World News: Women’s Day: मुस्लिम देशों की महिलाएं कितनी आजाद हैं? पाकिस्तान से सऊदी अरब तक की रिपोर्ट – INA NEWS

महिलाओं की आजादी और अधिकारों को लेकर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बहस जारी है. महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से सशक्त करने के लिए हर साल 8 मार्च को दुनियाभर में विश्व महिला दिवस भी मनाया जाता है. जब महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई, तब से लेकर अब तक काफी कुछ बदल चुका है. महिलाओं के अधिकारों को लेकर लोग जागरुक हुए हैं. कुछ देशों में महिलाएं शिक्षा, रोजगार और सामाजिक जीवन में आगे बढ़ रही हैं.

मगर वहीं कई जगह अब भी उन्हें बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. मसलन मुस्लिम देशों में यह मुद्दा और भी संवेदनशील बन जाता है.कपड़े पहनने के ढंग से लेकर शादी, तलाक और संपत्ति के अधिकार तक, महिलाओं की स्थिति पर हाल के वर्षों में कई दिलचस्प सर्वे सामने आए हैं. इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आइए जानते हैं कि मुस्लिम देशों में महिलाओं की आज़ादी की स्थिति कैसी है?

कपड़ों पर कितनी आज़ादी?

यह सवाल हमेशा बहस का विषय रहा है कि क्या महिलाओं को अपनी पसंद से कपड़े पहनने का अधिकार मिलना चाहिए. यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के एक सर्वे के मुताबिक, इस्लामिक देशों में इसको लेकर मतभेद हैं. लेबनान में सबसे ज्यादा 49% लोग चाहते हैं कि महिलाएं बिना स्कॉर्फ या हिजाब के रहें, जबकि सऊदी अरब में 11% लोग मानते हैं कि महिलाओं को सिर से पांव तक ढके रहना चाहिए.

अगर बात सबसे अधिक स्वतंत्रता की करें, तो ट्यूनिशिया में 56% लोग मानते हैं कि महिलाओं को अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने चाहिए. तुर्की में यह आंकड़ा 52% है, लेकिन पाकिस्तान में सिर्फ 22% लोग ही महिलाओं को पूरी तरह स्वतंत्र देखना चाहते हैं. मिस्र और इराक जैसे देशों में यह प्रतिशत और भी कम हो जाता है.

शादी, प्रेम और तलाक का अधिकार

मुस्लिम देशों में महिलाओं को विवाह और तलाक को लेकर कितनी आज़ादी मिलती है, इस पर भी गहरी असमानता देखने को मिलती है. सऊदी अरब में 77% लोगों का मानना है कि शादी से पहले प्रेम जरूरी है, जो एक बदलती सोच की ओर इशारा करता है. हालांकि, पाकिस्तान में हालात अलग हैं. वहां वोट डालने का अधिकार तो है, लेकिन विवाह से जुड़े फैसलों पर महिलाओं की मर्जी का बहुत कम महत्व है.

जहां तक तलाक का सवाल है, 22 मुस्लिम-बहुल देशों के सर्वे में 13 देशों के मुस्लिमों ने माना कि महिलाओं को भी तलाक लेने का अधिकार होना चाहिए. यूरोप और मध्य एशिया के देशों में यह समर्थन और ज्यादा दिखा. बोस्निया-हर्जेगोविना (94%), कोसोवो (88%), तुर्की (85%) और अल्बानिया (84%) के लोग इस विचार के पक्ष में थे. वहीं, ताजिकिस्तान में सिर्फ 30% लोग ही यह मानते हैं कि महिलाओं को तलाक का अधिकार मिलना चाहिए.

ट्यूनिशिया का ऐतिहासिक कदम

महिलाओं के अधिकारों को लेकर ट्यूनिशिया ने 2018 में इतिहास रच दिया, जब वह पुरुषों और महिलाओं को समान विरासत देने वाला पहला अरब देश बना. वहां की सरकार ने ऐसा कानून पास किया, जो इस्लामिक परंपराओं से अलग था। यह कदम महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता के लिए बेहद अहम माना गया.

क्या पितृसत्तात्मक सोच बदल रही है?

2013 में पीयू रिसर्च सेंटर ने 39 मुस्लिम-बहुल देशों में एक बड़ा सर्वे किया, जिसमें 38,000 से अधिक लोगों से बातचीत की गई. नतीजे चौंकाने वाले थे—85% मुस्लिम मानते हैं कि पत्नियों को हर हाल में अपने पतियों की आज्ञा का पालन करना चाहिए.

हालांकि, हाल के वर्षों में कुछ देशों में बदलाव देखने को मिला है. सऊदी अरब में महिलाओं को अब ड्राइविंग, वोटिंग, नौकरी और पढ़ाई करने का अधिकार मिल चुका है. लेकिन पाकिस्तान, मिस्र, इराक और कई अन्य देशों में अभी भी घरेलू हिंसा, सामाजिक बंधन और कानूनी रुकावटें महिलाओं की आज़ादी पर सवाल खड़े करती हैं.

अफगानिस्तान में तो बेहद बुरे हालात

अफगानिस्तान में जबसे तालिबान की सत्ता में वापसी हुई है, तबसे लेकर अब तक उसने मानव अधिकारों के मामले में तरक्की बाधित कर दी है. खासकर महिलाओं के मामलों में. वहां महिलाओं और लड़कियों को उच्च शिक्षा हासिल करने के बुनियादी अधिकार से भी वंचित कर दिया गया है. आए दिन तालिबान ऐसे फरमान जारी कर महिलाओं के अधिकारों को कुचलता रहता है.

मसलन उनके घर से बाहर ज्यादातर काम करने पर और किसी पुरुष संरक्षक के बगैर लंबी दूरी का सफर करने पर पाबंदी लगा दी गई है. महिलाओं को हुक्म जारी किया गया है कि वो घर से बाहर या दूसरे लोगों के सामने अपना पूरा चेहरा ढक कर रखें.

Women’s Day: मुस्लिम देशों की महिलाएं कितनी आजाद हैं? पाकिस्तान से सऊदी अरब तक की रिपोर्ट


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