यूपी- 2027 में 2024 से बचना चाहती है BJP, दलितों पर ऐसे मजबूत कर रही पकड़ – INA

उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव नतीजे बीजेपी के लिए एक अलार्म की तरह हैं. सपा-कांग्रेस की जोड़ी ने बीजेपी को गहरे जख्म दिए हैं, जिन्होंने संगठन से लेकर सरकार तक को चिंता में डाल दिया. दलित और ओबीसी वोटर बीजेपी से अच्छा खासा खिसक गया, जिसकी वापसी के लिए सियासी तानाबाना बुना जा रहा है. बीजेपी 2024 जैसी गलती 2027 में नहीं दोहराना चाहती है, जिसके लिए दलित समुदाय को साधने की कवायद सूबे में शुरू कर दी है. बीजेपी भी अब उसी संविधान को सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है, जिसे 2024 के चुनाव में सपा-कांग्रेस ने मुद्दा बनाया था.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 2024 के चुनाव में संविधान और आरक्षण के मुद्दा का नैरेटिव सेट किया था. राहुल से लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव चुनाव के दौरान यह बताते नजर आए थे कि बीजेपी अगर सत्ता में आती है तो बाबा साहेब द्वारा बनाए गए संविधान को बदल देगी और दलित व पिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण को खत्म कर देगी. इसका यूपी की सियासत में दलित समुदाय के बीच जबरदस्त असर हुआ और बीजेपी को महंगा पड़ा. बीजेपी यूपी में 62 सीटों से घटकर 33 पर सिमट गई जबकि सपा को 37 और कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं.

विपक्ष को काउंटर करने के लिए बीजेपी का प्लान

उत्तर प्रदेश की सियासी पिच पर विपक्ष अभी भी आरक्षण और संविधान पर ही बीजेपी के खिलाफ नैरेटिव सेट करने की कवायद कर रहा है. बीजेपी ने विपक्ष को काउंटर करने के लिए संविधान को ही सियासी हथियार बनाने का दांव चला है. बीजेपी यूपी में 26 नवंबर से 26 जनवरी तक संविधान गर्व दिवस मनाएगी. इस अभियान के जरिए बीजेपी सूबे के 58 जिलों में अभी तक कार्यक्रम कर चुकी है और सभी जनपदों में कार्यक्रम पूरा होने के बाद विधानसभा और मंडल स्तर पर कार्यक्रम करने की योजना बनाई है.

बीजेपी एससी-एसटी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र कनौजिया ने टीवी-9 डिजिटल को बताया कि संविधान दिवस से दो महीने के लिए संविधान गर्व दिवस के रूप में मना रहे हैं. इस कार्यक्रम के जरिए संविधान की प्रति और बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीर रखकर यह बता रहे हैं कि बीजेपी के सत्ता में रहते हुए संविधान के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होने देंगे. कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के दौरान फैलाई गई झूठी बात को जान लिया है और उन्हें भरोसा है कि नरेंद्र मोदी व बीजेपी के सरकार में रहते हुए संविधान पूरी तरह से सुरक्षित है. संविधान को अगर खतरा है तो कांग्रेस से. इस बात को लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं.

एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पीएम का निर्देश

यूपी बीजेपी के संगठन महामंत्री ने धर्मपाल सिंह ने मीडिया को बताया कि बीजेपी छह दिसंबर को बाबा साहब भीमराव आंबेडकर निर्वाण दिवस को सभी बूथों पर समता दिवस के रूप में मनाएगी. इसके बाद 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती को सभी बूथों पर सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाएगा. 26 दिसंबर को जिला स्तर पर राष्ट्रीय बाल शहीदी दिवस मनाया जाएगा. भारतीय संविधान के 75 साल पूरे होने पर बीजेपी अगले दो महीने तक के लिए संविधान गर्व दिवस कार्यक्रम चला रही है.

बीजेपी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मोर्चा की ओर से दलित समुदाय के बीच संविधान गर्व दिवस कार्यक्रम कर विपक्ष के संविधान पर खतरे वाले मुद्दे को काउंटर करने की उसकी रणनीति मानी जा रही है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मुख्यमंत्री परिषद की बैठक में संविधान दिवस के जश्न का जिक्र किया था. उन्होंने न केवल सभी एनडीए शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उपमुख्यमंत्रियों से इस अवसर पर भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए कहा था बल्कि एनडीए के सहयोगियों से यह भी कहा था कि यह उनकी जिम्मेदारी है कि वो लोगों को भारतीय संविधान की शक्ति से अवगत कराएं, जो कि एक ठोस नींव पर आधारित है.

नए संगठन में सभी जातियों का बैलेंस बनाने की कोशिश

पीएम मोदी का यह बयान विपक्षी दलों की ओर से एक झूठा नैरेटिव बनाने की कोशिश के बाद आया था कि अगर बीजेपी को 400 से ज्यादा सीटें मिलीं तो वह संविधान में निहित आरक्षण नीति को बदल देगी. इसका असर 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के प्रदर्शन पर भी पड़ा था. इस तरह से बीजेपी की कोशिश दलित समाज के बीच अपनी पैठ जमाने की है. सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को उत्तर प्रदेश में उठाना पड़ा था. यही वजह है कि दलित वोटों पर सबसे ज्यादा फोकस भी बीजेपी यूपी में ही कर रही है.

बीजेपी ने यूपी संगठन में भी दलित और ओबीसी की भागीदारी बढ़ाने की रणनीति बनाई है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी अपने संगठन के जरिए एक मजबूत सोशल इंजीनियरिंग बनाने की रणनीति में है. बीजेपी के नए संगठन में सभी जातियों और वर्गों का बैलेंस बनाने की कोशिश है. महिलाओं और दलितों को खास अहमियत दी जाएगी. पिछले दिनों लखनऊ में हुई बैठक में राष्ट्रीय सह चुनाव अधिकारी नरेश बंसल ने कहा कि संगठन में सभी जातियों और वर्गों को उचित स्थान दिया जाएगा. दलितों की सहभागिता बढ़ाने पर बीजेपी खास ध्यान देगी ताकि राजनीति में उन्हें उचित प्रतिनिधित्व मिल सके. इस तरह बीजेपी दलित समाज के बीच पैदा हुए अविश्वास को खत्म कर उनके विश्वास को जीतने के लिए दांव चल रही है.

बीजेपी ने नई लीडरशिप और वोट बैंक तैयार किया

उत्तर प्रदेश में दलित समुदाय की आबादी 22 फीसदी है. 2012 के चुनाव से पहले तक दलित बसपा का वोट बैंक हुआ करता था लेकिन उसके बाद से ही दलित वोट जाटव और गैर-जाटव के बीच बट गया है. 2014 में दलितों का 50 फीसदी से ज्यादा वोट बीजेपी को मिला था लेकिन 2019 में अलग तरीके से वोट किया है. 2019 में जाटवों ने बीजेपी को 17 फीसदी, सपा-बसपा गठबंधन को 71 फीसदी, कांग्रेस को 1 फीसदी और अन्य को 7 फीसदी वोट किए थे. गैर-जाटव दलित समाज ने बीजेपी को 48 फीसदी, सपा-बसपा गठबंधन को 42 फीसदी, कांग्रेस को 7 फीसदी और अन्य को 3 फीसदी वोट किए थे. 2024 के चुनाव में दलित समुदाय का बड़ा हिस्सा सपा और कांग्रेस गठबंधन के साथ गया था, जिसके चलते बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा है.

बीजेपी ने दलित और आदिवासी समुदाय के बीच एक नई लीडरशिप और वोट बैंक तैयार किया है, जिसे हिंदुत्व की छतरी के नीचे मजबूत करना है. इसके लिए बीजेपी प्रतीकों की राजनीति करती रही है. मोदी सरकार आने के बाद पहले दलित समुदाय से रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाया तो उसके बाद आदिवासी समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बनीं. नरेंद्र मोदी अपनी हर रैली में दलित समुदाय से यही बात कर रहे हैं कि कांग्रेस कैसे उनके आरक्षण को मुस्लिमों को सौंपना चाहती है, लेकिन इसे मैं होने नहीं दूंगा. इस तरह बीजेपी के खिसके दलित समाज के फिर से करीब लाने की कवायद हो रही है.

बीजेपी के लिए नई चुनौती खड़ी कर सकता है पीडीए फॉर्मूला

उत्तर प्रदेश में बीजेपी 10 साल पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में रिकॉर्ड 71 सीटें और 2017 के विधानसभा चुनाव में 312 सीटें जीतने में सफल रही थी. मगर, 2024 में वो महज 33 सीटों पर सिमट गई थी. इसके चलते ही बीजेपी केंद्र में अकेले अपने दम पर बहुमत से दूर रह गई. बीजेपी नरेंद्र मोदी के नाम पर 2014 में यूपी से सियासी वनवास खत्म करने में कामयाब रही थी. इसके बाद से बीजेपी का सियासी ग्राफ लगातार घट रहा है और यही पैटर्न जारी रहा तो बीजेपी के लिए 2027 का विधानसभा चुनाव टेंशन बढ़ा सकता है.

2024 के लोकसभा चुनवा में उत्तर प्रदेश की 80 में से 33 सीटों पर बीजेपी ने जीती तो उसकी सहयोगी आरएलडी ने दो और अपना दल (एस) ने एक सीट जीती है. वहीं, इंडिया गठबंधन उत्तर प्रदेश में 43 सीटें जीतने में कामयाब रहा, जिसमें 37 सीटें सपा और छह सीटें कांग्रेस ने जीती है. इसके अलावा एक सीट निर्दलीय प्रत्याशी चंद्रशेखर आजाद ने जीती है. इंडिया गठबंधन को मिली लोकसभा सीट को विधानसभा सीट के लिहाज से देखें तो सपा को 183 सीटों पर बढ़त मिली जबकि कांग्रेस 40 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी. इस तरह इंडिया गठबंधन ने यूपी की 403 विधानसभा सीटों में से 223 सीटों पर बढ़त बनाने में सफल रही.

माना जा रहा है कि सपा अपने पीडीए फॉर्मूले पर 2027 में विधानसभा चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम कर रही है. कांग्रेस और सपा का साथ आना बीजेपी के लिए किसी तरह के बड़े सियासी खतरे के संकेत नहीं माना जा रहा था, लेकिन अब लोकसभा चुनाव के नतीजों और गठबंधन के पीडीए फॉर्मूले के साथ उतरने का फैसला 2027 में बीजेपी के लिए नई चुनौती खड़ी कर सकता है. इसीलिए बीजेपी पहले से ही अलर्ट हो गई है और आक्रमक तरीके से दलित समाज को साधने में जुटी है.


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