World News: अमेरिका: H1B वीजा पर क्यों बदल गए डोनाल्ड ट्रंप के सुर? – INA NEWS
20 जनवरी 2025 को, डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले हैं. उनके प्रशासन का नाम सुनते ही कठोर नीतियां और अप्रवास विरोधी रुख ज़हन में उभरता है. लेकिन इस बार कहानी में ट्विस्ट है. H-1B वीजा पर ट्रंप का बदला हुआ रुख भारत समेत पूरी दुनिया को चौंका रहा है. जो नेता कभी इस वीजा का खुलकर विरोध करते थे, अब अचानक इसके पक्ष में दिखाई दे रहे हैं.
इस विवाद की चिंगारी तब भड़की जब ट्रंप ने भारतीय मूल के श्रीराम कृष्णन को अपने प्रशासन में AI नीति प्रमुख के तौर पर नियुक्त किया. कृष्णन, जो H-1B वीजा के समर्थक माने जाते हैं, की एंट्री ने दक्षिणपंथी खेमे में खलबली मचा दी. ट्रंप की करीबी और मुखर नेता लॉरा लूमर ने X (पहले ट्विटर) पर कृष्णन की आलोचना करते हुए इसे “अमेरिका फर्स्ट” नीति के खिलाफ बताया.
अब ट्रंप के खेमे में ही दो गुट उभर आए हैं—एक H-1B वीजा पर पूर्ण प्रतिबंध चाहता है, तो दूसरा इसे अमेरिका की मौजूदा जरूरतों के लिए अनिवार्य मानता है. तो आइए जानते हैं कि इस बदलते रवैया के पीछ क्या वजहें हैं?
ट्रंप पहले क्या कहते आए हैं, अब क्या बोले?
ट्रंप ने कहा है कि, ”मैं H-1B वीजा में भरोसा करता हूं. मेरी कंपनियों में भी कई H-1B वीजा वाले लोग हैं. मैंने कई बार इसका इस्तेमाल किया है और यह एक बेहतरीन प्रोग्राम हैं. इससे पहले टेस्ला के मालिक एलन मस्क भी एक्स पर एक पोस्ट किया जिसमें विदेशी कामगारों के लिए H-1B वीजा के समर्थन में युद्ध करने तक की कसम खाई थी.
ट्रंप का ताजा बयान इस साल हुए अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनावी कैंपन के दौरान दिए गए बयान से एकदम उलट है. चुनावी अभियान के दौरान ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को देश से निकालने और वीजा पॉलिसी को सख्त बनाने की बात कही थी. H-1B वीजा को लेकर खुद ट्रंप ने अपने पिछले राष्ट्रपति कार्यकाल में भी बखेड़ा खड़ा किया था.
तब भारत की ओर से दिए गए वीजा आवेदन बड़ी संख्या में खारिज किए गए. साल 2020 में ट्रंप ने H-1B और L-1 वीजा को संस्पेंड कर दिया था. उनका कहना था कि इससे अमेरिकी कंपनियां कम वेतन में विदेशी वर्कर लाकर अमेरिकी लोगों का नुकसान करती हैं. लेकिन अब वह मस्क और विवेक रामास्वामी जैसे लोगों के साथ खड़े दिख रहे हैं.
H-1B वीजा क्या है?
H-1B नॉन-इमीग्रेंट वीजा होता हैं जिसे अमेरिकी सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज यह वीजा जारी करती है. यह वीजा आमतौर पर उन लोगों के लिए जारी किया जाता है,जो किसी खास पेशे जैसे-IT प्रोफेशनल, आर्किट्रेक्टचर, हेल्थ प्रोफेशनल आदि से जुड़े होते हैं. जिन लोगों को H1B वीजा मिलता है उन्हें ही अमेरिका में अस्थायी रुप से काम करने की इजाजत होती है.
यह पूरी तरह से एम्पलॉयर पर डिपेंड करता है मतलब अगर एम्पलॉयर नौकरी से निकाल दे और दूसरा एम्पलॉयर ऑफर न करे तो वीजा खत्म हो जाएगा. अमेरिका हर साल 65,000 लोगों को H-1B वीजा देता है. इसकी समयसीमा 3 साल के लिए होती है. जरूरत पड़ने पर इसे 3 साल के लिए और बढ़ाया जा सकता है.
अमेरिका में 10 में से 7 H-1B वीजा भारतीय लोगों को मिलती है. इसके बाद चीन, कनाडा, साउथ कोरिया का नंबर आता है. 2023 में जारी हुए 2 लाख 65 हजार वीजा में सबसे ज्यादा 72.3 हिस्सा भारतीयों को मिला. करीब 12फीसदी वीजा चीन को मिला. 2023 में इन्फोसिस, TCS, HCL, और विप्रो को करीब 20 हजार H1-B वीजा की मंजूरी मिली थी.
ट्रंप के बदलते रूख का मस्क कनेक्शन
डोनाल्ड ट्रंप के इस बड़े बदलाव के पीछे है एलन मस्क इफेक्ट, जिन्होंने H-1B वीज़ा के लिए खुलकर समर्थन किया है. मस्क का कहना है कि उनकी कंपनियां, जैसे स्पेसएक्स और टेस्ला, H-1B वीज़ा धारकों की बदौलत ही बुलंदियों पर पहुंची हैं. मस्क खुद एक अप्रवासी हैं और मानते हैं कि अमेरिका में टैलेंट की कमी है.
उनके शब्दों में: “अगर आपको अपनी टीम को चैंपियन बनाना है, तो सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों को लाना पड़ेगा, चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने से हों.” लेकिन ट्रंप के इस यू-टर्न ने उनके समर्थकों के बीच हलचल मचा दी है. कुछ इसे उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के खिलाफ मान रहे हैं. साफ है, ट्रंप का H-1B वीज़ा पर यह बदला हुआ रुख मस्क के प्रभाव और तकनीकी उद्योग की जरूरतों को खुलकर दर्शा रहा है.
अमेरिका के लिए क्यों अहम है?
अमेरिका के लिए भी यह वीजा अहम है क्योंकि गणित और विज्ञान जैसे विषयों में अमेरिकी लोग भारत और चीन के लोगों से काफी पीछे हैं, जिसे लेकर बराक ओबामा से लेकर बाइडन तक, तमाम नेता चिंता जताते रहे हैं. अमेरिकी कंपनियां भी बड़ी संख्या में इस वीजा पर कुशल लोगों को अमेरिका बुलाती हैं.
अमेरिका के पास इतने इंजिनियर और स्किल्ड वर्कर हैं ही नहीं, जितनी जरूरत है. गूगल, ऐपल, माइक्रोसॉफ्ट से लेकर मस्क की कंपनियों तक, ये सभी मानती हैं कि H1B वीजा बहुत जरूरी है. इसका इस्तेमाल हमारी कंपनियां भी करती हैं और अमेरिकन कंपनियां भी.
अमेरिका: H1B वीजा पर क्यों बदल गए डोनाल्ड ट्रंप के सुर?
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