दुनियां – Kabul Bomb Blast: कौन था तालिबानी मंत्री खलील रहमान हक्कानी? जो अपने ही मंत्रालय के बाहर बम धमाके में मारा गया – #INA
अफगानिस्तान एक बार फिर दहल उठा है. इस बार जो धमाका हुआ है उसमें तालिबान सरकार को निशाना बनाया गया है. काबुल में हुए इस धमाके में तालिबान सरकार में शरणार्थी मामलों और प्रवास मंत्री खलील रहमान हक्कानी की मौत हो गई. इसके अलावा उसके तीन बॉडीगार्ड समेत कुल 12 लोग मारे गए हैं.
यह हमला शरणार्थी मंत्रालय में हुआ है. हमला उस वक्त हुआ जब वह खोस्त से आए एक समूह की मेजबानी कर रहा था. अब तक हुई जांच में जो सामने आया है उसके मुताबिक इसके एक आत्मघाती हमला बताया जा रहा है. हालांकि आत्मघाती हमलावर मंत्रालय के अंदर तक कैसे पहुंचा इस बारे में अभी तक कुछ सामने नहीं आ सका है.
कौन था खलील रहमान हक्कानी
खलील रहमान हक्कानी तालिबान सरकार में शरणार्थी और प्रवास मंत्री था, जिसे अगस्त 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद कार्यवाहक तौर पर ये जिम्मेदारी सौंपी गई थी. वह तालिबान के आतंरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी के चाचा था. अफगानिस्तान के पकतिया प्रांत में जन्मे हक्काी पश्तूनों की जदरान जनजाति से ताल्लुक रखते थे. अफगान युद्ध के दौरान हक्कानी पर इंटरनेशनल फंड जुटाने की जिम्मेदारी थी. वह हक्कानी नेटवर्क का प्रमुख नेता था, हालांकि वह पिछले कई साल से तालिबान के साथ काम कर रहा था. उससे पहले हक्कानी कुछ समय तक अलकायदा से भी जुड़ा रहा. 2002 में हक्कानी को पकतिया प्रांत में अलकायदा को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई थी.
हक्कानी नेटवर्क का प्रमुख नेता, अमेरिका ने घोषित किया था आतंकी
खलील रहमान हक्काकी अफगानिस्तान में सक्रिय हक्कानी नेटवर्क का प्रमुख नेता था. हक्कानी नेटवर्क की स्थापना खलील के भाई जलालुद्दीन हक्कानी ने की थी. 1990 के दशक में ये नेटवर्क तालिबान शासन में शामिल हो गया था. संयुक्त राष्ट्र ने उस समय हक्कानी नेटवर्क को तालिबान के लिए धन जुटाने की गतिविधियों में संलिप्त माना था. वह ईरान, अरब राज्यों और दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों से तालिबान के लिए धन जुटाता था.
हक्कानी को 9 फरवरी 2011 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक वैश्विक आतंकी घोषित किया था. उस पर 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ईनाम भी था. अलकायदा के साथ संबंध और तालिबान के लगातार समर्थन की वजह से उस पर प्रतिबंध भी लगाया गया था.
क्या है हक्कानी नेटवर्क?
हक्कानी नेटवर्क का अफगानिस्तान में काफी प्रभाव है. एक दौर था जब इस गुट को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का समर्थन था. उस वक्त यह ग्रुप सोवियत संघ के खिलाफ लड़ रहा था, बाद में ये जब अमेरिका के लिए मुसीबत बना था सीआईए ने इससे पल्ला झाड़ लिया और इसे एक आतंकी गुट के तौर पर घोषित कर दिया.
हक्कानी गुट पर आरोप है कि इसमें अफगानिस्तान, भारत और कई पश्चिमी देशों में बड़़े हमलों को अंजाम दिया. खास बात ये है कि इस गुट को पाकिस्तान का भी समर्थन हासिल है. इसकी जड़ें पाकिस्तान में भी फैली हैं. इस गुट के लड़ाकों को कभी आईएसआई भी ऑपरेट करती थी. यही तय करती थी कि कहीं भी हमले के लिए हक्कानी गुट के लड़ाकों को कितने पैसे मिलेंगे.
अफगानिस्तान सरकार के गठन के वक्त बरादर से हुई थी कहासुनी
अफगानिस्तान सरकार के गठन के वक्त खलील रहमान हक्कानी की अफगानिस्तार सरकार में उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर से कहासुनी भी हुई थी. यह कहासुनी की वजह रणनीतिक तौर पर तालमेल नहीं होना बताई गई थी. बताया जा रहा है कि मुख्य विवाद ये था कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलने वाली मदद का बंटवारा कैसे हो. अमेरिका और नाटो से कैसे संबंध रखे जाएं. इसके अलावा एक वजह ये भी थी कि तालिबान स्वतंत्र तौर पर आगे बढ़ना चाहता था, जबकि हक्कानी चाहते थे कि सरकार का गठन पाकिस्तान के निर्देशन में हो.
इस्मालिक स्टेट का हाथ होने की आशंका
अफगानिस्तान के काबुल में शरणार्थी मंत्रालय में इस धमाके में इस्मालिक स्टेट का हाथ होने की संभावना जताई जा रही है. दरअसल 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी के साथ अमेरिका की सेना से तालिबान का युद्ध को समाप्त हो गया, लेकिन इस्लामिक स्टेट और खुरासान अफगानिस्तान में सक्रिय रहा जो गाहे बगाहे वहां के नागरिकों और तालिबान अधिकारियों को निशाना बनाता रहा है.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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