Nation- चुनावी लड़ाई में कौन कितने ‘पानी’ में… दिल्ली-हरियाणा जल विवाद की असली कहानी- #NA

दिल्ली-हरियाणा में जल पर जंग

ऐन दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान के बीच यमुना में पानी पर सियासी पंगा शुरू हो गया है. राजधानी के चुनावी घमासान में आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच मानो पानीपत की नई लड़ाई शुरू हो गई है. पूर्व मुख्यमंत्री और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने यमुना में अमोनिया की मात्रा अचानक ज्यादा होने की बात कही, साथ ही हरियाणा सरकार पर पानी को जहरीला करने का गंभीर आरोप लगाया. केजरीवाल के इस आरोप के बाद बीजेपी का पलटवार शुरू गया है. हरियाणा के सीएम नायाब सिंह सैनी समेत अनिल विज ने दिल्ली सरकार और आम आदमी पार्टी पर जहरीले बोली बोलने का आरोप लगाया और केजरीवाल पर मानहानि का केस करने की बात कही. दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने भी पूरे मसले पर हरियाणा सरकार की आलोचना की है. उन्होंने कहा कि यमुना में पिछले दो दिन में अमोनिया की मात्रा 7 पीपीएम हो गया है. अरविंद केजरीवाल ने अपने बयान में ये भी कहा कि जहरीले पानी से दिल्ली में बड़ा नरसंहार होने से बच गया. उन्होंने इसके पीछे हरियाणा सरकार को जिम्मेदार बताया.

दिल्ली के दंगल में पानी पर ये सियासत यूं ही नहीं शुरू हुई है. राजधानी में इन दिनों चुनावी पारा सातवें आसमान पर है. आप और बीजेपी में सत्ता की होड़ मची हुई है. आप ने सरकार बचाने में पूरी ताकत लगा दी है वहीं बीजेपी ने केजरीवाल से सत्ता छीनने के लिए अपने सारे घोड़े खोल दिये हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, सांसद अनुराग ठाकुर समेत बीजेपी के स्टार प्रचारकों की लंबी सूची प्रचार अभियान में जुटी है. बीजेपी को पूरी उम्मीद है जनता डबल इंजन की सरकार के नाम पर मुहर लगाएगी जबकि आम आदमी पार्टी फ्री स्कीम्स को अपनी सत्ता का रामबाण मानती है.

दिल्ली-हरियाणा में पानी पर लड़ाई कितनी पुरानी?

जाहिर है चुनावी मौसम में राजनीतिक दल पानी रे पानी… की राजनीति खेल रहे हैं और इसी के बहाने ये भी जानने की कोशिश कर रहे हैं कि कौन कितने पानी में है. आम आदमी पार्टी और बीजेपी दोनों ही दल आरोपों और प्रत्यारोपों के जरिए एक-दूसरे की थाह का अनुमान लगाने में जुटे हैं. इस लड़ाई में कांग्रेस पार्टी भी पीछे नहीं जो कि बार-बार दिवंगत पूर्व सीएम शीला दीक्षित के शासनकाल में हुए विकास कार्यों की याद दिलाते हुए अपनी खोई जमीन हासिल करने के अभियान में जुटी है. अलबत्ता कांग्रेस की सत्ता के दौर में शीला दीक्षित और बीजेपी के शासन में मदनलाल खुराना हों या सुषमा स्वराज- इन सबके कालखंड में दिल्ली और हरियाणा के बीच पानी की लड़ाई का अपना विवादित इतिहास है. पानी की यह लड़ाई सन् 1993 से अब तक बदस्तूर जारी है.

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यमुना जल को लेकर कब-कब हुए समझौते?

यमुना के पानी का विवाद केवल दिल्ली और हरियाणा के बीच का मामला नहीं है. दिल्ली समेत छह राज्य यानी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान भी यमुना के पानी पर हक जताते हैं. जब सन् 1954 में हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच यमुना जल समझौता हुआ था तब बाकी के राज्यों ने भी जैसे ही अपना हक जताया तो विवाद बढ़ने लगा. चूंकि दिल्ली के पास जल का अपना स्रोत कम है और राजधानी होने के नाते यहां की बढ़ती आबादी और पानी की जरूरत को ध्यान में रखते हुए साल 1993 में दिल्ली और हरियाणा के बीच यमुना जल समझौता हुआ था लेकिन फिर अगले ही साल 1994 के समझौते में पांचों राज्य को शामिल कर लिया गया. इस समझौते के मुताबिक दिल्ली को जब-जब पानी की जितनी जरूरत होगी, उसे पूरा किये जाने पर मुहर लगाई गई.

मुनक नहर बनने के बाद भी विवाद जारी

दिल्ली-हरियाणा के जल समझौते के बाद ही मुनक नहर अस्तित्व में आया. सन् 1996 में दोनों राज्यों की सरकारों के बीच लिखित में समझौता हुआ. समझौते के मुताबिक इस नहर का निर्माण सन् 2003 से 2012 के बीच होना तय हुआ. इस नहर के निर्माण में 450 करोड़ से ज्यादा का खर्च हुआ. दिल्ली में दिवंगत पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार थी, और हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की. उम्मीद थी कि मुनक नहर तैयार हो जाने पर दोनों राज्यों के बीच पानी युद्ध खत्म हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका. हरियाणा में चाहे जिस दल की सरकार रही हो, उसने अपने राज्य की बढ़ती जरूरतों का हवाला देते हुए दिल्ली को निर्धारित पानी (रोजाना 120 मिलियन गैलन) देने से इनकार कर दिया जिसके बाद सियासी विवाद होने लगे. आगे चलकर साल 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट गए. तब केजरीवाल को कोर्ट से तत्काल राहत मिली थी. लेकिन इसके बावजूद पानी की समस्या का समाधान स्थाई तौर पर नहीं हो सका.

दिल्ली को कहां-कहां से मिलता है पानी?

दिल्ली को पीने के पानी की आपूर्ति के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है. हरियााणा के अलावा उत्तर प्रदेश और पंजाब से भी दिल्ली को पानी मिलता है. हरियाणा में यमुना नदी तो उत्तर प्रदेश में गंगा नदी से जबकि पंजाब में भाखरा नांगल से दिल्ली के लोगों को जरूरत भर का पानी मिलता है. एक आंकड़े के मुताबिक दिल्ली को यमुना से हर दिन 38.9 करोड़ गैलन, गंगा से 25.3 करोड़ गैलन और भाखरा नांगल से 22.1 करोड़ गैलन पानी मिलता है. दिल्ली के पास अपने जल स्रोतों से करीब 9 करोड़ गैलन पानी ही मिल पाता है. इस प्रकार दिल्ली को आज की तारीख में हर रोज करीब 96 करोड़ गैलन पानी मिल पाता है. लेकिन मौजूदा दौर में दिल्ली को 129 करोड़ गैलन पानी की जरूरत है. यानी दिल्ली में अब भी जरूरत के हिसाब से करीब 33 करोड़ गैलन पानी कम है.

अमोनिया का खतरनाक स्तर क्यों?

गौरतलब है कि पानी में अमोनिया की मात्रा 0.5 पीपीएम से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन दिल्ली जल बोर्ड ने खुद कहा है कि अक्टूबर से जनवरी के बीच सर्दियों में यमुना नदी में अमोनिया की मात्रा बढ़ जाती है. यह यदा-कदा 0.8 पीपीएम से भी अधिक हो जाता है. यह स्तर काफी खतरनाक होता है. सीएम आतिशी ने कहा कि फिलहाल यमुना में 7 पीपीएम अमोनिया का स्तर है. यह बहुत ही खतरनाक है. सीएम आतिशी ने आरोप लगाया कि हरियाणा के उद्योगों के कचरे को लापरवाही के साथ नदी में छोड़ा जा रहा है. अमोनिया का स्तर बढ़ने पर दिल्ली जल बोर्ड के पास भी इसे साफ करने का कोई ठोस प्लान या सिस्टम नहीं है.

जाहिर है इसका असर जान माल पर ही पड़ता है. जिसकी परवाह सियासी दलों को कम ही होती है. नेता भली भांति जानते हैं सीधे तौर पर इसका जिम्मेदार बढ़ता प्रदूषण और नदी के रख-रखाव में कमी है लेकिन वोट बैंक की सियासत के आगे इन जहरीली समस्याओं का स्थाई समाधान नहीं खोजा जाता है. सरकारें बदलती हैं तो उनकी प्राथमिकताएं भी बदल जाती हैं. अगर सरकारें अपने-अपने हिस्से की यमुना के उचित संरक्षण पर बिना राजनीति के ध्यान दें तो यमुना का पानी ना तो इतना जहरीला नहीं होगा और ना ही चुनावों में अन्य जरूरी मुद्दों के बदले जहरीले जल का मुद्दा सबसे ऊपर होगा.

चुनावी लड़ाई में कौन कितने ‘पानी’ में… दिल्ली-हरियाणा जल विवाद की असली कहानी


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