हम तो बोलेगें : सोनभद्र में तहसील दिवस में पुलिस अधिकारी अपने मोबाइल में मसगुल… जनता के 38 में से सिर्फ 3 तीन मामलों का निस्तारण
सोनभद्र की तहसील दुद्धी में आयोजित हुए तहसील दिवस में पेश आए हालात ने प्रशासनिक सुस्त रवैये को उजागर कर दिया है। यह आयोजन शनिवार को तहसील सभागार में हुआ, जहाँ जन समस्याओं से जुड़ी कुल 38 शिकायती प्रार्थना पत्र आए। दुःखद यह है कि मौके पर सिर्फ तीन मामलों का निस्तारण किया गया, जबकि शेष शिकायती प्रार्थना पत्रों का निस्तारण कब होगा, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। निस्तारण का यह प्रतिशत बहुत ही कम है, जो प्रशासन की कार्यकुशलता पर सवाल उठाता है।
अधिकारियों की लापरवाही
जब जनता अपने अधिकारों के लिए अधिकारी के दरवाजे पर जाती है, तो उसके पीछे एक लंबी कहानी होती है। हर व्यक्ति तब तक प्रशासन के पास नहीं आता जब तक कि वह समस्या का समाधान खुद नहीं कर लेता। लेकिन तहसील दिवस पर जब अधिकारी अपने-अपने मोबाइल में मस्त नजर आए, तो यह सवाल उठता है कि वे पीड़ित व्यक्तियों की समस्याओं को कैसे सुन रहे हैं। पुलिस क्षेत्राधिकारी अमित कुमार, सीओ प्रदीप सिंह चंदेल, तहसीलदार ज्ञानेंद्र यादव, और अन्य विभागों के अधिकारी वहां मौजूद रहे, लेकिन कई पुलिस आधिकारी मोबाइल की दुनिया में खोए हुए थे। पुलिस अधिकारी अपने-अपने मोबाइल में मसगुल नजर आए, सामने लोग खड़े हुए थे, मीडिया मौजूद थी, मीडिया फोटो ले रही थी, लेकिन अधिकारियों को अपने मोबाइल से नजर तक उठाना गवारा नहीं था। आप समझ सकते हैं कि तहसील दिवस में पीड़ित व्यक्ति मजबूर होकर ही जाता है जब अधिकारियों के दर पर ठोकरे खा चुका होता है, लेकिन जब तहसील दिवस में भी अधिकारी इस तरीके से मोबाइल की दुनिया में खोए हुए नजर आए तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अधिकारी उन पीड़ितों की क्या सुनवाई करते होंगे।यह व्यवहार आम जनता के प्रति उनकी असंवेदनशीलता को दर्शाता है।
जन सुनवाई की स्थिति
तहसील दिवस का उद्देश्य जन समस्याओं का समाधान करना है, लेकिन इस बार की स्थिति ने इसे एक मजाक बना कर रख दिया। मीडिया की मौजूदगी में भी अधिकारी अपने मोबाइल से नजर नहीं उठा पाए, जिससे यह पता चलता है कि अधिकारियों की प्राथमिकता क्या है। जिन लोगों ने प्रशासनिक दरवाजे खटखटाए हैं, वे आम तौर पर मजबूरी में ही ऐसा करते हैं। इसके बावजूद, यदि अधिकारियों में संवेदनशीलता की कमी हो, तो यह एक चिंतनीय विषय है।
निस्तारण का प्रतिशत
गौरतलब है कि निस्तारण का प्रतिशत अत्यंत कम है। केवल 1% से कम मामलों का निस्तारण होते हुए देखना एक बड़ी चिंता का विषय है। इसका सीधा मतलब यह है कि प्रशासन की कार्यप्रणाली कुछ भीषण होती जा रही है। जब एक तरफ सामान्य लोग अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए तहसील दिवस पर आते हैं, वहीं दूसरी ओर प्रशासन की इस तरह की उदासीनता यह दर्शाती है कि वे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन ठीक से नहीं कर रहे हैं।
निष्कर्ष
इस स्थिति को समझना और उससे चिंतित होना अनिवार्य है। जब प्रशासनिक अधिकारी जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में असमर्थ हैं और इस तरह का लापरवाह व्यवहार अपनाते हैं, तो यह केवल एक व्यक्ति के जीवन को प्रभावित नहीं करता, बल्कि समाज के पूरे तंत्र की स्थिरता को प्रभावित करता है। यह वक्त है कि प्रशासन अपनी कार्यप्रणाली पर ध्यान दे और जन समस्याओं के प्रति गंभीरता से कार्य करे। अन्यथा, ऐसे तंत्र की पुनर्स्थापना में समय लगेगा, और इससे जनता का भरोसा प्रशासन पर और भी कमजोर होगा।
प्रशासन का आवश्यकता है पुनर्मूल्यांकन
हम सभी को यह समझना होगा कि प्रशासन का यह लापरवाह रवैया केवल लोगों के जीवन को प्रभावित नहीं करता, बल्कि यह सरकार की छवि पर भी बुरा असर डालता है। जनता को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए और प्रशासन को भी अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए सही दिशा में कदम उठाने होंगे। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो हम सभी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। सही तरीके से प्रशासन की कार्यशैली में सुधार लाना ही लोगों के कल्याण की दिशा में पहला कदम होगा।
इस अवस्था में, उम्मीद है कि आने वाले दिनों में प्रशासनिक अधिकारियों की सोच में बदलाव आएगा और स्थिति में सुधार होगा। प्रशासन और जन प्रतिनिधियों को चाहिए कि वे जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें और उन्हें प्राथमिकता दें। तभी वास्तव में तहसील दिवस का उद्देश्य पूरा होगा।