World News: ट्रंप की ताजपोशी, चीन से टकराव, साउथ चाइना सी में युद्ध का अंदेशा! – INA NEWS

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शपथ ग्रहण के बाद चीन को लेकर कई बड़े ऐलान कर दिए. जिससे साफ हो गया कि ट्रंप चीन को बैकफुट पर धकेलने के लिए बड़ी रणनीति बनाने जा रहे हैं. अगर चीन ने पलटवार किया तो महायुद्ध की शुरुआत हो सकती है. क्योंकि जिपनिंग और पुतिन ने मीटिंग करके अमेरिकी वर्चस्व को तोड़ने का एलान कर दिया है. यानी सुपर पावर अमेरिका के खिलाफ दो महाशक्तियां एकजुट हो चुकी हैं. जिनके बीच टकराव का पहला एपिसेंटर पनामा कैनाल बन सकती है. इसके पीछे की वजह इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में समझिए.

ट्रंप ने इलेक्शन कैंपेन में ऐलान किया था कि उनके सत्ता में आते ही अमेरिका बदल जाएगा, दुनिया बदल जाएगी. ट्रंप के फैसलों से उनकी कही बात सही साबित होती दिख रही है, दुनिया तेजी से बदलने की तरफ बढ़ रही है, लेकिन ट्रंप के हिसाब से नहीं,,बल्कि तीसरे विश्वयुद्ध की तरफ. क्योंकि ट्रंप के ऐलान के बाद चीन और रूस भड़क गए हैं. पुतिन ने युद्ध विराम का फैसला मानने से इनकार कर दिया है. जबकि चीन ट्रंप के फैसलों से बौखला गया है.

यानी हालात सुधरने की बजाय बिगड़ने लगे हैं. इसका सीधा मतलब है कि अमेरिका से रूस-चीन का टकराव बढ़ गया है. जबकि जिनपिंग और पुतिन ने डॉनल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति बनने पर बधाई भी दी थी लेकिन ये सिर्फ औपचारिकता थी जबकि परदे के पीछे तो दुश्मनी का दूसरा चैप्टर शुरू हो चुका है. ट्रंप ने शपथ लेने के बाद चीन को लेकर तीन बड़े फैसले लिए.

  • पनामा कैनाल को चीनी नियंत्रण से मुक्त कराने का ऐलान
  • ⁠WHO को चीन के दबाव से मुक्त कराने के लिए WHO से US हटा
  • मेड इन अमेरिका के जरिए चीन की अर्थव्यवस्था के खिलाफ हल्ला बोल

ट्रंप कह भी चुके हैं कि उनके लिए अमेरिका सर्वप्रथम है और उनका हर फैसला अमेरिका के फिर से महान बनाने के लिए है. अब इस रास्ते के बीच में जो भी आएगा. उसे अमेरिका तबाह कर देगा. फिर वो चाहे रूस हो या चीन. खासतौर से पनामा नहर को लेकर ट्रंप ने साफ कहा.. कि अमेरिका इसे पनामा से वापस लेने जा रहा है. पनामा को वापस लेने का एलान ट्रंप अपने कैंपेन में करते रहे हैं क्योंकि व्यापारिक और कूटनीति रूप से पनामा अमेरिका के लिए काफी अहम है, लेकिन अब चीन का दबदबा है.

पनामा के 5 बड़े जोन पर चीन कंपनियों का कंट्रोल

पनामा के सारे बड़े प्रोजेक्ट चीनी कंपनियां कर रही हैं. पनामा कैनाल के 5 बड़े जोन पर चीनी कंपनियों का कंट्रोल है.. चीन ने पनामा कैनाल पर सबसे बड़े पुल का निर्माण किया है. साथ ही कोस्ट क्रूज कंट्रोल भी चीन के पास है. अमेरिका का कहना है कि पनामा से गुजरने वाले उसके जहाजों से कई गुना शुल्क वसूला जाता है. अमेरिका के 75 फीसदी कार्गो शिप पनामा से आते-जाते हैं. अमेरिका अपना 14 फीसदी कारोबार पनामा रूट से ही करता है. यानी करीब 270 अरब डॉलर का कारोबार.

  1. पनामा कैनाल से हर साल 14 हजार जहाज गुजरते हैं जो विश्व के समुद्री व्यापार का 6 फीसदी है. जिसमें सबसे ज्यादा इस्तेमाल अमेरिका करता है.
  2. 1914 में अमेरिका ने पनामा का निर्माण पूरा किया था.. तब से पनामा पर अमेरिका का कंट्रोल रहा.. लेकिन 1999 में अमेरिका ने कैनाल को पनामा को सौंप दिया था))
  3. 1999 के बाद से पनामा से चीन की नजदीकियां बढ़ने लगीं. चीन ने लगातार निवेश किया. जिससे चीनी कंपनियों को पनामा के सारे प्रोजेक्ट मिल गए.

ऐसे में अमेरिका का प्रभाव भी कम हुआ. अब अमेरिका को खतरा है. हालात बिगड़े तो चीन इस रूट को अमेरिका के लिए बंद कर सकता है. इसलिए ट्रंप पनामा का नियंत्रण वापस लेने का ऐलान कर चुके हैं. जिस पर सेंट्रल अमेरिकी देश पनामा ने आपत्ति जताई है. पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल ने कहा है कैनाल पर चीन का कोई दखल नहीं है. अमेरिका के सारे दावे तथ्यहीन हैं.

कैनाल पर अमेरिका का नियंत्रण किसी भी सूरत में मंजूर नहीं किया जाएगा. नहर पनामा के नियंत्रण में है और पनामा के नियंत्रण में ही रहेगी. यानी कैनाल को लेकर टकराव बढ़ेगा.. पनामा के बयान से ये साफ हो गया है. यानी चीन का दबदबा पनामा से हटाने के लिए अमेरिका को काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है. हो सकता है. हालात युद्ध में बदल जाएं.

टकराव ताइवान और फिलीपींस को लेकर भी बढ़ सकता है

चीन से अमेरिका का टकराव ताइवान और फिलीपींस को लेकर भी बढ़ सकता है क्योंकि चीन ताइवान पर कब्जे के लिए कभी भी हमला कर सकता है. फिलीपींस की समुद्री सीमा में चीन ने अपने वॉरशिप तैनात कर दिए हैं. जिसे हटाने के लिए अमेरिका अपना सातवां बेड़ा दक्षिण चीन सागर में भेज रहा है.

ट्रंप ने चीन को घेरने के लिए पुख्ता रणनीति बनाई है जिसमें एक तरफ चीन के सामान पर इंपोर्ट ड्यूटी बढाई है. साथ ही अमेरिका इलेक्ट्रिक व्हीकल्स का प्रोडक्शन बढ़ाने की तैयारी कर चुका है. इसके अलावा मेड इन अमेरिका प्रोडक्ट पर जोर दिया जाएगा. इसके अलावा WHO में चीन का प्रभाव बढ़ने से भी अमेरिका ने खुद को WHO से अलग कर लिया है.

अब अमेरिका चीन के विस्तारवादी मंसूबे को भी रौंदने की तैयारी कर रहा है. खासतौर से तीन मोर्चों पर. पहला मोर्चा- ताइवान, दूसरा मोर्चा- फिलीपींस और तीसरा मोर्चा- हांगकांग है.

अमेरिका के लिए क्या है चुनौती?

ट्रंप ने शपथ लेने के बाद अपने भाषण में चीन पर सबसे ज्यादा प्रहार किया. क्योंकि इस वक्त चीन अमेरिका के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है. इसलिए अमेरिका आर्थिक और रणनीतिक तौर पर चीन को बैकफुट पर धकेलना चाहता है लेकिन चीन पीछे हटने को तैयार नहीं बल्कि वो रूस के साथ मिलकर अमेरिका से टकराने की तैयारी में है. ट्रंप के ऐलान के तुरंत बाद जिनपिंग और पुतिन ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मीटिंग की और अमेरिका के खिलाफ रणनीति बनाई.

पुतिन से मुलाकात के बाद जिनपिंग ने दोनों देशों के संबंधों को नई ऊंचाई पर ले जाने की बात कही है.जिसमें साथ मिलकर अमेरिका का विरोध करने पर भी सहमति जताई है. पुतिन ने साफ कहा कि अमेरिकी वर्चस्व वाली मानसिकता के खिलाफ साथ मिलकर लड़ेंगे. रूस-चीन के साथ ना सिर्फ कारोबारी रिश्ते बढ़ा रहा है बल्कि सैन्य सहयोग भी जारी रखेगा. दक्षिणी चीन सागर में बीजिंग के प्रभाव को कम करने वाली ताकतों को रोकने में रूस हमेशा उसके साथ है.

(टीवी9 ब्यूरो रिपोर्ट)

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