World News: कनाडा PM पद की रेस से बाहर अनीता आनंद, चुनाव लड़ने से भी किया इनकार – INA NEWS

अनीता आनंद को कनाडा की अगली प्रधानमंत्री बनाने का अभियान चलाने वाले उत्साही भारतीयों को उन्होंने झटका दे दिया है. उन्होंने शनिवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि न वो प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की उत्तराधिकारी बनने की सोच रही हैं न ही जल्दी चुनाव के पक्ष में हैं. यहां तक कि वो अब चुनाव लड़ेंगी भी नहीं. अनीता ने बताया कि जून 2024 में भी उन्होंने यही बात कही थी. अनीता आनंद जस्टिन ट्रूडो सरकार में परिवहन मंत्री हैं. उन्होंने साफ कहा कि वे अपनी पोजिशन से खुश हैं और ट्रूडो से उनकी कभी कोई अनबन नहीं रही.

मालूम हो कि ट्रूडो के संभावित उत्तराधिकारियों में अनीता आनंद का नाम भारत की मीडिया ने उछाला था. कनाडा की मीडिया ने कभी भी उनका नाम नहीं लिया. लेकिन भारतीय मीडिया की इस हरकत से कनाडा में उनकी स्थिति थोड़ी विवादास्पद हुई.

जस्टिन ट्रूडो की करीबी हैं अनीता

अनीता आनंद को जस्टिन ट्रूडो का करीबी समझा जाता है. वो ओंटारियो प्रांत की ऑकविले सीट से सांसद हैं. उन्होंने कहा है कि वह अपने पद से संतुष्ट हैं. दरअसल भारत की मीडिया में उन्हें प्रधानमंत्री बनाये जाने की ऐसी मुहीम चली कि सोशल मीडिया में उनके समर्थन और विरोध में केम्पेनिंग शुरू हो गई. इसलिए उन्हें अपनी सफ़ाई देनी पड़ी.

कभी-कभी तो भारतीय मीडिया का अति उत्साह देख कर कनाडा के नागरिकों को लगता है कि भारत की मीडिया उनके अंदरूनी मामलों में तो उनसे भी अधिक जानती है. प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पिछले सोमवार को अपने पद से इस्तीफ़ा देने की घोषणा कर चुके हैं. उन्होंने कहा था, नया प्रधानमंत्री चुने जाने तक वे इस पद पर बने रहेंगे. अक्टूबर 2025 में कनाडा की संसद के चुनाव होने हैं. बहुमत पाने वाली पार्टी का नेता भविष्य की सरकार का प्रधानमंत्री चुना जाएगा.

चंद्र आर्या का नाम आया सामने

कनाडा की लिबरल पार्टी के नेताओं को लगता है कि जस्टिन ट्रूडो के प्रधानमंत्री रहते पार्टी चुनाव नहीं जीत पाएगी. इसलिए उन पर पद छोड़ने का दबाव था. पार्टी में उनकी मुखर विरोधी क्रिस्टिया फ़्रीलैंड ने तो उनकी वित्तीय नीतियों के विरोध में वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था. वो जस्टिन ट्रूडो की जगह लेने को आतुर हैं. उनके अलावा बैंक ऑफ कनाडा के मुखिया मार्क कार्नी और मौजूदा वित्त मंत्री डोमिनिक लेब्लांक का नाम लिया जा रहा था.

लेब्लांक ने भी कहा है कि वो प्रधानमंत्री के पद के इच्छुक नहीं हैं. इस बीच एक नाम और चंद्र आर्या का चर्चा में आया है. चंद्र आर्या भारतीय मूल के हैं और यहां के हिंदू समुदाय के स्वयंभू नेता हैं. उन्होंने संसद में कहा था कि खालिस्तानी नेता गुरपरवंत सिंह पन्नू ने उनकी हत्या की धमकी दी है.

बजट सत्र आगे बढ़ा

इस बीच कनाडा की संसद का बजट सत्र जनवरी से खिसका कर 14 मार्च कर दिया गया है. उम्मीद है कि तब तक लिबरल पार्टी किसी अन्य सांसद को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त कर लेगी और तब यह सत्र शुरू किया जाएगा. संभवतः यह संसद का आखिरी सत्र होगा. क्योंकि फिर अक्टूबर में आम चुनाव होना है. संसद में जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी अल्पमत में है. ऊपर से कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे मार्सेल पोइलिव्रे और NDP के जगमीत सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की धमकी दी थी.

ऐसे में बजट पेश होने के पहले ही सरकार गिर जाती इसलिए सत्र को खिसका दिया गया. मगर अब नया प्रधानमंत्री खोजना मुश्किल होता जा रहा है. लिबरल पार्टी की सोच यह है कि प्रधानमंत्री किसी ऐसे नेता को चुना जाए, जिसके चेहरे के बूते अक्टूबर का चुनाव जीता जा सके.

करिश्माई नेता जैसे आए थे ट्रूडो

निश्चय ही 10 वर्ष पूर्व जस्टिन ट्रूडो ने अपने नेतृत्त्व का ही करिश्मा दिखाया था. उनकी अगुआई में लिबरल पार्टी को 2015 में पूर्ण बहुमत मिला था. एक सिनेमाई हीरो जैसे दिखने वाले जस्टिन ट्रूडो ने कनाडा के लोगों में नई उम्मीदों और गौरव का संचार किया था. वो जिन पियरे ट्रूडो के बेटे थे, उन्होंने भी कोई 16 वर्ष तक कनाडा में प्रधानमंत्री का पद संभाला था. पहले 1968 से 1979 तक तथा फिर 1980 से 1984 तक.

पियरे ट्रूडो भी कभी अमेरिका (USA) की धमकियों से नहीं डरे. तीन तरफ से कनाडा का बॉर्डर अमेरिका शेयर करता है. इसलिए भी उसकी दादागिरी कनाडा पर चलती है. लेकिन पियरे ट्रूडो ने अमेरिका को कई बार खरी-खरी सुनाई. उनके समय कनाडा की अमेरिका पर निर्भरता कम हुई. यूं भी कनाडा के लोग अमेरिका को बहुत अच्छी निगाह से नहीं देखते.

ट्रम्प की दादागिरी

मगर इस बार अमेरिकी चुनावों में जैसे ही डोनाल्ड ट्रम्प की जीत हुई तत्काल उन्होंने विवादास्पद बयान देने शुरू कर दिए. ग्रीन लैंड और मैक्सिको खाड़ी पर अमेरिका द्वारा क़ब्ज़ा करने की धमकी के साथ ही उन्होंने कनाडा को अमेरिका (USA) का 51 वां राज्य बता दिया. उन्होंने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को गवर्नर तक कह दिया. लेकिन तब जस्टिन ट्रूडो कुछ नहीं बोले. परंतु प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद वो मुखर हुए.
आठ जनवरी को उन्होंने कहा कि कनाडा एक संप्रभु देश है, वह अमेरिका के अधीन कभी नहीं था इसलिए ट्रम्प यह ख़्याल अपने मन से निकाल दें कि कनाडा अमेरिका का कोई प्रांत बनना स्वीकार कर लेगा. जानकार बताते हैं कि यह संभव नहीं क्योंकि अमेरिका में संसदीय लोकतंत्र है जबकि कनाडा में राजशाही लोकतंत्र.

किंग जॉर्ज को राजी करना होगा

कनाडा में संवैधानिक प्रमुख का दायित्व यूनाइटेड किंगडम के राजा के पास होता है. एक तरह से ग्रेट ब्रिटेन के राजा किंग जॉर्ज कनाडा के भी राष्ट्र प्रमुख हैं. इसलिए डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा कनाडा को अमेरिका का 51 वां राज्य बनाने की धमकी एक तरह से गीदड़-भभकी ही है. कनाडा नाटो (NATO) का शुरुआती सदस्य है. नाटो देश एक संधि में बांधे हुए हैं. इस संधि के अनुसार यदि कोई देश नाटो के सदस्य देश पर हमला करता है तो बाकी देश हमलावर देश के विरुद्ध एकजुट हो जाएंगे.

इसी संधि के चलते कनाडा ने रूस-यूक्रेन युद्ध में अपने सैनिक, रक्षा उपकरण यूक्रेन के पास भेजे. कनाडा आज जिस आर्थिक तंगी को झेल रहा है उसका मूल कारण यूक्रेन की मदद में बहाया गया अथाह पैसा है. इसलिए ट्रम्प की धमकी के विरोध में कनाडा के नागरिक एकजुट हो गए हैं.

कनाडा के लोग बहुत चिंतित

कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पियरे मार्सेल पोइलिव्रे और NDP नेता जगमीत सिंह भी डोनाल्ड ट्रम्प के ख़िलाफ़ खड़े हो गए हैं. कनाडा के नागरिक कहते हैं कि अमेरिका की तुलना में कनाडा अधिक लोक कल्याणकारी देश है. एक तो कनाडा में स्वास्थ्य सेवाएं मुफ़्त हैं और शिक्षा का स्तर बेहतर है. कनाडा में गन कल्चर नहीं है. यहां पर किसी को भी गन का लाइसेंस पाना आसान नहीं है.

इसके विपरीत USA में बंदूक़ का लाइसेंस कोई भी हासिल कर लेता है. इसके अलावा USA में क्राइम रेट बहुत अधिक है. वहां श्वेत और अश्वेत समुदाय के बीच तनातनी भी काफी है, नस्ल-भेद भी है. कनाडा इन सबसे मुक्त है. सबसे बड़ी बात कि कनाडा का क्षेत्रफल USA की तुलना में 1.51 लाख किमी ज़्यादा है.

नए PM के समक्ष चुनौतियों का पहाड़

अब कनाडा के नए प्रधानमंत्री के समक्ष कई तरह की चुनौतियां होंगी. पहली तो यह है कि मार्च के बजट सत्र को संभालना. इसके बाद अक्टूबर के चुनाव और डोनाल्ड ट्रम्प को मुंहतोड़ जवाब देना. इसलिए जस्टिन ट्रूडो की जगह लेने को आतुर कई नेता चुप साध गए हैं. मगर भारतीय मीडिया जिस तरह अनीता आनंद का नाम उछाल रही थी वह बात तो सिरे ही नहीं चढ़ी. अनीता तो खुद जस्टिन ट्रूडो की करीबी हैं. इसीलिए उन्होंने घोषणा कर दी है कि ऑकविले की जनता को धन्यवाद! अब मैं चुनाव नहीं लड़ूंगी और शेष जीवन टीचिंग कर व्यतीत करूंगी. राजनीति में आने के पहले वो यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में प्रोफ़ेसर थीं. उन्होंने ट्रूडो की राह पकड़ी है. वे भी चुनाव लड़ने से मना कर चुके हैं. हालांकि अक्सर मंचों पर वे गायत्री मंत्र का पाठ कर हिंदू समुदाय को लुभाती थीं.

सनातनी हिंदू छवि वाले चंद्र आर्या

हिंदू समुदाय को लुभाने में उस्ताद चंद्र आर्या हैं. वो हर होली, दीवाली, रक्षा बंधन और करवा चौथ पर शुभकामनाएं देते हैं. यही नहीं वे ख़ालिस्तान के विरोध में भी काफ़ी मुखर हैं. जब-जब किसी मंदिर में अभद्रता की गई वो सामने आए. चंद्र आर्या ने अपनी इच्छा भी जाहिर की है और X प्लेटफ़ॉर्म पर प्रधानमंत्री की रेस में आने की बात भी लिखी है. चंद्र आर्या नेपियन से सांसद हैं और भारत के कर्नाटक प्रांत के मूल निवासी हैं. वो इंजीनियर हैं तथा कनाडा में खालिस्तानी आतंकियों के मुखर विरोधी हैं. उन्हें कई बार धमकियां भी मिली हैं. लेकिन चंद्र आर्या को लोग गंभीर उम्मीदवार नहीं मानते. दरअसल ट्रूडो की नीतियों की विरोधी क्रिस्टिया फ़्रीलैंड ही इस दौड़ में फिलहाल आगे हैं. सवाल यह है कि कनाडा के सामने खड़ी चुनौतियों को कौन झेल सकेगा.

कनाडा PM पद की रेस से बाहर अनीता आनंद, चुनाव लड़ने से भी किया इनकार


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