यूपी- दो सौ साल पुरानी बनारसी पान की दुकान, जानी-मानी हस्तियों को भी खिला चुके हैं बीड़ा – INA

बनारस का पान देशभर में प्रसिद्ध है, हर कोई बनारसी पान का दिवाना है. बनारस के पान को लेकर गाना भी बना है. आज हम एक ऐसी ही दुकान के बारे में बात करने जा रहे हैं जहां दो सौ साल से लोगों को पान खिलाया जा रहा है. 1802 में चौरसिया गुरू ने इस दुकान की नींव रखी थी. उनका असली नाम कोई नही जानता. उनके बाद कन्हैया लाल चौरसिया और फिर मूसे राम चौरसिया पान की दुकान संभालने लगे. ये लोग उनके परिवार से ही जुड़े लोग हैं.

जानकारी के मुताबिक, इस दुकान पर कई जानी-मानी हस्तियों ने भी पान खाया है. भारतेन्दु हल्के सादी पत्ती के साथ देशी पान पसंद करते थे. जबकि कन्हैया लाल को मगही पान पसंद था “ये बताते बताते 72 साल के राजेंद्र उदास हो जाते हैं.

चौखम्भा स्थित जौहरी बाजार में भारतेन्दु जी के मकान के बगल में उनकी दुकान पिछले सवा दो सौ साल से चल रही है. जानकार लोगों का कहना हैं कि ये दुकान कभी महान साहित्यकार और संगीत घरानों की पसंदीदा जगह हुआ करती थी. आधुनिक हिंदी के पुरोधा भारतेन्दु हरिश्चंद्र हो या हिन्दी सिनेमा के दिग्गज कलाकार कन्हैया लाल या बिस्मिल्लाह खान ही क्यूं न हों जब भी बनारस में रहें. इनके यहां बिना पान घुलाये उनका मन नही मानता था. राजेंद्र बताते हैं कि उन्होंने अपने दादा मूसे राम जी चौरसिया से सुना था कि भारतेन्दु जी का तो रोज का ही था, लेकिन उन्होंने सितारा देवी और कुमार गंधर्व जैसे महान लोगों के बारे में बताया कि बनारस आने पर वो या तो यहां खुद चले आते थे या फिर पान मंगा लेते थे.

लोगों का लगता था तांता

सम्पूर्णानंद जी या कमला पति जी अगर इधर से गुजरे और यहां नही आएं ऐसा हो ही नहीं सकता था. संपूर्णानंद जी जगरनाथी पान पसंद करते थे. गोदई महाराज और लच्छू महाराज का तो विशेष स्नेह रहा ही, राजन मिश्र के स्वर्गवास के पहले तक राजन -साजन मिश्र की जोड़ी तो यहां के मगही पान बड़े प्रेम से खाती थी.

1802 में चौरसिया गुरू ने इस दुकान की नींव रखी थी. उनका नाम ठीक ठीक कोई नही जानता था. उनके बाद कन्हैया लाल चौरसिया और फिर मूसे राम चौरसिया पान की दुकान संभालने लगे. बाबू नंदन और अब पांचवी पीढ़ी राजेंद्र चौरसिया की उम्र 72 साल की हो गई है और अब उनको दिखता भी कम है. अब उनके बेटे निशान्त और पोते प्रखर भी उनकी मदद करते हैं.

पांच से पचास रुपए तक का मिलता है पान

आनंद गुजराती पिछले पचास साल से यहां पान खा रहे हैं. उन्होंने कहा कि आज भी यहां पान में विशेष रूप से कत्थे में या सादी पत्ती में कोई मिलावट नही है. और दाम भी पांच रुपए से पचास रुपए के बीच है. हर रोज खाने वाले आज भी पांच रुपए में पान खाते हैं, जबकि गिलौरी स्पेशल पचास तक में मिल जाएगा. दुकानदार राजेंद्र ने कहा कि पान की कीमत को लेकर कुछ आना से लेकर पचास रुपए तक का सफर इस दुकान ने देखा है. जबकि बनारस में पान की कीमतें आसमान छू रही हैं.

राजेंद्र ने कहा कि पहले दोपहर और रात के खाने के बाद लोग अक्सर जमावड़ा लगाते थे और घर गृहस्ती से लेकर दिल्ली और अमेरिका तक की राजनीति बातों पर चर्चा करते थे. ये वो दौर था, जब पान खाते कम घुलाते ज़्यादा थे. समय था, फुरसत थी लेकिन अब लोग पान खाते हैं और निकल जाते हैं. बनारस में पान की दुकान कभी आपसी सरोकार के लिए सबसे मुफीद हुआ करती थी लेकिन आज लोगों में जब सरोकार ही नही रहा तो पान की दुकान कोकौनपूछताहै.


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