World News: दुबई में रहने वाले ये भारतीय हिंदू आखिर क्यों रख रहे हैं 18 घंटे का रोजा? – INA NEWS

दुबई में रहने वाले 69 साल के भारतीय प्रवासी विद्याधरन एरुथिनाड पिछले 32 सालों से रमजान के दौरान रोजा रख रहे हैं, वह भी पूरे 18 घंटे का. दिलचस्प बात यह है कि वे मुस्लिम नहीं हैं, बल्कि हिंदू धर्म को मानते हैं. लेकिन उनके लिए रोजा रखना केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एकता और सद्भाव का प्रतीक है.
विद्याधरन मूल रूप से केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के रहने वाले हैं और 1982 में दुबई आए थे. शुरुआती दिनों में उन्होंने कई छोटे-मोटे काम किए और बाद में ड्राइवर की नौकरी करने लगे. 1992 में उन्होंने पहली बार रमजान के पूरे 30 दिन रोजा रखा और तब से यह सिलसिला जारी है. दिलचस्प बात यह है कि वे चांद दिखने का इंतजार नहीं करते, बल्कि हर साल पूरे 30 दिन उपवास रखते हैं, ठीक वैसे ही जैसे उनके गृह राज्य केरल में आमतौर पर किया जाता है.
रोजा में इन नियमों का करते हैं पालन
उनका उपवास औरों से थोड़ा अलग है क्योंकि वे सहरी नहीं करते. यानी वे सुबह से बिना कुछ खाए-पीए शाम तक रोजा रखते हैं. वे रोजा केवल खजूर, फल और शाकाहारी भोजन से खोलते हैं. आमतौर पर वे मांसाहार नहीं खाते, हालांकि कभी-कभी मछली का सेवन कर लेते हैं. रोजा खोलने के बाद वे रात 10 बजे हल्का भोजन करते हैं और फिर सो जाते हैं.
रोजा के साथ ये भी करते हैं
विद्याधरन न केवल रोजा रखते हैं, बल्कि रमजान के दौरान सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. वे ग्लोबल प्रवासी यूनियन और अन्य भारतीय संगठनों के माध्यम से इफ्तार वितरण कार्यक्रमों में भाग लेते हैं. इसके अलावा, वे पिछले चार दशकों से विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के प्रवासियों के शवों को उनके देश वापस भेजने के कार्य में लगे हुए हैं.
रमजान उपवास का महीना नहीं बल्कि…
उनका मानना है कि उपवास केवल अनुशासन का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह आत्म-संयम और सामाजिक समझ को भी बढ़ाता है. उनके अनुसार, “अगर लोग एक-दूसरे के धर्म और भावनाओं को समझने लगें, तो समाज में एकता और सद्भाव बना रह सकता है.” वे कहते हैं कि रमजान उनके लिए केवल उपवास का महीना नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा है.
उनका यह कदम दिखाता है कि किस तरह धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के बावजूद एकता और भाईचारे की भावना लोगों को जोड़ सकती है. विद्याधरन की कहानी यह संदेश देती है कि समाज में एक-दूसरे की परंपराओं और भावनाओं का सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है.
दुबई में रहने वाले ये भारतीय हिंदू आखिर क्यों रख रहे हैं 18 घंटे का रोजा?
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