World News: सोरेस को सम्मान…चुनाव हारने के बाद भी बाइडेन ने ट्रंप की राह में बिछाए कांटे – INA NEWS
अमेरिका में जो बाइडेन प्रशासन मोदी सरकार को काफी झटके दे चुका है. वहीं जाते-जाते भी अमेरिका (USA) के निवर्तमान राष्ट्रपति बाइडेन ने जॉर्ज सोरेस को प्रेसीडेंशियल अवार्ड दे कर भारत की नरेंद्र मोदी सरकार को एक और झटका दे दिया. 20 जनवरी को नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शपथ लेंगे. उसके तीन हफ़्ते पहले ही बाइडेन खेल कर गये. अरबपति जॉर्ज सोरेस को सम्मानित कर उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को घेरने का एक मुद्दा तो राहुल गांधी को पकड़ा ही दिया है.
अब संसद का अगला सत्र शुरू होते ही विपक्ष फिर से हिंडनबर्ग रिपोर्ट के हवाले से गौतम अडानी को लेकर आक्रामक होगा. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे सेबी प्रमुख ने उद्योगपति गौतम अडानी को लाभ कमाने का अवसर सुलभ कराया. इसको लेकर संसद में विपक्ष ने खूब हंगामा किया.
जॉर्ज सोरोस को नव जीवन
उधर मोदी सरकार का आरोप है कि देश विरोधी शक्तियां जॉर्ज सोरेस के इशारे पर इस तरह के हमले करती रहती हैं. भाजपा के नेता सीधे-सीधे राहुल गांधी को जॉर्ज सोरोस का एजेंट साबित करने की कोशिश करते रहते हैं. किंतु अब जब घोर मोदी विरोधी जॉर्ज सोरेस को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने प्रेसिडेंशियल अवार्ड से सम्मानित कर दिया है तो यह आरोप और पुख़्ता हो गया. जो बाइडेन भी मोदी को नापसंद करते हैं और उतना ही अधिक ट्रंप नरेंद्र मोदी को पसंद करते हैं.
अमेरिका का प्रेसीडेंशियल अवार्ड अपने यहां के भारत रत्न जैसा है. इस पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद जॉर्ज सोरोस को एक नयी प्रतिष्ठा मिल गई. भविष्य में उन्हें लोकतंत्रवादी और मानवाधिकार के लिए लड़ने वाले योद्धा के रूप में याद किया जाएगा.
पैसे लगाना और पैसे बनाना
जॉर्ज सोरोस को आज की तारीख़ में दुनिया का सबसे बड़ा दान-वीर समझा जाता है. उन्होंने अपनी नेट वर्थ से कहीं अधिक पैसा तमाम एनजीओज को फंड कर रखा है. यह अलग बात है कि उनके आय के स्रोत क्या रहे, यह रहस्य के आवरण में है. 1930 में हंगरी में बुडापेस्ट में एक यहूदी परिवार में उनका जन्म हुआ था और हिटलर द्वारा यहूदियों के नर संहार से बच कर वे किसी तरह 1947 में इंग्लैंड पहुंच गए. वहां लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स से उन्होंने पढ़ाई की और बाद में बैंकिंग के क्षेत्र में अपना कैरियर बनाया. हज फंड के जरिये वे शेयर बाज़ार के बादशाह बन गए. अमेरिका आने के पहले से ही उन्होंने वहां अमेरिकी बैंकों में निवेश करना शुरू किया और समझा कि पैसे से पैसा कैसे कमाया जाए. शेयर बाजार में पैसे को निरंतर चलायमान रखने का कौशल उन्होंने सीखा. 1956 में वे अमेरिका आ कर बस गए. आज उनकी गिनती न्यूयार्क के कुछ बड़े अरबपतियों में होती है.
बैंक ऑफ इंग्लैंड को चूना लगाया
उन्हें ख्याति मिली जब उन्होंने बैंक ऑफ इंग्लैंड को कड़का कर दिया. 1992 में उन्होंने यूनाइटेड किंगडम के ब्लैक वेंज़्डे के दौरान एक करोड़ अमेरिकी डॉलर की कमाई कर ली. इसके बाद वे वहां से अमेरिका चले आए. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पूर्वी योरोप के अधिकांश देश कम्युनिस्ट हो गए थे. इनमें हंगरी भी था. हंगरी को पुनः पूंजीवादी देश बनाने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही. अपने ध्येय में कामयाब रहने के बाद उन्होंने बुडापेस्ट में सेंट्रल योरोपियन यूनिवर्सिटी अपने पैसों से बनवाई.
पूर्वी योरोप के अन्य कम्युनिस्ट देशों में भी उनकी दखल रही. जार्जिया के रोज रिवोल्यूशन को उन्होंने ही सफल बनाया. कहा जा सकता है कि जॉर्ज सोरोस का ज़्यादातर योगदान योरोपीय देशों को सोवियत चंगुल से मुक्त कराना रहा है.
तानाशाही से लड़ने वाले हर सेनानी की मदद
जॉर्ज सोरोस अपनी इस मुहीम को लोकतंत्र की बहाली मानते हैं. उनका दावा है कि कम्युनिस्ट शासन में कोई भी मुल्क लोकतांत्रिक नहीं रह सकता इसलिए वे हर उस आंदोलन को मदद पहुंचते हैं जो तानाशाही से लड़ रहा है. अपने इस मकसद की कामयाबी में वे नैतिक या अनैतिक कदम उठाने से तनिक भी नहीं हिचकते. यूं भी शेयर बाज़ार में सटोरिए किसी नैतिक अथवा अनैतिक सीमाओं को नहीं मानते. इसलिए जॉर्ज सोरोस ने शेयर बाज़ार में अधिक से अधिक धन जुटाया भले इसके लिए कोई छोटा देश तबाह हो गया हो.
इसके बाद किसी भी देश में तानाशाही ताकतों को परास्त करने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं. वे शेयर बाजार में हर तरह का हड़कंप मचवा सकते हैं. इसके लिए वे हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का सहारा भी लेते हैं. हिंडनबर्ग के मालिक ने स्वेच्छा से कई देशों के शेयर बाज़ार में घपलों को उजागर किया है.
हिंडनबर्ग रिपोर्ट्स और सोरोस
आर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट्स (OCCRP) दुनिया भर में पत्रकारों का एक वैश्विक नेटवर्क है, जो अलग-अलग देशों में आपराधिक षड्यंत्रों का खुलासा करता है. इसने पिछले वर्ष आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट को ही सच बताते हुए आरोप लगाया है कि सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच की सहायता से अडानी समूह ने अनाप-शनाप धन कमाया है. इस रिपोर्ट ने दावा किया है कि अडानी के शेयर में माधबी पुरी के पति की हिस्सेदारी है. गौतम अडानी चूंकि प्रधानमंत्री मोदी के करीबी बताए जाते हैं इसलिए अंगुली सरकार पर भी उठी. संसद के पिछले सत्र में विपक्ष के नेता में इसे ले कर इतना हंगामा किया कि लगभग हर दूसरे-तीसरे दिन संसद एडजर्न करना पड़ा. पूरा विपक्ष इस रिपोर्ट के हवाले से सरकार को घेरता रहा है.
निशाने पर चुनिंदा लोग
हिंडनबर्ग के मालिक एंडरसन वित्तीय अनियमितताओं का खुलासा करते रहे हैं. वो एक अमेरिकी नागरिक हैं और दुनिया भर में ऐसे खुलासे करते रहे हैं. उनके खुलासों को OCCRP के ज़रिये और हंगामा करवाया जाता है. OCCRP को सोरोस का ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन (OSF) फंड प्रदान करता है. इसलिए भाजपा के प्रवक्ता सीधे-सीधे जॉर्ज सोरोस को निशाने पर लेते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि हिंडनबर्ग और OCCRP के खुलासे एकदम गलत नहीं होते पर इनका निशाना वही होते हैं, जहां की सरकारों को जॉर्ज सोरोस और एंडरसन कमजोर करवाना चाहते हैं. एक तरह से यह दो व्यावसायियों की प्रतिद्वंदिता जैसा है. इसलिए भाजपा हिंडनबर्ग रिपोर्ट्स को सोरोस रिपोर्ट्स बता रही है. जॉर्ज सोरोस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कटु आलोचक हैं.
एलन मस्क से सोरोस की होड़
एलन मस्क और सोरोस में तीन और छह के रिश्ते हैं. एलन मस्क भी अमेरिकी करोड़पति हैं और मूल रूप से वे दक्षिण अफ़्रीका के श्वेत समुदाय से हैं. एलन मस्क ने भी शेयर बाज़ार से खूब कमाया है और अब वे मैन्युफैक्चरिंग में भी हैं. दुनिया की सबसे महंगी कार टेस्ला के निर्माता वही हैं. वो जिस भी धंधे में घुसते हैं, वहां प्रतिद्वंदी कंपनियों का सफ़ाया कर देते हैं. उनकी भी सामाजिक कार्यों में रुचि है. सरकारों को बनाने-बिगाड़ने में भले वो माहिर न हों लेकिन अमेरिका की राजनीति में उनकी दख़लंदाज़ी रहती ही है.
ख़ासकर डोनाल्ड ट्रंप के वे बहुत करीबी हैं और उतने ही जो बाइडेन से उनके रिश्ते कटु थे. लेकिन अन्य देशों की राजनीति में वे नहीं कूदे. इसके विपरीत जॉर्ज सोरोस ने थाईलैंड, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और मलयेशिया को काफी गंभीर आर्थिक संकट की तरफ धकेला.
बाइडेन का खेल
इसलिए जो बाइडेन को जाते-जाते इस तरह के प्रेसीडेंशियल अवार्ड से किसी विवादास्पद व्यक्ति को नहीं सम्मानित करना था. एक तो अमेरिका का यह नियम भी बड़ा अजीब है कि जीत के बाद किसी राष्ट्रपति को शपथ ग्रहण के लिए 75 दिनों का इंतजार कराया जाता है. और अगर निर्वाचित राष्ट्रपति को इंतजार करवाना ही है तो हार चुके राष्ट्रपति को सिर्फ अंतरिम सरकार प्रमुख के तौर पर रखा जाए. उसे कोई नीतिगत फ़ैसले न करने दिए जाएं. मगर जो बाइडेन ने अपने पसंदीदा लोगों को प्रेसीडेंशियल अवार्ड देकर डोनाल्ड ट्रम्प के लिए परेशनियां तो खड़ी ही कर दी हैं. जबकि उन्हें अच्छी तरह पता है कि 20 जनवरी को शपथ लेने वाले राष्ट्रपति ट्रम्प एलन मस्क को पसंद करते हैं.
सोरेस को सम्मान…चुनाव हारने के बाद भी बाइडेन ने ट्रंप की राह में बिछाए कांटे
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