दुनियां – मोदी-शी मुलाकात, कज़ान में भारत-चीन संबंधों की नई शुरुआत? पढ़िए पूरी इनसाइड स्टोरी – #INA

पांच साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कजान में मुलाकात हो रही है. यह मुलाकात कैसे संभव हुई और भारत और चीन ने क्यों यह फैसला लिया , इसे लेकर कई बातें अब साफ हो चुकी है.
लद्दाख सीमा विवाद के निपटारे के बाद से ही सभी को इसके पीछे की जानने की उत्तेजना हो रही थी. शी और पीएम मोदी की मीटिंग को लेकर पर्दे के पीछे की पूरी कहानी यह है
भारत-चीन संबंध सुधारने में रूस की पहल
23 अक्टूबर को रूस के कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वपूर्ण मुलाकात होने जा रही है. इस बैठक के पीछे रूस की अहम भूमिका रही है. पिछले कई महीनों से रूस दोनों देशों को कूटनीतिक रास्ते से जोड़ने की कोशिश कर रहा था. इस प्रयास का उद्देश्य भारत और चीन के बीच बिगड़ते संबंधों को फिर से पटरी पर लाना है, खासतौर से 2020 के गलवान संघर्ष के बाद से जो दरारें आई थीं, उन्हें भरने का.
ब्रिक्स बैठकों में संबंध सुधारने का आग्रह
ब्रिक्स के मंच पर रूस ने भारत और चीन के बीच संबंध सुधारने के लिए कई बार दोनों देशों से आग्रह किया. विभिन्न मीटिंग्स के दौरान रूस ने यह संदेश दिया कि एशिया की शांति और स्थिरता के लिए दोनों देशों के संबंध सामान्य होना जरूरी है. ब्रिक्स बैठकें, जहां अक्सर दोनों देशों के प्रतिनिधि मौजूद होते हैं, इन कूटनीतिक प्रयासों का प्रमुख मंच बनीं और यह प्रयास अब कजान की इस ऐतिहासिक मुलाकात में परिणत हो रहा है.
तीसरी बार शपथ के बाद मोदी सरकार का पहल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार सत्ता में आने के बाद चीन के साथ संबंध सुधारने का स्पष्ट संकेत दिए थे. सरकार ने महसूस किया कि आर्थिक और क्षेत्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए चीन के साथ संवाद को नए सिरे से शुरू करना जरूरी है. इस रणनीति के तहत, दोनों देशों ने धीरे-धीरे उच्च स्तरीय कूटनीति में कदम बढ़ाए. जुलाई में अस्ताना में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी की मुलाकात ने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया.
लाओस और रूस में हुई अंतिम वार्ताएं
25 जुलाई को लाओ पीडीआर में दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि मोदी और शी जिनपिंग की बैठक जरूरी है. इसके बाद 12 सितंबर को रूस में एनएसए अजीत डोवल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई बैठक में इस मुलाकात को अंतिम रूप दिया गया. दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि अब सही समय है, जब दोनों नेताओं को आमने-सामने बैठकर पुराने विवादों को सुलझाने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए.
चीन ने भेजा नया राजदूत
भारत और चीन के बीच सकारात्मक माहौल बनाने के लिए चीन ने मई 2024 में अपने नए राजदूत Xu Feihong को दिल्ली भेजा था. राजदूत ने भारत के प्रति सकारात्मक बयान देते हुए यह संदेश दिया कि चीन अब भारत के साथ रिश्तों को नए दृष्टिकोण से देखना चाहता है. Xu Feihong दिल्ली में काफी सक्रिय रहे और दोनों देशों के बीच संबंधों को फिर से सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
गलवान विवाद पर जयशंकर का बयान
भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी कई मौकों पर यह स्पष्ट किया कि गलवान संघर्ष के बाद सीमा विवाद का 75 फीसद से ज्यादा समाधान हो चुका है. उनका यह बयान संबंधों में स्थिरता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण था, जिससे दोनों देशों के बीच संवाद का एक सकारात्मक वातावरण तैयार हुआ.
डोभाल का स्पष्ट संदेश
एनएसए अजीत डोभाल ने चीन के विदेश मंत्री से स्पष्ट रूप से कहा कि यदि भारत-चीन संबंधों को सामान्य बनाना है, तो सीमा पर शांति और स्थिरता जरूरी शर्त है. इस संदेश ने चीन को यह संकेत दिया कि भारत अपने स्टैंड पर अडिग है, लेकिन बातचीत के लिए तैयार है. इस वार्ता ने संबंधों को फिर से पटरी पर लाने का मार्ग प्रशस्त किया.
चीन की मीडिया की भारत के प्रति सकारात्मकता
चीन के विदेश मंत्रालय और चीनी मीडिया में लगातार भारत के प्रति सकारात्मक बयान और लेख प्रकाशित किए गए. इससे दोनों देशों के बीच जनता के स्तर पर भी संबंध सुधारने की कोशिश की गई. चीन की मीडिया ने भारत की आर्थिक प्रगति और वैश्विक कूटनीति की तारीफ की. जिससे संबंधों में सकारात्मक माहौल बना.
वीजा और व्यापार में राहत
संबंध सुधारने के प्रयासों के तहत दोनों देशों के बीच वीजा और व्यापार संबंधी मामलों में भी राहत दी गई. इससे व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला और यह संदेश गया कि दोनों देश एक-दूसरे के साथ काम करने को लेकर गंभीर हैं.
अब देखना यह होगा कि कजान की यह ऐतिहासिक मुलाकात भारत-चीन संबंधों में किस तरह का बदलाव लेकर आती है.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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