World News: नेपाल में सियासी संकट के पीछे चीन? जहां घुसा वहां कर दिया चौपट – INA NEWS

जिस चीन को दुनिया भर में साजिशों का जाल बुनने वाला और फरेब का सुल्तान समझा जाता है, उस चीन के बारे में एक और बात भी बहुत मशहूर है. माना जाता है कि जहां-जहां भी चीन गया, वहां बड़ा संकट शुरू हो गया. जिन देशों में भी चीन ने कंट्रोल करने की कोशिश की, उन देशों में आफत-काल शुरू हो गया. नेपाल को ही ले लीजिए, नेपाल में हुए विरोध प्रदर्शन में भी अप्रत्यक्ष रूप से चीन की भूमिका मानी जा रही है. नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग को लेकर पूर्व राजा के समर्थकों ने सड़कों पर प्रोटेस्ट किया. इस दौरान हिंसा भी हुई, जिसके बाद नेपाल की सरकार की टेंशन बढ़ गई है. चाहे वो नेपाल हो, बांग्लादेश हो या पाकिस्तान और श्रीलंका, चीन जहां भी गया वहां आखिरकार बड़ा संकट पैदा हो गया.
पड़ोसी देश नेपाल में राजनीतिक भूचाल आ गया है और बहुत बड़े सियासी संकट में घिर गया है. ये सच है कि हिंसा की ये घटनाएं नेपाल में हो रही हैं, लेकिन इनसे जुड़े सवालों का सिरा बीजिंग तक जाता है. सवाल चीन पर उठ रहे हैं क्योंकि अब तक जिन देशों में उसकी दखल बढ़ी है या जहां भी उसने अपने पांव फैलाए हैं, वहां के राजनीतिक हालात स्थिर नहीं रहे हैं. मौजूदा प्रमाण है पड़ोसी देश नेपाल, जो एक बार फिर सियासी संकट से जूझ रहा है.
नेपाल में हालात अभी स्थिर नहीं हुए
नेपाल की सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन के बीच वहां अब तक सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. राजशाही समर्थक नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग को लेकर वहां की सड़कों पर प्रोटेस्ट कर रहे हैं. नारे लगा रहे हैं और अपने आंदोलन को तब तक जारी रखना चाहते हैं, जब तक उनकी मांगों को सरकार पूरा नहीं कर लेती.
नेपाल में राजशाही की मांग को लेकर नेपाल की सरकार और राजशाही समर्थकों के बीच अब आमने-सामने की लड़ाई है. एक तरफ नेपाल सरकार प्रदर्शनकारियों से शांति बनाए रखने की अपील कर रही है, तो दूसरी ओर नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह के समर्थक राजशाही बहाल करने की जिद पर अड़े हुए हैं. नेपाल की सरकार मौजूदा हालात को देखकर इसलिए भी चिंतित है क्योंकि राजशाही समर्थकों के प्रदर्शन के दौरान शुक्रवार को नेपाल की सड़कों पर जबरदस्त हिंसा हुई थी.
शुक्रवार की घटना के बाद नेपाल में हालात अभी स्थिर नहीं हुए हैं. हालांकि नेपाल सरकार ये दावा कर रही है कि सबकुछ काबू में है. नेपाल में बदले हुए घटनाक्रमों को देखकर ये सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल क्यों बन गया है? नेपाल में सियासी संकट क्यों शुरू हो गया है? क्या नेपाल के मौजूदा राजनीतिक संकट के पीछे भी असली वजह चीन है? आखिर नेपाल में सियासी संकट के लिए चीन को क्यों जिम्मेदार माना जा रहा है? ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि चीन को दुनिया में संकट पैदा करने वाले देश के रूप में जाना जाता है.
जो भी देश चीन की शरण में गया उसकी परेशानी शुरू
दुनिया के जियो-पॉलिटिक्स का इतिहास गवाह है जिसने भी चीन से दोस्ती की, या जो भी देश चीन की शरण में गया उसकी परेशानी का काउंटडाउन उसी समय शुरू हो गया. बेशक, उसका असर देर-सबेर दिखा. कूटनीति के जानकारों का मानना है कि चीन का एक ही मकसद है, और वो है विस्तारवाद. अपने इस नापाक मकसद को पूरा करने के लिए चीन हड़प-नीति का सहारा लेता है. अपने करीब आने वाले देशों में हर तरह से दखल देता है और वहां के राजनीतिक हालात को अस्थिर करने में जुटा रहता है. .
नए परिदृश्य में नेपाल को ही ले लीजिए, नेपाल में पिछले 17 सालों से लोकतंत्र है, जिसे चीन अपने राजनीतिक सिद्धांतों की खुराक देता रहता है. चीन नेपाल को हर तरह से अपना शरणागत बनाए रखना चाहता है. चीन के राजनीतिक सिद्धांतों में आस्था रखने का ही परिणाम है कि नेपाल में लोकतंत्र के स्तंभ हिल रहे हैं. चीन की घुट्टी पिछले दशकों में नेपाल के लिए बहुत ही कड़वी साबित हुई है. नेपाल में हालात ऐसे बन गए हैं कि राजशाही और लोकतंत्र के समर्थक अब एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हो गए हैं.
राजशाही के खिलाफ लोकतंत्र के पक्ष में CPN-UML के हजोरों कार्यकर्ताओं ने प्रोटेस्ट किया. CPN-UML के समर्थक प्रदर्शनकारियों ने ओली सरकार के समर्थन में मोटरसाइकिल रैली निकाली. लोकतंत्र समथर्कों का ये विरोध प्रदर्शन भी उसी जगह किया गया जहां पहले राजशाही समर्थकों ने प्रोटेस्ट किया था. नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भी CPN-UML यानी नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी के ही नेता हैं और इस पार्टी के चेयरमैन भी. नेपाल के मौजूदा हालात ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की परेशानियां बढ़ा दी हैं.
नेपाल में ये संकट आखिर क्यों पैदा हुआ?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, माना जा रहा है कि नेपाल की दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों पर वहां की जनता का भरोसा टूट चुका है. इसका फायदा नेपाली कांग्रेस और राजशाही का समर्थन करने वाली पार्टी को मिला है, जो नेपाल में संवैधानिक राजशाही और हिंदू राष्ट्र की वापसी चाहती हैं. यही बात चीन को चुभ रही है क्योंकि चीन कभी भी ये नहीं चाहेगा कि नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टियां कमजोर हों और उनके हाथ से सत्ता चली जाए.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन ने पिछले कुछ सालों में लगातार नेपाल की दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों को एक करने की कोशिश की है. चीन ने नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी यानी CPN-UML और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी केंद्र, यानी CPN-MC को फिर से एक साथ लाने के लिए हर कोशिश की है, लेकिन दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों के प्रमुख केपी शर्मा ओली और पुष्प कमलदहल प्रचंड के बीच समझौता नहीं हो पाया.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन अब इस बात को जान चुका है कि जब तक पुष्प कमलदहल प्रचंड और केपी ओली के हाथों में कम्युनिस्ट पार्टियों की कमान है, दोनों दल एक नहीं हो सकते हैं इसीलिए बीजिंग को लगता है कि मानना है कि जब तक दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां एक नहीं होतीं, तब तक उसे नेपाल में अपनी मनमर्जी चलाने में कामयाबी नहीं मिल सकती है. ऐसे में अब चीन नेपाल की दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों की कमान ऐसे लोगों को देना चाहता है, जो चीन के समर्थक हों.
चीन अपने विस्तारवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा छोटे देशों को अपनी छलिया नीतियों और परियोजनाओं के जाल में फंसाता है. दिसंबर 2024 की शुरुआत में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने चीन का आधिकारिक दौरा किया था. चौथी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद ये उनकी पहली विदेश यात्रा थी. ओली की यात्रा के दौरान दोनों देशों ने बीआरआई यानी, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर एक समझौता भी किया था. उस समझौते को चीन मील के पत्थर के रूप में देखता है क्योंकि बीआरआई प्रोजेक्ट की आड़ में चीन ने कई देशों को पंगु बना दिया है.
ब्यूरो रिपोर्ट, TV9 भारतवर्ष
नेपाल में सियासी संकट के पीछे चीन? जहां घुसा वहां कर दिया चौपट
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