World News: जिस इस्लामिक मुल्क जा रहे पीएम मोदी, उसपर कब्जा करना सद्दाम हुसैन को पड़ा था भारी – #INA

जिस इस्लामिक मुल्क जा रहे पीएम मोदी, उसपर कब्जा करना सद्दाम हुसैन को पड़ा था भारी

महज़ 44 लाख आबादी वाला एक ऐसा खाड़ी देश जो क्षेत्रफल के लिहाज़ से तो छोटा है लेकिन अपने तेल भंडारों के कारण दुनिया की तमाम ताकतों के लिए काफी अहमियत रखता है. गल्फ देशों के हॉलीवुड कहे जाने वाले कुवैत के साथ भारत के भी ऐतिहासिक और मैत्रीपूर्ण संबंध रहे हैं.

सऊदी अरब, इराक और ईरान जैसे ताकतवर पड़ोसियों से घिरे कुवैत में करीब 10 लाख भारतीय रहते हैं. प्रधानमंत्री मोदी 21 और 22 दिसंबर को कुवैत दौरे पर रहेंगे. 43 सालों में यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला कुवैत दौरा है.

लेकिन क्या आपको पता है कि कुवैत वही इस्लामिक मुल्क है, जिस पर हमला करना इराक के सैन्य शासक सद्दाम हुसैन को भारी पड़ा और इराक के बुरे दिनों की शुरुआत हुई? कुवैत पर इराक के कब्जे और फिर इराक पर अमेरिकी हमले से जुड़ा पूरा किस्सा जानिए.

सद्दाम हुसैन को कुवैत पर कब्जा करना पड़ा भारी

इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने बाथ क्रांति की 22वीं वर्षगांठ के मौके पर कुवैत के सामने अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों को स्थिर करने समेत कई मांगे रखीं थी. इस दौरान उन्होंने टेलीविजन स्पीच के जरिए कुवैत को धमकी दी कि अगर कुवैक उनकी मांगों को मानने से इनकार करता है तो वह अपने अधिकारों को हासिल करने लिए जरूरी कदम उठाएंगे.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सद्दाम हुसैन ने कुवैत के सामने अपनी मांगे रखने से पहले ही उस पर हमला करने का मन बना लिया था. 21 जुलाई 1990 को इराकी सेना के हजारों सैनिकों ने कुवैत की ओर कूच करना शुरू कर दिया लेकिन बगदाद में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत एप्रिल गिलेस्पी ने सद्दाम हुसैन की मंशा समझने में भूल कर दी.

दरअसल 25 जुलाई को सद्दाम ने अमेरिकी राजदूत को तलब किया और कुवैत में संभावित इराकी कार्रवाई को लेकर चर्चा की. इस बैठक में सद्दाम हुसैन ने साफ कर दिया था कि अगर कुवैत समझौता नहीं करता है तो इराक जरूरी कार्रवाई करेगा.

2 अगस्त 1990 को इराक ने कुवैत पर किया हमला

इस बैठक के करीब एक हफ्ते बाद इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया. 2 अगस्त 1990 को रात दो बजे करीब एक लाख इराकी सैनिक टैंकों और हेलीकॉप्टर्स के साथ कुवैत में घुस गए. कुवैत के महज 16 हजार सैनिक, उस वक्त दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना के सामने टिक नहीं सकी. कुछ ही घंटों में इराकी सेना ने राजमहल दसमान पैलेस को घेर लिया, लेकिन कुवैत के अमीर और उनका सारा मंत्रिमंडल तब तक पड़ोसी मुल्क सऊदी में शरण लेने के लिए पहुंच चुका था.

शाही परिवार के एकलौते सदस्य और कुवैत के अमीर के सौतेले भाई शेख फहद ने महल में ही रुकने का फैसला किया. वह कुछ कुवैती सैनिकों के साथ राजमहल की छत पर एक पिस्टल लिए खड़े थे. इराकी सेना ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया.

कुछ ही घंटों में कुवैत पर इराक का कब्जा हो चुका था, इस दौरान ब्रिटिश एयरवेज का एक विमान ईंधन के लिए कुवैत की सरजमीं पर उतरा. सद्दाम हुसैन ने इस विमान पर कब्जा करने का आदेश दे दिया. विमान में सवार यात्रियों और क्रू को बगदाद ले जाया गया, आरोप हैं कि सद्दाम हुसैन इन लोगों का इस्तेमाल मानव कवच के तौर पर करना चाहते थे.

सऊदी ने इराक के खिलाफ अमेरिका से मांगी मदद

कुवैत पर इराक के हमले के कुछ घंटे बाद ही अमेरिका ने इराक पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. अमेरिकी बैंकों में जमा इराक की संपत्ति को जब्त कर लिया गया. इस बीच सऊदी अरब के बॉर्डर पर इराकी सैनिकों की तैनाती के चलते सऊदी ने अमेरिका से सैन्य सहायता मांगी. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने हजारों अमेरिकी सैनिकों को सऊदी भेजने का आदेश दे दिया. महज़ 6 महीने के अंदर ही करीब 60 हजार अमेरिकी सैनिकों को एयरलिफ्ट कर सऊदी पहुंचा दिया गया.

एक ओर सद्दाम हुसैन किसी भी हाल में झुकने को तैयार नहीं थे, तो वहीं दूसरी ओर उन्हें इस बाद अंदेशा भी नहीं था कि अमेरिका से जंग हुई तो अंजाम क्या होगा? उन्हें लगा कि ईरान इस जंग में नहीं कूदेगा और अमेरिका ज्यादा लंबे समय तक संघर्ष में टिक नहीं पाएगा.

6 सप्ताह की जंग, अमेरिका के सामने इराक ने मानी हार

लेकिन 16 जनवरी 1991 को जब राष्ट्रपति बुश ने इराक पर हवाई हमले के आदेश दिए तो महज़ एक महीने में ही सद्दाम हुसैन की सारी कैलकुलेशन गलत साबित हो गई. 4 हफ्तों में ही अमेरिकी हवाई हमलों से इराक के न्यूक्लियर रिसर्च प्लांट्स को नेस्तनाबूद कर दिया गया. देश के रणनीतिक और आर्थिक महत्व के ठिकानों जैसे- सड़कें, बिजलीघर, पुल और तेल भंडार को तबाह कर दिया गया.

6 हफ्ते की जंग के बाद ही इराकी सेना ने हार मान ली. 18 फरवरी को रूस दौरे पर मॉस्को पहुंचे इराकी विदेश मंत्री ने बिना शर्त कुवैत से इराक के हटने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.

बुश ने चेतावनी दी थी कि 24 फरवरी तक इराकी सेना कुवैत से कब्जा छोड़ दे, आखिरकार सद्दान हुसैन को अपने सैनिकों को पीछे हटने का आदेश देना पड़ा. 26 फरवरी को कुवैत में एक भी इराकी सैनिक नहीं बचा था. इस दौरान करीब 58 हजार इराकी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया था और हजारों सैनिक मारे गए. इस जंग ने इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को बड़ा धक्का पहुंचाया, यही नहीं दुनिया के तमाम देशों के बीच उनकी विश्वसनीयता में भी गिरावट दर्ज की गई.

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