World News: बात जब कश्मीर की आती है तो भारत का दुश्मन क्यों बन जाता है तुर्किए? – INA NEWS

भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का मुद्दा दशकों से विवाद का हिस्सा है. इसके पीछे बड़ी वजह पाकिस्तान का आतंकवाद है. पहलगाम के आतंकी हमले ने भारत और पाकिस्तान के बीच जंग जैसे हालात पैदा कर दिए हैं. दोनों देशों के बीच पनपी इस टेंशन पर पूरी दुनिया की नजर है. अलग-अलग देश अपने-अपने हितों और मंसूबों के हिसाब से पक्ष रख रहे हैं. तुर्किए एक बार फिर पाकिस्तान की तरफ झुका नजर आया है.

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोआन का बयान एक हफ्ते बाद सोमवार को आया. ये बयान भी तब आया जब तुर्किए पर पाकिस्तान को हथियार भेजने के आरोप लगे.

हालांकि, पाकिस्तान को हथियार सप्लाई करने की बात से तुर्किए ने इनकार कर दिया है लेकिन उसकी नीयत पर शक किया जा रहा है. इसकी वजह भी है. भारत से तनाव के बीच तुर्किए के इंटेलिजेंस चीफ पाकिस्तान में हैं. उन्होंने पाकिस्तानी वायुसेना मुख्यालय का दौरा किया है. पाकिस्तानी वायुसेना ने खुद इसका वीडियो जारी किया है. यानी ये घटना महज इत्तेफाक नहीं है बल्कि दोनों देशों के गठजोड़ को दिखाती है.

पाकिस्तान के साथ एर्दोआन

भारत में मौजूद तुर्किए एंबेसी की तरफ से हमले के बाद पीड़ितों के प्रति सांत्वना व्यक्त की गई थी. लेकिन एर्दोआन ने अपने बयान में पहलगाम में मारे गए बेकसूरों के लिए दुख जाहिर नहीं किया, बल्कि ये कहा कि पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव जल्द कम होना चाहिए ताकि मामला गंभीर न हो. एर्दोआन ने यहां तक कह दिया कि तुर्किए पाकिस्तान के साथ मजबूती से खड़ा है.

ये कोई पहला मौका नहीं है जब तुर्किए का स्टैंड पाकिस्तान की तरफ झुका नजर आया हो. खासकर, जब बात कश्मीर की आती है तो फिर मंच चाहे जो हो, तुर्किए भारत को चुभने वाले बयान ही देता है.

22 अप्रैल को जब पहलगाम में आतंकवादियों ने धर्म देख-देखकर एक स्थानीय समेत 26 पर्यटकों की जान ली, तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ तुर्किए के दौरे पर थे. हमले के बाद जब दोनों नेताओं की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई तो शहबाज शरीफ ने कश्मीर मु्द्दे पर समर्थन के लिए एर्दोआन को धन्यवाद भी कहा.

यानी पहलगाम हमले के बाद पूरा जम्मू-कश्मीर आतंक के खिलाफ आवाज उठा रहा था, पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी हो रही थी और आम जनता से लेकर राजनेता तक, सब एकजुट होकर इस अटैक से दुखी थे, वैसे वक्त में भी तुर्किए पाकिस्तान के साथ मिलकर कश्मीर पर सियासत कर रहा था.

तुर्किए लंबे समय से कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता आ रहा है. खासकर संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर वो खुलकर भारत विरोध स्टैंड लेता है. भारत सरकार ने जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया तो उसके बाद एर्दोआन ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में कश्मीर का मुद्दा उठाया और भारत के इस कदम की आलोचना की.

370 हटाने पर भी टिप्पणी

एर्दोआन का पाकिस्तान समर्थक रुख भारत और तुर्किए के संबंधों में तनाव का कारण रहा है. एर्दोआन की कश्मीर से जुड़ी टिप्पणियों पर भारत सार्वजनिक तौर पर रिएक्शन दे चुका है.

जब मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का फैसला किया तब भी तुर्किए की तरफ से भारत विरोधी बयान दिया गया था. एर्दोआन ने कहा था कि भारत ने इस फैसले से जम्मू-कश्मीर के हालात को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है. उस वक्त भी भारत के विदेश मंत्रालय ने तुर्किए के रुख को आधारहीन और अस्वीकार्य बताया था. भारत की तरफ से दो टूक कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और किसी अन्य देश को इस पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है.

इसी साल फरवरी (2025) में जब एर्दोआन पाकिस्तान के दो दिवसीय दौर पर गए तब भी उन्होंने कश्मीर के मु्द्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया था. एर्दोआन ने कहा था कि कश्मीर मसले का समाधान संयुक्त राष्ट्र के रिजॉल्यूशन के अनुसार होना चाहिए, और कश्मीरी लोगों की भावानाओं का इसमें ध्यान रखा जाना चाहिए.

भारत में उनके इस बयान पर गंभीर प्रतिक्रिया देखने को मिली थी. विदेश मंत्रालय ने तुर्किए के राजदूत को साफ कह दिया था कि भारत की संप्रभुता और अखंडता से जुड़ा ये मामला है और इस पर किसी बाहरी की विवादित टिप्पणी को स्वीकार नहीं किया जाएगा.

भारत से कैसे रिश्ते?

भारत और तुर्किए के बीच यूं तो 1948 से ही राजनयिक रिश्ते कायम हैं. लेकिन बीच-बीच में तुर्किए की टिप्पणियों से खटास भी सामने आती रही है. मोदी सरकार के कार्यकाल बात की जाए तो जनवरी 2015 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तुर्किए के दौरे पर गई थीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 2015 के नवंबर में तुर्किए गए थे, और वहां जी20 समिट में भाग लिया था. उसके अलावा पीएम मोदी स्टेट विजिट पर तुर्किए नहीं गए हैं.

हालांकि, तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोआन स्टेट विजिट पर 2017 में भारत आ चुके हैं. 2023 में दिल्ली में हुए जी20 समिट में भी वो आए थे. दोनों नेताओं की ज्यादातर मुलाकात साइडलाइंस ही हुई हैं, यानी द्विपक्षीय वार्ता के मौके बहुत कम रहे हैं.

आर्थिक रिश्ते

भारत और तुर्किए के बीच 1973 में आर्थिक तौर पर एक समझौता हुआ था जो द्विपक्षीय संबंधों में एक बेहतर पड़ाव था. इस समझौते के तहत ही 1983 इंडिया-तुर्किए जॉइंट कमिशन ऑन इकोनॉमिक एंड टेक्निकल को-ऑपरेशन(JCETC) एग्रीमेंट हुआ. दोनों देशों में इसकी मीटिंग होती रहीं लेकिन जनवरी 2014 को दिल्ली में इसकी आखिरी यानी 10वीं बैठक हुई थी. इसके बाद से यानी मोदी सरकार के दौरान इस फोरम का कोई सत्र नहीं हुआ.

हालांकि, दोनों देशों के बीच व्यापार होता रहा. वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान द्विपक्षीय व्यापार में 28.99% की वृद्धि हुई. इसके अलावा भारत मानवीय आधार पर ही तुर्किए के साथ खड़ा नजर आता है. फरवरी 2023 में जब तुर्किए में भूकंप से तबाही मची तब भारत ने ऑपरेशन दोस्त के तहत सर्च और रेस्क्यू टीम भेजी, साथ ही 6 सी-17 मिलिट्री एयरक्राफ्ट में मदद सामग्री भी भेजी गई.

कुल मिलाकर भारत और तुर्किए के बीच तीखी नोंक-झोंक के बावजूद रिश्ते बेहतर तो नहीं लेकिन सामान्य रहे हैं. लेकिन बात जब कश्मीर की आती है तो तुर्किए के तेवर तुरंत बदल जाते हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि कश्मीर एक ऐसा मुद्दा है जिस पर 50 से ज्यादा देशों वाले इस्लामिक संगठन OIC का रुख भी भारत की सोच के विपरीत रहा है. ऐसे में एर्दोआन भी इस मुद्दे पर मुखर रहते हैं. दूसरी तरफ, अन्य मुस्लिम देशों से भारत के बेहद गहरे संबंध हैं और ये देश तुर्किए को उतनी तवज्जो नहीं देते हैं. जबकि पाकिस्तान तुर्किए के आगे नतमस्तक रहता है. यही वजह है कि जब-जब अंतरराष्ट्रीय फोरम पर कश्मीर की बात उठती है, एर्दोआन पाकिस्तान के सुर में सुर मिलाने लगते हैं.

बात जब कश्मीर की आती है तो भारत का दुश्मन क्यों बन जाता है तुर्किए?


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