World News: मुगल सैनिकों को पीटने वाले विदेशी लुटेरे भागू की कहानी, जिससे औरंगजेब भी खौफ खाता था – INA NEWS
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मुगल शासन के दौरान भारत के उत्तर-पश्चिमी के बॉर्डर वाले इलाके में अफगानों का प्रभाव काफी मजबूत था. ये योद्धा स्वभाव से स्वतंत्रता प्रेमी थे और प्राकृतिक रूप से सैनिक थे. इतिहास में कई बार मुगलों ने इन पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की, लेकिन अफगान योद्धाओं ने अपनी वीरता से उन्हें कड़ी चुनौती दी. इन्हीं अफगान योद्धाओं में से एक था भागू, जिसने औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह की अगुवाई की और उसकी सेना को करारी शिकस्त दी. उसकी वीरता और रणनीति ने मुगलों के लिए गंभीर संकट खड़ा कर दिया था.
अफगान जनजातियां मुख्य रूप से पेशावर से कंधार के बीच बसी हुई थीं और लूटपाट उनका मुख्य पेशा था. मुगलों ने इनसे निपटने के लिए कई तरह की नीतियां अपनाईं, जिनमें कुछ समय तक उन्हें सब्सिडी देना भी शामिल था ताकि वे शांत रहें. अकबर से लेकर शाहजहां तक यह नीति जारी रही, लेकिन औरंगजेब ने इस सब्सिडी को रोक दिया, जिससे अफगानों में असंतोष फैल गया.
भागू ने जब मुगलों को धूल चटाई
साल 1667 में यूसुफजई जनजाति ने विद्रोह किया, जिसे औरंगजेब ने बड़ी मुश्किल से दबाया. लेकिन 1672 में भागू के नेतृत्व में अफरीदी जनजाति ने एक संगठित विद्रोह छेड़ दिया, जिसने मुगल सेना की चूलें हिला दीं.
साल 1672 में भागू ने कई अफगान जनजातियों को एकजुट कर मुगलों के खिलाफ राष्ट्रीय विद्रोह का आह्वान किया. इस समय काबुल के सूबेदार मोहम्मद अमीन खान अपनी सेना के साथ पेशावर की ओर बढ़ रहे थे. भागू और उसके साथियों ने पहाड़ों में छिपकर घात लगाकर हमला किया. मुगलों की जल आपूर्ति रोक दी गई और उन पर चारों ओर से पत्थरों और हथियारों से हमला किया गया. पूरी मुगल सेना को नष्ट कर दिया गया, और अमीन खान बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर भाग निकला. विद्रोहियों को मुगल खजाने से करीब दो करोड़ रुपये मिले, जिससे उनके प्रभाव और शक्ति में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई.
औरंगजेब की रणनीति फेल
भागू की इस जीत ने मुगलों के शासन के लिए गंभीर संकट खड़ा कर दिया. औरंगजेब को खुद विशाल सेना लेकर हसन अबदल पहुंचना पड़ा. हालांकि, अफगानों की संख्यात्मक बढ़त, पहाड़ी युद्ध में उनकी विशेषज्ञता और मुगलों की सीमित प्रेरणा के कारण युद्ध उनके लिए कठिन होता गया. मुगलों की तोपें उनकी ताकत थीं, लेकिन अफगान लड़ाके खुद पहले मुगल सेना में रह चुके थे और उनकी कमजोरियों को बखूबी समझते थे. लगभग एक साल तक औरंगजेब ने अफगानों को तोड़ने के लिए हरसंभव प्रयास किया.
मुगल कूटनीति से हुआ विद्रोह का अंत
औरंगजेब ने अफगानों की एकता को तोड़ने के लिए कूटनीति का सहारा लिया. उसने कुछ जनजातियों को अपनी ओर मिला लिया, जिससे भागू की सेना कमजोर पड़ गई. धीरे-धीरे अफगान संघ टूट गया और मुगलों ने विद्रोह को कुचल दिया. इसके बाद औरंगजेब ने सब्सिडी फिर से बहाल कर दी और आमिर खान को काबुल का नया सूबेदार नियुक्त किया, जिसने स्थानीय जनजातियों को आपस में उलझा दिया.
मुगलों ने कैसे भागू के विद्रोह को दबा दिया?
हालांकि मुगलों ने इस विद्रोह को दबा दिया, लेकिन इसका दूरगामी प्रभाव पड़ा. मुगलों को अपने सबसे बेहतरीन सेनापति दक्षिण भारत से हटाकर उत्तर-पश्चिम में लगाना पड़ा, जिससे शिवाजी को स्वतंत्र रूप से मराठा साम्राज्य स्थापित करने का अवसर मिल गया. इसके अलावा, मुगलों की सेना अफगानों पर से भरोसा खो बैठी, जिससे उन्हें भविष्य में योग्य सैनिकों की कमी का सामना करना पड़ा. भागू का विद्रोह एक ऐसा विद्रोह था, जो न केवल औरंगजेब के शासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना, बल्कि मुगल साम्राज्य की गिरावट की शुरुआत का भी एक प्रमुख कारण साबित हुआ.
मुगल सैनिकों को पीटने वाले विदेशी लुटेरे भागू की कहानी, जिससे औरंगजेब भी खौफ खाता था
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