दुनियां – रूस-ईरान से दोस्ती, सऊदी से दूरी… सत्ता परिवर्तन के बाद सीरिया में बदलेंगे समीकरण? – #INA

सीरिया में 27 नवंबर के बाद से शुरू हुई लड़ाई ने राष्ट्रपति बशर अल असद को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया है. अब सीरिया की सड़कों पर देश की सेना नहीं बल्कि विद्रोही लड़ाके हैं, जिनका नेतृत्व हयात तहरीर अल शाम के नेता अबू मुहम्मद अल गोलानी कर रहे हैं. इस लड़ाई में सिर्फ सीरियाई सेना और विद्रोही गुट ही शामिल नहीं बल्कि तुर्की, अमेरिका, सऊदी अरब, ईरान, इजराइल और रूस आदि देश भी अपने अपने हितों को साध रहे हैं.
2011 के बाद से ही सीरिया विदेशी ताकतों का प्ले ग्राउंड बना हुआ है. जहां रूस, अमेरिका, तुर्की, इजराइल सभी हमले कर रहे हैं और अपने-अपने गुटों को हथियार और पैसा दे रहे हैं. इस लड़ाई में रूस और ईरान के अपने हित हैं, तो सऊदी-कतर के अपने वहीं अमेरिका, तुर्की और इजराइल भी इस अशांति में शामिल हैं. अब जब सत्ता बशर अल असद के हाथों से जा चुकी है, तो सीरिया की समीकरण बदल रहे और लगने लगा है कि रूस और ईरान के वर्चस्व वाला ये देश मध्य पूर्व की सुन्नी शक्तियों सऊदी और तुर्की की तरफ जा सकता है.
बशर सरकार से किसको था फायदा
सीरिया में पिछले 50 साल से असद परिवार का शासन था. असद अलवी शिया समुदाय से आते हैं और सीरिया एक सुन्नी बहूल देश है. उनके शासन के दौरान सीरिया के सुन्नी मुसलमानों को ये महसूस होने लगा कि उनको उनकी आबादी के हिसाब से सरकार में उन्हें हिस्सेदारी नहीं मिल रही है. साथ ही सीरिया सरकार के रिश्ते मध्य पूर्व की सुन्नी ताकतों सऊदी, कतर और तुर्की से भी अच्छे नहीं रहे.
बशर सरकार के रूस और ईरान से बहुत गहरे संबंध थे. रूस और ईरान ने 2011 के बाद से सीरिया को सैन्य और आर्थिक मदद देकर असद सरकार को बचाए रखा था. सीरिया मॉस्को और तेहरान के लिए रणनीतिक महत्व रखता है.
रूस देश में दो प्रमुख सैन्य ठिकानों – हमीमिम एयरबेस और टार्टस नौसैनिक अड्डे को कंट्रोल करता है. ये एयरबेस रूस को क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पैर जमाने की जगह देते हैं, जिससे उसकी सेनाओं को भूमध्य सागर तक महत्वपूर्ण पहुंच मिलती है और अफ्रीका में ऑपरेशन के लिए एक लॉन्चिंग पैड मिलता है.
दूसरी और ईरान को ये उसके एक्सिस ऑफ रेसिस्टेंस से जोड़ने के लिए एक रूट देता है और उसकी मिलिशियाओं के लिए एक सप्लाई चैन की तरह काम करता है. सीरिया के जरिए ही ईरान लेबनान के हिजबुल्लाह तक हथियारों की सप्लाई करता है, वही इजराइल की सीमा पर नजर रखता है. इसके अलावा बशर अल असद का शिया नेता होना भी ईरान के समर्थन का बड़ा कारण माना जाता है.
अब बदलेगी समीकरण?
अभी ये साफ नहीं है कि सीरिया की अगली सरकार का गठन कैसे किया जाएगा लेकिन विद्रोही संगठन में लड़ने वाले दर्जनों संगठनों में हयात तहरीर अल शाम और कुर्दों की सीरिया डिफेंस फोर्स शामिल है. ये दोनों ही संगठन आपस में एक दूसरे के दुश्मन हैं, लेकिन असद के खिलाफ लड़ाई में एक दिख रहे हैं. तहरीर अल शाम को तुर्की और अमेरिका का समर्थन हैं, तो कुर्द लड़ाकों को अमेरिका और सऊदी का जबकि तुर्की इन्ही अपना दुश्मन मानता हैं.
वहीं सऊदी अरब, कतर भी पीछे से तहरीर अल शाम जैसे गुटों को समर्थन कर रहे हैं. सीरिया में अगर तहरीर अल शाम की आइडियोलॉजी रखनी वाली सरकार आती है, तो यहां सऊदी अरब का वर्चस्व बढ़ सकता है. जो ईरान के लिए खतरे की घंटी होगा, लेकिन ये सब इतनी आसानी से होता नहीं दिख रहा है. क्योंकि मैदान में कई गुट अपने अपने हितों के लिए सामने हैं और सरकार में अपना हिस्सा भी चाहते हैं.
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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम
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