख से आंख नहीं मिलाता है। अपने आसपास ऐसे देखता है मानो कार्टून के चरित्र तलाश रहा हो। 

केजीएमयू के मानसिक रोग विभाग के डॉ. अमित आर्या के मुताबिक, ये ऑटिज्म के लक्षण हैं। यह समस्या कम उम्र में मोबाइल फोन ज्यादा देखने से आती है। ओपीडी में कम से कम चार-पांच ऐसे बच्चे लाए जाते हैं, जिनकी समस्या मोबाइल या फिर स्क्रीन आधारित होती है। इसकी वजह से उनका सामाजिक व्यवहार और सोचने की क्षमता प्रभावित हो जाती है। समस्या की पहचान देर से होने पर बच्चे का इलाज करना काफी मुश्किल हो जाता है।


Credit By Amar Ujala

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