World News: ज़बान-ए-यार मन तुर्की… भारत क्यों नहीं समझ पाया एक इंटरनेशनल अय्यार की भाषा – INA NEWS

प्रसिद्ध शेर की एक लाइन है- ज़बान-ए यार-ए मन तुर्की व मन तुर्की नमी दानम… जिज्ञासा अहम हो जाती है कि सैकड़ों साल पहले लिखे इस शेर में तुर्की का ही जिक्र क्यों किया गया, किसी और देश का क्यों नहीं. वैसे इसका जवाब विद्वान तलाशेंगे, लेकिन यह शेर कहता है कि हम जिससे दोस्ती करना चाहते हैं, उसकी भाषा तुर्की है और हम तुर्की समझ ही नहीं पाते. दरअसल यह बात शेरो-शायरी की थी, इश्क-मोहब्बत की थी लेकिन वास्तव में देखिए तो हम आज तक तुर्की की ना तो भाषा ठीक से समझ सके हैं और ना ही उसकी राजनीति और कूटनीति. तुर्की ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद जिस तरह भारत के खिलाफ पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ाई, उसने सबको हैरान कर दिया है. भारत पर हमले के इरादे से तुर्की ने पाकिस्तान को ड्रोन उपलब्ध कराए.

यह हाल तब है जब भारत ने तुर्की को एक दोस्त का दर्जा दिया था. भारत ने तुर्की से दोस्ती बढ़ानी चाही, भूकंप की त्रासदी हो या कोविड महामारी का दौर, भारत ने कई मोर्चे पर तुर्की का सहयोग किया, मानवीय सहायता पहुंचाई लेकिन आतंकवाद का विरोध करने के मुद्दे पर तुर्की भारत का साथ देने की बजाय पाकिस्तान का मददगार बना रहा. तुर्की का कश्मीर पर भी हैरान कर देने वाला रुख है. तुर्की सन् 1965 और 1971 की लड़ाई में भी पाकिस्तान का साथ दे चुका है. तुर्की ने जिस तरह दुनिया में कई मौके पर अपना रंग बदला, उससे तो उसे इंटरनेशनल अय्यार कहें तो शायद गलत नहीं.

दुनिया में तुर्की का इमेज तिलिस्मी

वास्तव में तुर्की ने दुनिया में अपना तिलिस्मी इमेज बना रखा है. भारत ही नहीं, अमेरिका से भी तुर्की के बहुत अच्छे रिश्ते नहीं. पूर्व सोवियत संघ के जमाने में जब शीत युद्ध जारी था तब अमेरिका से तुर्की की दोस्ती थी लेकिन सोवियत संघ के बिखराव के साथ ही उसने अपना रंग बदल लिया और अमेरिका विरोधी खेमे में शामिल हो गया. अब उसने रूस के साथ-साथ चीन से भी नजदीकी बढ़ा ली है. यहां तक कि अमेरिका से अच्छे रिश्ते होने के कारण तुर्की इस्लामिक देशों मसलन सऊदी अरब और यूएई से ही प्रतिस्पर्धा रखता है. हाल के सालों में भारत ने जैसे जैसे इजरायल, अमेरिका और सऊदी से संबंध बेहतर किए तुर्की भारत विरोध में पाकिस्तान के और करीब होता गया.

इस्लामिक देशों का लीडर बनने की होड़

हाल के सालों में तुर्की के मौजूदा राष्ट्रपति रजब तैयब इर्दोग़ान में खुद को दुनिया में इस्लामिक देशों का सबसे बड़ा लीडर साबित करने की होड़ नजर आती है. तुर्की को इस्लाम का रहनुमा देश बनने के अभियान में है. तुर्की इस मकसद में पाकिस्तान को मदद पहुंचाकर अपना समर्थक बनाए रखना चाहता है. वह चीन और रूस के साथ मिलकर इस्लामिक देशों के बीच अपना दबदबा बनाना चाहता है. हालांकि इस्लामिक देशों के रहनुमा के तौर पर सऊदी अरब और यूएई का अपना अलग ही मिशन है लेकिन अमेरिका से नजदीकी के चलते इन दोनों देशों से तुर्की के बहुत अच्छे रिश्ते नहीं हैं.

इतिहास में भारत-तुर्की के रिश्ते

इतिहास के आईने में देखें तो आजादी के साथ ही भारत और तुर्की ने अपने राजनयिक संबंध स्थापित तो कर लिये थे लेकिन ये सफर उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध सन् 1948 में स्थापित हुए. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के तुर्की से तब इसलिए अच्छे रिश्ते थे क्योंकि तुर्की एक गुटनिरपेक्ष देश के तौर पर आगे बढ़ रहा था. शीत युद्ध के दौर में वह अमेरिका के साथ चला गया और शीत युद्ध के बाद उस खेमे से बाहर निकल गया. लेकिन भारत अपनी स्थिरता पर कायम रहा, गुटनिरपेक्षता की नीति पर अडिग रहा.

कश्मीर के मुद्दे पर पाक का साथ देता है

तुर्की से भारत के रिश्ते खराब होने तब शुरू हुए जब 1974 में उसने साइप्रस पर हमला किया, जिसका भारत ने विरोध किया था. तुर्की को ये नागवार गुजरा और वह भारत के खिलाफ पाकिस्तान को पहले से भी ज्यादा सपोर्ट करने लगा. वैसे भी तुर्की पहले से ही पाकिस्तान को मदद पहुंचाता रहा है. बंटवारे के बाद तुर्की पाकिस्तान को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता दिलाने में सबसे आगे रहा और कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का पक्ष लेता रहा. तुर्की का मौजूदा शासक रजब तैयब इर्दोग़ान भारत की मौजूदा नीति से इत्तेफाक नहीं रखते और विरोध में खुद को पाकिस्तान का करीबी बताने में लगे रहते हैं.

भूकंप और कोविड वैक्सीन में मदद

आपको बता दें कि सन् 1974 में तनाव बढ़ने के बाद दोनों देशों के बीच लंबे समय तक गतिरोध जारी रहा. राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के शासन साल में भी संबंध बेहतर करने के प्रयास हुए. इसके लंबे समय के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुर्की से संबंध बेहतर करने की दिशा में कदम उठाया. 6 फरवरी 2023 में जब तुर्की में भयानक भूकंप आया था जब भारत ने ऑपरेशन दोस्त शुरू किया. इस भूकंप में तुर्की में 55 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे.

इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान का साथ

तब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि भारत के 140 करोड़ लोग इस आपदा की घड़ी में तुर्की के साथ है. इस ऑपरेशन के दौरान भारत ने तुर्की को सहायता प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. भारत ने तुर्की रेस्क्यू दल से लेकर, मेडिकल किट और अन्य सामग्रियां भेजीं. दस दिनों तक अभियान चलाया. उससे भी पहले कोविड महामारी के समय भारत ने तुर्की को वैक्सीन की मदद पहुंचाई. लेकिन इस्लाम के नाम पर तुर्की पाकिस्तान को अपना तरफदार बनाकर रखना चाहता है. यकीनन कह सकते हैं कि तुर्की की भाषा और कूटनीति को समझ पाना आसान नहीं.

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ज़बान-ए-यार मन तुर्की… भारत क्यों नहीं समझ पाया एक इंटरनेशनल अय्यार की भाषा


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