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Hindu in Bangladesh: बांग्लादेश में आखिर क्यों उठी इस्कॉन पर बैन की मांग…, समझें पूरा मामला
बांग्लादेश में चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी के बाद इस्कॉन को बैन करने की मांग उठी है। विवाद ने भारत-बांग्लादेश रिश्तों को प्रभावित किया। बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हमले बढ़े हैं। सवाल उठ रहा है कि क्या इस्कॉन इसके लिए जिम्मेदार है।
HighLights
- चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी से विवाद बढ़ा।
- इस्कॉन पर बांग्लादेश में बैन लगाने की मांग।
- बांग्लादेश और भारत के रिश्तों में तनाव।
डिजिटल डेस्क, इंदौर। बांग्लादेश में इस्कॉन से कभी जुड़े चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी के बाद विवाद हो गया है। यह इतना ज्यादा गहरा गया कि इससे बांग्लादेश और भारत के रिश्ते भी खराब हो रहे हैं। लोगों के मन में यह सवाल आ रहा है कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार इस्कॉन की वजह से बढ़ रहे हैं या फिर बांग्लादेश की नई सरकार हिंदुओं से ही नफरत करती है।
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बांग्लादेश में इस बीच इस्कॉन को बैन करने की मांग की जा रही है। हाईकोर्ट ने एक वकील ने यह याचिका दायर की। आखिर क्यों शेख हसीना के तख्तापलट के बाद इस्कॉन व हिंदू धर्म पर हमले तेज हो गए हैं। इसके पीछे की कहानी को समझने के लिए पढ़ें यह आर्टिकल…
बांग्लादेश में हिंदुओं की घटती जनसंख्या
आज बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या लगभग 1.35 करोड़ है। यह देश की कुल आबादी का लगभग 7.95 फीसदी है। देश में हिंदुओं की संख्या लगातार घट रही है। 1974 में हुई जनसंख्या के हिसाब से देश में हिंदुओं की आबादी 13.5 फीसदी थी। विभाजन के बाद से बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार हुए हैं, जिससे उनकी आबादी लगातार कम होती रही।
हिंदुओं की आबादी के हिसाब से बांग्लादेश भारत और नेपाल के बाद तीसरा सबसे बड़ा देश है। इस्लाम के बाद हिंदू धर्म बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। उसके बाद भी हिंदुओं को अपनी सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों के लिए जूझना पड़ रहा है।
शेख हसीना के तख्तापलट के बाद बड़ा संकट
5 अगस्त 2024 का दिन हिंदुओं के लिए बांग्लादेश का सबसे काला दिन था। उसके बाद स्थितियों देश के अंदर उनके लिए और ज्यादा बिगड़ गईं। इस दिन बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का सत्ता छोड़कर जान बचाकर देश से भागना पड़ा था।
देश में बने राजनीतिक संकट के बाद हिंदू समुदाय पर हमलों का सिलसिला तेज हो गया। इस समय तक करीब 500 से अधिक घटनाएं हुईं, जिनमें हिंदुओं के घरों और मंदिरों को निशाना बनाया गया। नई सरकार ने हिंदू समुदाय के खिलाफ हिंसा की निंदा तो की, लेकिन यह रुकी नहीं।
उसके बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के नेता मोहम्मद युनूस ने हिंदुओं की सुरक्षा के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाने का आश्वासन दिया। अब यही सरकार इस्कॉन के खिलाफ कार्रवाई कर रही है।
देश में इस्कॉन का प्रभाव
इस्कॉन (अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ) का प्रभाव बांग्लादेश में काफी बढ़ चुका है। 1966 में स्वामी श्रीलप्रभुपाद ने इस संस्था का निर्माण किया था। इस संस्था के दुनिया भर में 100 से अधिक मंदिर हैं। बांग्लादेश में भी इसके 10 से ज्यादा मंदिर हैं।
इस्कॉन की धार्मिक गतिविधियों से बांग्लादेश सरकार डरने लगी है। इसकी वजह है कि यह संस्था वैश्विक स्तर पर हिंदू धर्म का प्रचार करती है। मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में इसके प्रभाव से सरकार परेशान है।
बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के लिए बांग्लादेश सम्मिलित सनातन जागरण जोत नामक एक नई संस्था बनी है, जो हिंदुओं की बेहतर सुरक्षा की मांग कर रही है। इसके प्रमुख चिन्मय प्रभु को आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे, इसलिए उनको गिरफ्तार कर लिया है। बांग्लादेश सरकार इस गिरफ्तारी के जरिए हिंदू समुदाय की आवाज को दबाना चाहती है।
इस्कॉन पर बैन लगाने वाली याचिका खारिज
बांग्लादेश में एक वकील ने मीडिया रिपोर्ट को आधार बनाकर बुधवार को इस्कॉन पर बैन लगाने की याचिका हाई कोर्ट में लगाई। मीडिया में यह अफवाह फैलाई गई कि सुरक्षाकर्मियों व चिन्मय कृष्ण दास के समर्थकों के बीच संघर्ष हुआ था, जिसमें वकील सैफुल इस्लाम अलिफ की मौत हो गई थी।
इधर अटार्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने वकील सैफुल इस्लाम अलिफ की मौत के संबंध की रिपोर्ट हाई कोर्ट में पेश की, तो जस्टिस फराह महबूब व जस्टिस देबाशीष चौधरी की पीठ ने इस्कॉन पर बैन लगाने वाली याचिका को खारिज कर दिया।
भारत के विरोध के बाद बांग्लादेश पर पड़ा दबाव
चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी के बाद भारत सरकार ने इस मुद्दे पर कड़ा विरोध जताया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश से कहा कि वह हिंदू समुदाय के अधिकारों का सम्मान करें।
इस घटना ने बांग्लादेश और भारत के बीच संबंधों को और जटिल बना दिया है, क्योंकि बांग्लादेश में चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी और इस्कॉन पर दबाव डालने का प्रयास भारतीय समुदाय और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चिंता का कारण बना है। ढाका हाईकोर्ट ने इस्कॉन पर प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया है।
हिंदुओं के खिलाफ बढ़ते हमलों के लिए धार्मिक दृष्टिकोण जिम्मेदार
बांग्लादेश की सरकार का यह कदम राजनीतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से समझ में आता है, लेकिन यह स्पष्ट है कि बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की स्थिति कमजोर हो गई है। यह केवल इस्कॉन के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरे हिंदू समुदाय के खिलाफ उत्पीड़न के रूप में सामने आ रहा है।
बांग्लादेश की सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा कि वह धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा करती है या फिर बांग्लादेश और भारत के बीच के रिश्तों में और खटास लाती है।
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सौजन्य से jagran. com
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