World News: कभी विवादों में तो कभी ताकत पर उठे सवाल, जानें ट्रंप क्यों चाहते हैं UN पर ताला – INA NEWS

यूएन एक बार फिर चर्चा में हैं. किसी देश का युद्ध रुकवाने के लिए नहीं, क्योंकि ये काम तो यूएन लगभग भूल ही चुका है. दरअसल संयुक्त राष्ट्र पर गंभीर आरोप लगे हैं, हाल ही में एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि 2024 में UN शांति अभियानों और कई राजनीतिक मिशनों में 100 से अधिक यौन शोषण और अनैतिक आचरण के मामले सामने आए हैं.
यह कोई पहली बार नहीं, बल्कि तीसरी बार है जब पिछले 10 सालों में ऐसे आरोपों की संख्या 100 के पार पहुंची है. खुद संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इन मामलों की पुष्टि की है. इससे पहले भी कई बार अफ्रीकी देशों में UN शांति सैनिकों पर बलात्कार और अन्य अनैतिक गतिविधियों के आरोप लग चुके हैं.
यूएन की भूमिका पर सवाल
UN को दुनिया की सबसे ताकतवर संस्था माना जाता है, लेकिन हाल के सालों में इसकी भूमिका और क्षमता पर कई सवाल उठे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार इस वैश्विक संगठन पर कटाक्ष कर चुके हैं और इसे बंद करने तक की मांग उठा चुके हैं.
हाल ही में तो इन्होंने इसकी फंडिंग रोकने का भी ऐलान कर दिया. ऐसे में यूएन के कई विवादों और इसक प्रभाव को जानने की कोशिश करेंगे. साथ ही ये भी समझेंगे कि आखिर यूएन इतना कमजोर क्यों है, जिसको ट्रंप भी कई बार बंद करने की बात कर देते हैं.
युद्ध रोकने में फिसड्डी
रूस-यूक्रेन युद्ध को लगभग 3 साल का वक्त हो चुका है. इस दौरान संयुक्त राष्ट्र ने कई बार युद्ध रोकने की अपील की, प्रतिबंध लगाए और राजनयिक प्रयास किए, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ. यह पहली बार नहीं है जब UN की ताकत पर सवाल उठे हैं.
इससे पहले भी इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष और सोमालिया में गृहयुद्ध के दौरान यह संस्था शांति स्थापित करने में असफल रही थी. ऐसे में ट्रंप समेत कई अमेरिकी नेताओं का मानना है कि UN को अरबों डॉलर की फंडिंग देना व्यर्थ है, क्योंकि यह अपने मूल उद्देश्य को पूरा करने में नाकाम रहा है.
फंडिंग में आगे काम में पीछे
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका UN की फाइनेंशियल रीढ़ है. अमेरिका इस संस्था के कुल बजट का 22% जबकि शांति अभियानों का 25% खर्च उठाता है. चीन इस सूची में दूसरे स्थान पर है, जो नियमित बजट का 12% और शांति अभियानों का 16% खर्च वहन करता है.
हालांकि, अमेरिकी सरकार को हमेशा यह शिकायत रही है कि UN में उसका दबदबा उतना नहीं है जितना उसकी आर्थिक मदद के आधार पर होना चाहिए. ट्रंप का मानना है कि अमेरिका इस संस्था पर जरूरत से ज्यादा पैसा खर्च कर रहा है, लेकिन इसके बदले में उसे वैश्विक नीतियों पर कोई ठोस नियंत्रण नहीं मिलता.
यूएन की कमजोर होती ताकत
संयुक्त राष्ट्र के सबसे प्रभावशाली अंग सुरक्षा परिषद (Security Council) की भूमिका भी पिछले कुछ सालो में कमजोर होती दिखी है. इसके 15 सदस्यों में से पांच स्थायी सदस्य (अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस) वीटो पावर रखते हैं, जिसके कारण यह संस्था अक्सर बड़ी शक्तियों के हितों के हिसाब से काम करती है.
उदाहरण के लिए, चीन के सहयोग के चलते उत्तर कोरिया लगातार परमाणु परीक्षण कर रहा है, जबकि अमेरिका और रूस अपने-अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं. इससे स्पष्ट होता है कि सुरक्षा परिषद निष्पक्षता से फैसले लेने की स्थिति में नहीं है.
क्या UN पर ताला लगाना चाहिए?
डोनाल्ड ट्रंप और उनके समर्थकों का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र अब अपने मूल उद्देश्यों को पूरा करने में नाकाम हो चुका है और इसे बंद कर देना चाहिए. हालांकि, कई विशेषज्ञों का तर्क है कि भले ही UN कमजोर हुआ है, लेकिन इसकी गैर-मौजूदगी में दुनिया और भी ज्यादा अस्थिर हो सकती है.
यह संस्था मानवीय सहायता, स्वास्थ्य, शिक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. ऐसे में इसे पूरी तरह बंद करना सही समाधान नहीं हो सकता, बल्कि इसे अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने की जरूरत है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप जैसे नेताओं की आलोचना के बीच UN किस तरह अपनी साख को बनाए रखता है.
कभी विवादों में तो कभी ताकत पर उठे सवाल, जानें ट्रंप क्यों चाहते हैं UN पर ताला
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