दुनियां – सीरिया में समय रहते एक्शन लेने में नाकाम रहा ईरान, अब बशर अल-असद को दे रहा ज्ञान – #INA

सीरिया में असद सरकार को बचाने में नाकाम रहने के बाद अब ईरान ने सारा दोष बशर अल-असद पर मढ़ दिया है. 27 नवंबर को विद्रोही गुटों ने सीरिया के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर हमला बोला, महज़ 4 दिन में ही विद्रोहियों ने इस पर कब्जा कर लिया.
विद्रोही तेजी से आगे बढ़ रहे थे और ईरान ठोस कार्रवाई की बजाय मीटिंग पर मीटिंग करता रहा. विद्रोहियों से लड़ाई में रूस और ईरान ही सीरिया के सबसे बड़े सहयोगी रहे हैं. लिहाजा यह ईरान की जिम्मेदारी थी कि वो असद शासन की मदद करे लेकिन कई दिनों तक ईरानी राष्ट्रपति और विदेश मंत्री सैन्य मदद भेजने के लिए सिर्फ भरोसा ही देते रहे.
सीरिया में असद के साथ ईरान का पतन!
रूस ने असद सरकार की मदद के लिए विद्रोहियों के ठिकानों पर बमबारी की लेकिन वह खुद 33 महीने से यूक्रेन के खिलाफ युद्ध लड़ रहा है, ऐसे में वह फिलहाल सीरिया की बड़ी मदद करने की स्थिति में नहीं था. यही वजह है कि महज 11 दिनों में हयात तहरीर अल-शाम के नेतृत्व में विद्रोहियों ने दमिश्क पर कब्जा कर लिया. सीरिया में असद शासन के पतन के साथ ईरान का प्रभुत्व भी खत्म हो गया है. विद्रोही गुट के लीडर अबु मोहम्मद अल-जुलानी ने साफ कर दिया है कि अब सीरिया, ईरान के इशारों पर नहीं चलेगा.
ईरान का बशर अल-असद पर बड़ा आरोप
जुलानी के तेवर के बाद ईरान के सुर बदले-बदले नज़र आ रहे हैं, ईरान सरकार की प्रवक्ता फातिमा मोहजेरानी ने मंगलवार को दिए एक बयान में सीरिया में हुए तख्तापलट के लिए बशर अल-असद सरकार के रवैये को ही दोषी ठहरा दिया है. उन्होंने कहा है कि, ‘बशर अल-असद के पतन का एक विश्लेषण यह है कि वह जनता की शक्ति को समझने में विफल रहे. सेना की निष्क्रियता के साथ-साथ बातचीत में शामिल होने से इनकार करने के कारण उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा. हमारा मानना ​​है कि हमें लोगों से बात करनी चाहिए और उनके साथ मिलकर काम करना चाहिए.’
ईरान के लिए सीरिया क्यों जरूरी?
ईरान सरकार का यह बयान दिखाता है कि वह सीरिया में असद सरकार की बेदखली के बावजूद अपनी मौजूदगी बनाए रखने की कोशिश कर सकता है. ईरान के लिए सीरिया रणनीतिक तौर पर काफी अहमियत रखता है, लेबनान में हिजबुल्लाह तक हथियार पहुंचाने के लिए ईरान, इराक और सीरिया का ही इस्तेमाल करता है. अगर सीरिया में ईरान के लिए सारे दरवाजे बंद हो गए तो हिजबुल्लाह को दोबारा संगठित और मजबूत करना मुश्किल हो जाएगा.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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