दुनियां – क्या होता है मार्शल लॉ? जिसे लगाने पर साउथ कोरिया में मचा बवाल, कई नेताओं ने तो सत्ता भी गंवाईं – #INA
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल ने आश्चर्यजनक रूप से देर रात टेलीविजन पर संबोधित करते हुए देश में मार्शल लॉ लागू करने की घोषणा कर दी. उन्होंने इसे उत्तर कोरिया की ‘कम्युनिस्ट ताकतों’ और ‘राष्ट्रविरोधी तत्वों’ से सुरक्षा के लिए आवश्यक बताया. हालांकि उनके इस ऐलान के महज ढाई घंटे में ही नेशनल असेंबली के 190 सदस्य ने मार्शल लॉ को हटाए जाने को लेकर वोट किया. देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन होने लगें. वहां की जनता सड़कों पर उतार आई. संसद के सामने विपक्षी नेताओं ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया.
इसके बाद, इन सब बवाल के बीच आखिरकार राष्ट्रपति को अपना फैसला वापस ही लेना पड़ा. देर रात उन्होंने मार्शल लॉ को वापस लेने का आदेश दे दिया. खैर ये तो बात हो गई साउथ कोरिया में कैसे मार्शल लॉ लगा और कब हटा? इस घटना के बाद मार्शल लॉ शब्द सबसे ज्यादा प्रचलन में रहा. ऐसे में इस खबर में समझेंगे कि ये मार्शल लॉ क्या है? इसके साथ ही इससे जुड़ी कई और बातों को भी बारींकियों को समझेंगे.
मार्शल लॉ क्या है?
मार्शल लॉ एक अस्थायी आपातकालीन स्थिति है, जिसे किसी सरकार द्वारा देश में किसी तात्कालिक खतरे या सुरक्षा संकट के जवाब में लागू किया जाता है. जब मार्शल लॉ लागू होता है, तो सेना का प्रशासन सामान्य नागरिक कामों का नियंत्रण संभालता है. साथ ही राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सेना के हाथों में चली जाती है. इसके तहत नागरिक स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध, कर्फ्यू, और कानून व्यवस्था के लिए सैन्य बलों की तैनाती की जाती है.
मार्शल लॉ आमतौर पर तब लागू किया जाता है जब सरकार को बड़े पैमाने पर नागरिक अशांति, प्राकृतिक आपदाओं, या आक्रमण के खतरे का सामना करना पड़ता है. यह स्थिति आमतौर पर एक आखिरी उपाय के रूप में अपनाई जाती है, जब अन्य सभी प्रयोग विफल हो जाते हैं. मार्शल लागू करते समय साउथ कोरिया के राष्ट्रपति का भी यही कहना था कि देश को बचाने के लिए उनके पास ये आखिरी उपाय बचा था.
इतिहास में मार्शल लॉ का प्रभाव
साउथ कोरिया के इतिहास में मार्शल लॉ का अहम स्थान रहा है, खासकर राष्ट्रीय संकट और अधिनायकवादी शासन के दौर में. यह अक्सर राजनीतिक तनाव, जन आंदोलन या राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे के समय लागू किया गया. कई बार कोरियाई युद्ध के दौरान मार्शल लॉ को लागू किया गया है.
साल 1950-53 के कोरियाई युद्ध के दौरान, राष्ट्रपति सिंगमन री ने युद्ध के हालात को संभालने के लिए मार्शल लॉ लागू किया. इस दौरान सरकार ने व्यापक शक्तियां संभाल लीं, जिनमें सेंसरशिप, बिना न्यायिक प्रक्रिया के गिरफ्तारी और नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध शामिल थे.
1960 का अप्रैल क्रांति और मार्शल लॉ
साल 1960 में सिंगमन री के चुनावी धोखाधड़ी और अधिनायकवाद के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान भी मार्शल लॉ लागू किया गया. हालांकि, जनता का विरोध इतना तेज था कि री को पद छोड़ना पड़ा. इस घटना ने दिखाया कि मार्शल लॉ जहां व्यवस्था बहाल कर सकता है, वहीं यह जनता में आक्रोश भी बढ़ा सकता है.
साल 1961 में जनरल पार्क चुंग-ही ने सैन्य तख्तापलट के जरिए सत्ता संभाली और मार्शल लॉ को देशव्यापी स्तर पर लागू किया. उन्होंने इसे स्थिरता बहाल करने और भ्रष्टाचार से निपटने का जरिया बताया. उनके शासन में मार्शल लॉ का बार-बार इस्तेमाल राजनीतिक विरोध और आंदोलनों को दबाने के लिए किया गया.
साल 1980 में राष्ट्रपति पार्क चुंग-ही की हत्या के बाद जनरल चुन दू-ह्वान ने मार्शल लॉ लागू कर सत्ता पर कब्जा किया. ग्वांगजू विद्रोह के दौरान इस कदम के खिलाफ भारी विरोध हुआ. विद्रोह को कुचलने के लिए तैनात सैनिकों ने सैकड़ों नागरिकों की हत्या कर दी. यह घटना दक्षिण कोरिया के इतिहास का एक काला अध्याय है.
साल 1987 में लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों ने दक्षिण कोरिया में सैन्य शासन को चुनौती दी. इन आंदोलनों के बाद देश ने एक नई लोकतांत्रिक संविधान को अपनाया और सीधे राष्ट्रपति चुनाव शुरू हुए. हालांकि, इस दौरान सरकार ने मार्शल लॉ जैसी कठोर रणनीतियों का इस्तेमाल किया.
आधुनिक कोरिया में मार्शल लॉ
दक्षिण कोरिया के लोकतांत्रिक बनने के बाद मार्शल लॉ को केवल गंभीर राष्ट्रीय आपातकाल के लिए आरक्षित कर दिया गया. लेकिन यह अब भी एक विवादास्पद मुद्दा है, क्योंकि यह मानवाधिकारों के उल्लंघन और दमन की याद दिलाता है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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